(कीर्ति राजपूत)
Masik Krishna Janmashtami 2024 : मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व उतना ही खास है, जितना जन्माष्टमी का त्योहार। पौष माह के दौरान जन्माष्टमी का यह पर्व 3 जनवरी 2024 को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भक्त उनके जन्म का जश्न मनाते हैं। मासिक जन्माष्टमी प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। हिन्दू धर्म पुराणों के अनुसार भगवान कृष्ण, वासुदेव और देवकी के आठवें पुत्र हैं। कहा जाता है कि इस दिन जो भी सच्ची श्रद्धा भक्ति के साथ भगवान कृष्ण की पूजा अर्चना करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा बता रहे हैं मासिक कृष्ण जन्माष्टमी की कथा।
मासिक कृष्ण जन्माष्टमी की कथा
हिन्दू धर्म के लिए मासिक कृष्ण जन्माष्टमी का दिन बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दिन बहुत से लोग व्रत रखकर भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा अर्चना करते हैं। हिन्दू धर्म कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण वसुदेव और देवकी के आठवें पुत्र हैं, और उनसे पहले अन्य सभी सात पुत्रों को असुर राज कंस ने मार डाला था। आठवें पुत्र को देवताओं ने आशीर्वाद दिया और भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में असुर राज कंस के कारागार में देवकी के गर्भ से भगवान कृष्ण का अवतार हुआ। हिन्दू धर्म पुराणों में उल्लेखित है,कि भगवान कृष्ण के जन्म के बाद जेल के सभी ताले अपने आप खुल गए और सारे पहरेदार सो गए थे। इसके बाद वासुदेव नन्द गांव पहुंचे और भगवान कृष्ण के साथ उफनती यमुना नदी को पार किया और नंद बाबा ने यशोदा को भगवान कृष्ण को सौंप दिया। बाद में भगवान कृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलायी। कृष्ण जन्माष्टमी का यह त्योहार कंस की क्रूरता, देवकी और नंदबाबा के संघर्ष की याद दिलाता है।
इस स्तुति से करें भगवान कृष्ण की पूजा
भये प्रगट कृपाला दीन दयाला,यशुमति के हितकारी, हर्षित महतारी रूप निहारी, मोहन मदन मुरारी।
कंसासुर जाना अति भय माना, पूतना बेगि पठाई, सो मन मुसुकाई हर्षित धाई, गई जहां जदुराई।
तेहि जाइ उठाई ह्रदय लगाई, पयोधर मुख में दीन्हें, तब कृष्ण कन्हाई मन मुसुकाई, प्राण तासु हरि लीन्हें।
जब इन्द्र रिसाये मेघ बुलाये, वशीकरण ब्रज सारी, गौवन हितकारी मुनि मन हारी, नखपर गिरिवर धारी।
कंसासुर मारे अति हंकारे, वत्सासुर संहारे, बक्कासुर आयो बहुत डरायो, ताकर बदन बिडारे।
अति दीन जानि प्रभु चक्रपाणी, ताहि दीन निज लोका, ब्रह्मासुर राई अति सुख पाई, मगन हुए गए शोका।
यह छन्द अनूपा है रस रूपा, जो नर याको गावै, तेहि सम नहिं कोई त्रिभुवन मांहीं, मन-वांछित फल पावै।
दोहा- नन्द यशोदा तप कियो, मोहन सो मन लाय तासों हरि तिन्ह सुख दियो, बाल भाव दिखलाय।