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Bisrakh Ravan Temple: दशहरे पर पूरे देश में उत्सव का माहौल रहता है, लेकिन नोएडा के बिसरख गांव में सन्नाटा छाया रहता है। आइए इसके पीछे की वजह जानते हैं।

Dussehra Bisrakh Ravan Temple: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो चुकी है और समाप्ति दशहरे के दिन यानी 12 अक्टूबर को होगी। दशहरा पर्व को लेकर पूरे देश में तैयारियां चल रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में ग्रेटर नोएडा से करीब 15 किमी की दूरी पर एक गांव बसा है, जिसका नाम बिसरख है। कहा जाता है कि इस गांव में दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है, बल्कि लंकापति रावण का मंत्रोच्चारण के साथ पूजा की जाती है।

दरसल, बुजुर्गों का कहना है कि कई दशक पहले बिसरख गांव में रावण के पुतले को जलाया गया था। लेकिन, पुतला जलाने के बाद कई लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद गांव के लोगों ने विधि-विधान और मंत्रोच्चारण के साथ रावण की पूजा की। तब जाकर पूरे गांव में शांति हुई थी। इस बात में कितनी सच्चाई है कितनी नही, ये हम नहीं कह सकते हैं। लेकिन, इस गांव में उस समय के बाद कभी भी दशहरा नहीं मनाया जाता है और न ही दशहरे पर रावण के पुतले को जलाया जाता है।

जानें क्यों नहीं मनाया जाता है दशहरा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बिसरख गांव लंकापति रावण के पिता विश्रवा ऋषि का गांव हुआ करता था। उनके नाम पर इस गांव का नाम बिसरख पड़ा था। मान्यता है कि इस गांव में ऋषि विश्रवा रोज पूजा करने के लिए आया करते थे। इस गांव में ही रावण का जन्म भी हुआ था।

उसके बाद कुंभकरण, सूर्पनखा और विभीषण का भी जन्म स्थान माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जब पूरा देश राम जी की जीत की खुशियां मना रही थी, उस समय इस गांव में रावण की मौत का शोक मनाया जाता है। इसलिए बिसरख गांव में आज भी दशहरा के दिन लोग मातम मनाते हैं।

बिसरख गांव का बेटा है रावण

स्थानीय लोगों का कहना है कि रावण उनके गांव का बेटा है। इस गांव में रावण को देवता के सामान पूजा की जाती है। यहां के ग्रामीणों ने आजतक कभी रामलीला नहीं देखी है। बता दें कि दशहरे के दिन यहां घर में पकवान तो बनाया जाता है, लेकिन न तो रामलीला होती है और न ही पुतला जलाया जाता है।

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डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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