Opinion: मध्यप्रदेश भगवान श्रीकृष्ण और भगवान श्रीराम के वास से प्रेरित पावन भूमि है। हमारा सौभाग्य है कि भगवान श्रीकृष्ण, कंस वध के बाद उज्जैन के सांदीपनि आश्रम से शिक्षा ग्रहण करते हैं। चौंसठ दिनों में चौंसठ कलाओं, सोलह विद्याओं, अठारह पुराण, चारों वेद तथा सभी उपनिषदों का ज्ञान अर्जित कर लेते हैं और श्रीकृष्ण के रूप में दुनिया में जाने जाते हैं। प्रदेश के नारायणा में भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता हुई। भगवान नने परम मित्रता का संदेश देते हुए बताया कि मित्रता में गरीब-अमीर का अंतर नहीं होता।
भगवान ने रुक्मी को हराया
धार के पास अमझेरा में वीरता के बल पर रुक्मणी हरण में भगवान ने रुक्मी को हराया। इंदौर के पास जानापाव में विनम्रता और श्रद्धा से भगवान श्रीकृष्ण ने परशुराम जी से सुदर्शन चक्र प्राप्त किया। मध्यप्रदेश के यह चारों धाम भगवान श्रीकृष्ण के उस इतिहास को जीवंत करते हैं जिसके आधार पर श्रीकृष्ण की लीला विश्व में योगेश्वर श्रीकृष्ण के रूप में पहचानी गई। इस तरह श्रीकृष्ण के योगेश्वर, कर्मेश्वर, ज्ञानेश्वर और परमेश्वर स्वरूप का प्रकटीकरण मध्यप्रदेश की धरती पर हुआ। यद्यपि, भगवान श्रीकृष्ण स्वयं परम ब्रह्म हैं। उनका पूरा जीवन ही परम गुरुत्व से युक्त है। परंतु उन्होंने स्वयं ही महर्षि सांदीपनि को गुरुत्व का और उज्जैन नगर तथा मालवा भूमि को ज्ञान ग्रहण करने का गौरव दिया।
भगवान श्रीकृष्ण की मालवा यात्राओं में पहली यात्रा विद्यार्जन के लिए, दूसरी मित्रता और तीसरी रुक्मणी से विवाह के लिए हुई। प्रभु श्रीकृष्ण ने लोक कल्याण के लक्ष्य की पूर्ति के लिए मथुरा, उज्जैन, द्वारिका, ब्रजमंडल, मेवात, हाड़ौती, मालवा, निमाड़, गुजरात, राजस्थान, विदर्भ और महाराष्ट्र के अनेक क्षेत्रों की यात्राएं कीं, लेकिन इनका मुख्य केंद्र उज्जैन ही रहा। पूरा मालवा क्षेत्र भगवान श्रीकृष्ण की स्मृतियों से समृद्ध है। उज्जैन में बाबा महाकाल के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने श्री महाकाल सहस्त्रनाम तैयार किया। उन्होंने गुरु दक्षिणा में अपने गुरु सांदीपनि के पुत्र को आसुरी शक्तियों से मुक्त कराया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से धरती पर धनुष चलाया जिससे एक कुंड प्रकट हुआ। वह गोमती कुंड उज्जैन में आज भी है।
कृष्णजी उज्जैन में लौकिक-अलौकिक ज्ञान
कृष्णजी उज्जैन में लौकिक-अलौकिक ज्ञान में निष्णात होकर जगतगुरु बने। वे ज्ञानेश्वर और अलौकिक सुदर्शन चक्रधारी होकर स्वयं किसी साम्राज्य की स्थापना या किसी गुरुकुल तक सीमित नहीं रहे। उन्होंने पूरे भारत वर्ष और जंबूद्वीप में मानवीय मूल्यों की स्थापना का अभियान चलाया तथा पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया। गोवर्धन पूजा से हम सब अवगत हैं। इसके साथ उन्होंने नदियों के संरक्षण का भी अद्भुत कार्य किया। पुराणों में यमुना के शुद्धीकरण के लिए कालिया नाग प्रसंग है। उन्होंने गंगा के पवित्र जल का सम्मान, सरस्वती और कालीसिंध नदी के घाट पर सांस्कृतिक तथा धार्मिक अनुष्ठान कर समाज में नदियों की महत्ता का संदेश दिया।
भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण जीवन हमें त्याग और जीने की प्रेरणा देता है। उनका जीवन आदर्श से भरा हुआ है। कठिन से कठिन समय में भी भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से प्रेरणा लेकर नई ऊर्जा प्राप्त होती है। उन्होंने मानव अवतार में समाज उत्थान के लिए अनेक कार्य किए, उनके प्रसंगों से हमें समाज कल्याण की शिक्षा मिलती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बनाई गई नई शिक्षा नीति-2020 में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े प्रसंगों को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया गया है। मुझे यह बताते हुए प्रसन्नता है कि मध्यप्रदेश में भगवान श्रीकृष्ण की स्मृतियों को अक्षुण्ण रखने के लिए श्रीकृष्ण पाथेय निर्माण की योजना है। इस योजना के अंतर्गत भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े स्थलों को तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया जाएगा। प्रदेश के 3200 से अधिक श्रीकृष्ण मंदिरों की साफ-सफाई, रख-रखाव, उन्नयन और विकास, मंदिर प्रांगण की जल संरचनाओं का संरक्षण, सभागार, कम्युनिटी सेंटर तथा धर्मशालाओं के निर्माण की योजना है।
सांदीपनि गुरुकुल की पुनर्स्थापना
उज्जैन में सांदीपनि गुरुकुल की पुनर्स्थापना की जाएगी, जिसमें 64 कलाओं और 14 विधाओं की शिक्षा दी जाएगी। भगवान श्रीकृष्ण की अवधारणा के अनुरूप शिक्षा, संस्कृति, कृषि और गो-वंश संवर्धन की विरासत का विकास होगा। श्रीकृष्ण पाथेय आयोजना को आकार देने के लिए मध्यप्रदेश सरकार के 18 विभाग मिलकर कार्य करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण युगदृष्टा थे। बालवय में उन्होंने कंस, जरासंघ, कालयवन आदि से संघर्ष किया। उन्होंने द्वारिका को राजधानी बनाकर देश की अव्यवस्था, अधार्मिकता और अनाचार की बढ़ती प्रवृत्तियों के उन्मूलन के प्रयास किए। उनके जीवनवृत्त और संदेश अनुसार समय का सदुपयोग और पूरी एकाग्रता से किए गए कर्म से ही व्यक्ति आसमान की ऊंचाई छू सकता है। व्यक्तित्व निर्माण, पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन, सामाजिक समरसता, कर्मशीलता और कर्तव्यपरायणता के लिए भगवान श्रीकृष्ण का दर्शन सबसे सशक्त मार्ग है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य निष्काम भाव से स्वधर्म करता हुआ जीवन को सार्थक बनाए। वे सनातन परंपराओं, समत्व, स्वत्व और मानव मूल्यों के आधार पर देश के पुनर्निर्माण हेतु सतत सक्रिय रहे। उनका लोक संग्रही और धर्म-संस्थापक स्वरूप हमारे राष्ट्र जीवन का आदर्श है। भारत विश्वगुरु रहा है और अपने गुरुत्व स्थान पर पुनर्प्रतिष्ठापना की दिशा में आगे बढ़ रहा है। विकास और उत्कर्ष के इस संकल्प की सिद्धि के लिए हम भगवान श्रीकृष्ण के संदेश को समझें, उनके द्वारा प्रदर्शित मार्ग को राष्ट्र जीवन में आत्मसात करें।
कर्मेश्वर-परमेश्वर श्रीकृष्ण का आलोक
आइये, हम सब श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर मध्यप्रदेश के पावन चारों धामों का स्मरण करें। श्रीकृष्ण ने सांदीपनि आश्रम से शिक्षा, नारायणा से मित्रता, अमझेरा से वीरता और जानापाव से विनम्रता का संदेश दिया है। मेरी आत्मिक अभिलाषा है कि युगावतार के महान रूप में कर्मेश्वर-परमेश्वर श्रीकृष्ण का आलोक सदैव हमारा पथप्रदर्शित करता रहे।
श्रीकृष्णम वंदे जगद्गुरुम.. जयश्रीकृष्णा
डॉ. मोहन यादव: (लेखक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, यह उनके अपने विचार हैं )