Chaitra Navratri: सनातन धर्म में संस्कृति का मूल आधार वेद शास्त्र को माना जाता है। समाज में आस्था, विश्वास के साथ कुछ मान्यताएं स्वीकर की जाती है। भक्त शांति, सद्भावना, सुख, समृध्दि के लिए माता के दरबार में माथा टेकने और पूजा- अर्चना कर श्रृंगार चढ़ाते और मनोकामना की अर्जी लगाते हैं। वहीं कुछ भक्त मनोकामना पूर्ण होने पर उपवास, पद दण्ड, कथा, दान के अलावा बलि की परंपरा भी निभाते हैं। सालभर में नवरात्रि चार बार आती है, लेकिन अधिकतर लोग दो नवरात्रि ही जानते हैं। चैत्र नवरात्र में देवी के सभी स्थलों पर भक्तों की कतार लगी होती है। देवी के धार्मिक स्थल पर जवारे के कलश बोने की प्रथा भारतीय संस्कृति में भी है। जो नवमीं के दिन मां काली पण्डा के जीभ में बाना छेदने की प्रथा सदियों से चली आ रही है। भक्त भी धूमधाम से खप्पर लेकर मां काली के साथ नृ्त्य करते हैं। चैत्र नवरात्रि में देवी को खुश करने का शुभ समय माना जाता है।
यहां बलि देने की अनोखी प्रथा
देशभर में नवरात्रि के समय देवी स्थलों में बलि देने की प्राचीन प्रथा आज भी चल रही है। भक्त नवरात्र प्रारंभ होने से पहले ही बलि देने के लिए जीवों की व्यवस्था में लग जाते हैं। बिहार के भभुआ जिला से करीब 14 कि.मी. पर लगभग 650 फिट की ऊंचाई वाली कैमूर की पहाड़ी में माता मुण्डेश्वरी व महामण्डलेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है। ये मंदिर को देश के ऐतिहासिक मंदिरों में जाना जाता है। यहां बलि देने की अनोखी प्रथा है, इस मंदिर में भक्त अपने साथ बकरा लाते हैं और मंदिर के पुजारी बकरे पर चावल छिड़कते हैं। बकरे के ऊपर चावल गिरते ही वह बेहोश हो जाता है और पूजा प्रक्रिया पूर्ण होते ही बकरा होश में आ जाता है। इस प्रकार बकरे की बलि पूर्ण मानी जाती है। पूजा समापन के बाद बकरे का होश देखकर लोग आश्चर्य रह जाते हैं।
यह महज अंधविश्वास है
कुछ भक्तों का मानना है, कि नवरात्रि में बिना अंग दान किए देवी प्रसन्न नहीं होती हैं। इस संबंध में अंधश्रध्दा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्रा ने बताया कि इस तरह की भक्ति भावना से देवी कभी खुश नहीं होते है। न ही शास्त्रों में इस तरह की कोई विधि बताई गई है। सच्ची मनोकामना से भक्ति कीजिए, देवी हमेशा सभी को सुख समृध्दि देती हैं। न कि देवी किसी पशु बलि की मांग करती हैं, यदि आप किसी देवी देवताओं में आस्था रखते हैं। तो उनकी पूजा अर्चना करें। देवियों की कथा या दान कर सकते हैं। लेकिन किसी जीव की बलि देना या अपना कोई अंग काटकर चढ़ाना देवियों को प्रसन्न करने की अंधविश्वास प्रथा है। इसे कानूनी आपराध भी माना गया है। हमारे शरीर के कई महत्वपूर्ण अंग है, लोग अपनी जीभ, उगली, काटकर देवी को समर्पित करते हैं इसके बाद जीवनभर के लिए अपंग हो जाते हैं।
इक्षांत उर्मलिया