Chaitra Navratri 2024: धार्मिक ही नहीं ज्योतिष की दृष्टि से भी चैत्र नवरात्रि का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। यह अपनी आत्मशक्ति को जागृत करने और सात्विक गुणों को विकसित करने के लिए सबसे उपयुक्त समय माना जाता है। नवरात्र में हम देवी के नौ रूपों की अर्चना करते हैं। असल में ये नौ रूप हमारी विभिन्न मनोदशाओं के परिष्कार, उनकी शुद्धि से जुड़े हुए हैं। तरह-तरह की तामसिक प्रवृत्तियां हम सब के इर्द-गिर्द विचरण करती रहती हैं। नवरात्रि के दौरान किया जाने वाला तप, उपवास हमें इन नकारात्मक ऊर्जा से मुक्त कर शुद्ध और सृजनशील बनाता है। इसलिए चैत्र नवरात्र को आध्यात्मिक साधना से शक्ति अर्जित करने का सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।
संपूर्ण सृष्टि की स्रोत आदिशक्ति
यह संपूर्ण सृष्टि, शक्तिस्वरूपा में निहित सृजनात्मकता का प्रतिफल है। इस सृजनात्मकता का आरंभ आदिशक्ति से माना जाता है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस सृष्टि के सृजन के लिए आदिशक्ति के अंश स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और शिव की उत्पत्ति हुई थी, जिन्होंने इस ब्रह्मांड की परिकल्पना की। नवरात्र पर्व स्त्री शक्ति की इसी सृजनात्मकता और उसके अनगिन रूपों की आराधना का पर्व है। आदिशक्ति संसार की सभी शक्तियों का केंद्र बिंदु हैं। इसलिए नवरात्र में देवी की उपासना से हमें मानसिक, आध्यात्मिक हर तरह की शक्ति प्राप्त हो सकती है। हमारी वैदिक संस्कृति के अनुसार प्रत्येक नारी अपने आप में दैदीप्यमान ज्योतिर्मयी सत्ता है। यानी आदिशक्ति का ही प्रतीक रूप। अपने भीतर की शक्ति को जागृत करने के लिए शक्ति से शक्ति की कामना का ही पर्व है नवरात्र।
उपवास से उपासना
चैत्र नवरात्रि के नौ दिन साधना और संयम के साथ आत्मजागरण करने का अवसर होता है। बिना संयम और चित्त पर नियंत्रण किए साधना नहीं की जा सकती। चित्त के हठीले संस्कार, लोभ, ईर्ष्या, जड़ता, भय जैसी नकारात्मक शक्तियां हमारे आगे बढ़ने की राह में सबसे बड़ी बाधा होती हैं। इनसे पार पाने के लिए नियमित साधना आवश्यक है। नवरात्र के दौरान किए जाने वाले उपवास से इस साधना पथ पर आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त होता है। साधना हमारे भावनात्मक संतुलन को साधती है। आंतरिक शक्ति का विस्तार कर संकल्पों को साकार करने में मदद करती है। मानसिक विकारों को दूर करती है और आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने के लिए सात्विक शक्तियों का बीजारोपण करती हैं।
साधना का उद्देश्य
चैत्र नवरात्रि में उपवास और साधना का उद्देश्य स्व को परिमार्जित करना होता है। जिस तरह हमारा बाहरी व्यक्तित्व हमारे कपड़ों, गहनों और आचार विचार से निर्धारित होता है ठीक उसी तरह हमारा आंतरिक व्यक्तित्व आत्मसंयम, आत्मबल, इच्छाशक्ति, विवेक और ज्ञान से परिभाषित होता है। साधना के द्वारा ज्ञान और विवेक अर्जित किया जा सकता है। इसके अलावा साधना आत्म से साक्षात्कार का सबसे बड़ा माध्यम होती है। आत्म से साक्षात्कार समस्त शक्तियों और ज्ञान के मूल से परिचित होना है। बिना आत्म से मिले हुए कोई भी साधना अपूर्ण ही मानी जाएगी क्योंकि आत्म से मिलन अपनी चेतना में आदिशक्ति के अंश को पहचानना है। उसे अपने भौतिक जीवन में उतारना है। उसकी प्रेरणा से अपने जीवन की दिशाएं तय करना है। आत्मचेता स्त्री या पुरुष सिर्फ अपने जीवन में बदलाव नहीं लाते बल्कि समाज में भी सकारात्मक बदलाव लाकर जीवन में सार्थकता लाते हैं।
उपासना से होता है कल्याण
चैत्र नवरात्रि मास में प्रकृति अपने सुंदरतम रूप में व्याप्त होती है। प्रकृति का यह उल्लास पूरे वातावरण पर प्रभाव डालता है। मान्यता है कि इस दौरान आध्यात्मिक साधना करने वालों पर सृष्टि में पर्याप्त सकारात्मक ऊर्जा दैवीय अनुकंपा के रूप में बरसती है। इस तरह प्रकृति से प्राप्त ऊर्जा का संयोजन आध्यात्मिक ऊर्जा से होता है। साधक के मन-मस्तिष्क और आचार-विचार का कायाकल्प हो जाता है। यानी हर तरह से हमारा कल्याण होता है।
स्त्रियों में विद्यमान देवी अंश
शक्ति स्वरूपा देवी का अंश स्त्रियों में भी विद्यमान होता है। इसीलिए उनकी ऊर्जा निरंतर और अक्षुण्ण होती है। बात संस्कार की हो या समर्पण की, कर्तव्य की हो या अपनत्व की इस सांसारिक यात्रा में स्त्रियां निरंतर सक्रिय रहती हैं, अपना दायित्व निभाती रहती हैं। उनमें मौजूद विभिन्न गुणों के आधार पर ही उन्हें लक्ष्मी, सरस्वती, काली और दुर्गा का अंश कहा जाता है। हम नवरात्र में दुर्गा जी की आराधना अवश्य करें लेकिन साथ ही शक्ति का अंश धारण करने वाली स्त्रियों को भी घर, बाहर और समाज में हर जगह आदर-सम्मान देना कभी ना भूलें।
सरस्वती रमेश