Halchhath Fast: भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला हलछठ (हलषष्ठी) व्रत को लेकर मध्य प्रदेश राजधानी भोपाल के हाट-बाजारों में महुआ, पसई चावल और बांस की छोटी टोकरियों बिकने लगी है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम जी के जन्मोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है।

विशेष रूप से हल की पूजा
बलरामजी का प्रधान शख हल तथा मूसल है, इसीलिए उन्हें हलधर भी कहा जाता है। इसी कारण इस पर्व को हलषष्ठी या हलछठ कहते हैं। इस दिन विशेष रूप से हल की पूजा करने और महुआ की दातुन करने की परंपरा है। इस व्रत में विशेष रूप से गाय के दूध और उससे तैयार दही का प्रयोग वर्जित है। भैंस के दूध, दही का सेवन किया जा सकता है। कहते हैं इस दिन जोता बोया अन्न नहीं खाना चाहिए। इसलिए इस व्रत में पसई के चावल और महुए की मिठास से बनी चीजें खा कर व्रत खोला जाता है।

यह पर्व बड़ी ही आस्था, विश्वास और श्रद्धा के साथ व्रतधारी महिलाओं द्वारा घरों में मनाया जाता है। हलछठ की पूजा के लिए राजधानी के बाजारों में आवश्यक सामग्री बांस से बनी टोकरी, महुआ, आठ प्रकार के अनाज से तैयार किया। पूजा और पूजन की अन्य सामग्री की खरीदारी शुरू हो गई है। कुशवाहा किराना स्टोर के संचालक लखन कुशवाहा के अनुसार महुआ 50 से 60 रुपए पाव (250 ग्राम), पसई चावल 120 से 140 रुपए किलो, चना भुना 120 रुपए किलो, मक्का लाई 20 रुपए पैकेट है।

महिलाएं रखेंगी संतान के दीघार्यु के लिए व्रत
संतान के दीघार्यु कुटुम्ब की सुख समृद्धि के लिए रविवार को महिलाएं व्रत रखकर हलछठ की पूजा करेंगी। इस व्रत की तैयारियों को लेकर महिलाओं द्वारा शुक्रवार को बाजार में पहुंचकर पूजन समयी खासकर महुए का पता, कुश आदि की खरीदारी करना शुरू कर दी है। मां चामुण्डा दरबार के पुजारी गुरु पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि माढ़ मास के कृष्ण पक्ष षष्ठी रविवार को हरछठ व्रत मनाया जाएगा।

इस दिन माताएं दिनभर उपवास रखने के बाद हलछठ की पूजा कर कथा सुनकर शाम को बिना हल चले अनाज ग्रहण करेंगी। इसमें पसाई के चावल का विशेष महत्व होता है। महिला वत के दौरान इसी की खीर आदि बनाकर खाती है। हलषष्ठी में हल का उपयोग किए बिना लगे अन्न व फलों का उपयोग किया जाता है। इस दिन माताएं भगवान शंकर व माता पार्वती की मूर्ति बनाकर पूजा करती हैं और माता रानी व भगवान शंकर से प्रार्थना करती है।

भैंस के दूध से होता है पूजन
पंडित रामजीवन दुबे ने बताया कि हलषष्ठी में गैस के दूध से बने घी और दही का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही हल की जुताई और बोवाई से उत्पन्न अन्न का त्याग किया जाता है। इस पर्व पर महुआ, बैर पलास की पत्ती, कांसी के फूल, नारियल मिठाई, रोली- अक्षत, फल, फूल सहित अन्य पूजन सामग्री से विधि-विधान से पूजन करने की परंपरा है। शास्त्रों में संतान की रक्षा के लिए माताओं के लिए यह व्रत श्रेष्ठ बताया गया है।