Neelkanth on Dussehra Significance: विजया दशमी यानी दशहरा, जिस दिन प्रभु श्री राम ने लंकाधिपति रावण का वध कर लंका पर विजय प्राप्त की थी। साथ ही रावण द्वारा अपरहण की गई अपनी भार्या सीता को मुक्त करवाया था। बताया जाता है कि, इस विजय से पहले प्रभु श्री राम ने नीलकंठ पक्षी के दर्शन किए थे। मान्यता है कि, इस पक्षी के दर्शन मात्र से सभी कठिन काम भी बन जाते है। इसके अलावा एक अन्य पौराणिक कथा भी इस संदर्भ में प्रचलित है, जिसके मुताबिक रावण वध के बाद ब्रह्म हत्या के पाप से बचने के लिए राम जी ने भगवान शिव के नीलकंठ रूप की पूजा की और दर्शन प्राप्त किए।
रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने प्रभु श्री राम की बारात निकलने का सुदंर चित्रण करते हुए लिखा है कि, बारात निकलते समय नीलकंठ पक्षी बायीं ओर दाना चुग रहा है, जो शुभदायक शकुन है। यही सब वजहें है, जिन्हें मानते हुए स्पष्ट तौर पर कह सकते है कि नीलकंठ पक्षी शुभ संकेत है।
नीलकंठ है महादेव का स्वरूप
देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन में अमृत के पहले कालकूट विष प्रकट हुआ था, जोकि बेहद घातक और जहरीला था। इस विष के प्रभाव से सभी देवों और असुरों को पीड़ा होने लगी, जिसके बाद महादेव ने उस कालकूट विष को स्वयं के गले में धारण कर लिया, जिससे उनका गला नीला हो गया। कहते है, तभी से महादेव का नाम नीलकंठ पड़ गया।
दशहरा पर नीलकंठ पक्षी के दर्शन
पुराने समय में दशहरा के दिन लोग सुबह उठते ही नीलकंठ पक्षी के दर्शन करना शुभ माना करते थे। पहले के समय में गांव में रहने वाले लोग नीलकंठ पक्षी को लेकर घर-घर जाकर कुंडी खटखटाया करते थे, जिससे सभी लोग शुभ शकुन देख लें। इसके बदले पक्षी लाने वाले जो दक्षिणा दी जाती थी।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।