Mrityu Bhoj Niyam in Garud Puran: सनातन धर्म में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के पश्चात उसकी आत्मा शांति के लिए तेरहवीं भोज कराने की परंपरा है। तेरहवीं पर ब्रह्मभोज की यह परंपरा कई कालखंड से चली आ रही है, जिसे अब मृत्युभोज के नाम से जाना जाता है। सनातन धर्म में कुल 16 संस्कार बताये गए है, इनमें से एक अंतिम संस्कार यानी अंत्येष्टि संस्कार। इस संस्कार के 12वें दिन केवल ब्राह्मणों को ही भोज कराने और उन्हें दान करने का विधान है।
गरुड़ पुराण में वैसे तो कहीं भी मृत्यु भोज का जिक्र नहीं किया गया है। लेकिन अंतिम संस्कार के 12वें दिन ब्रह्म भोज और ब्रह्म दान करने का विधान जरूर है। गरुड़ पुराण में मृत्यु भोज को पाप बताया गया हैं, क्योंकि इसके अनुसार तेरहवीं तक आत्मा अपने घर-परिवार के सदस्यों के बीच ही विचरण करती है। इसके पश्चात ही वह आत्मा दूसरे लोक की तरफ प्रस्थान करती है। कहा जाता है कि, तेरहवीं में ब्रह्म भोज और दान से आत्मा को पुण्य और परलोक प्राप्ति होती हैं।
गरुड़ पुराण के मुताबिक,
"मृत्यु भोज सिर्फ गरीब ब्राह्मण अथवा जरूरतमंद व्यक्ति को ही ग्रहण करना चाहिए। लेकिन अगर संपन्न व्यक्त इसे ग्रहण करेगा तो उसे गरीबों का हक छीनने जैसे अपराध का सामना करना पड़ेगा।"
गीता में मृत्यु भोज के बारे में,
"मृत्यु भोज खाने से व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव होता है, जिससे उसकी ऊर्जा नष्ट हो जाती है।"
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।