Raksha Bandhan: वर्तमान समय में भी अनेक स्थानों पर श्रावणपूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों द्वारा यजमान को रक्षासूत्र बांधा जाता हैं। रक्षाबन्धन मात्र बहन के द्वारा सम्पादित होने वाला कार्य हो ऐसा कहीं भी उल्लेखित नहीं है। भविष्योत्तरपुराण में रक्षाबन्धन से सम्बन्धित आख्यायिका में इन्द्रपत्नी शची द्वारा देवासुरसंग्राम में इन्द्र को रक्षासूत्र बांधा गया यह वर्णन है-

अजेयः सर्वशत्रूणां कृतः शच्या शचीपतिः ।
रक्षाबन्धप्रभावेन दानवेन्द्रो जितो महान् ॥ (भविष्योत्तरपुराण १३७.४)
शुक्राचार्य कहते हैं कि- शची ने अपने पति इन्द्र को सभी शत्रुओं पर अजेय बनाया है, इस रक्षाबन्धन कर्म के प्रभाव से ही इन्द्र ने असुरराज को परास्त किया है।

रक्षाबन्धन के विधान के सम्बन्ध में कहा जाता है-
ब्राह्मणैः क्षत्रियैवैश्यैः शूद्रैश्वान्यैश्च मानवैः । 
कर्तव्योरक्षिकाबन्धो द्विजान्सम्पूज्य भक्तितः ॥ (भविष्योत्तरपुराण १३७.२१)
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रों और अन्य मानवों को भी भक्ति पूर्वक ब्राह्मणों की पूजा करने के उपरांत रक्षाबन्धन करना चाहिए। 

नारदपुराण में भी 
रक्षाविधानं च तथा कर्तव्यं विधिपूर्वकम्।
सिद्धार्थाक्षतराजिकाश्च विधृता रक्तांशुकांशे सिताः 
कौसुंभेन च तंतुनाथ सलिलैः प्रक्षाल्य कांस्ये धृताः ॥
गंधाद्यैरभिपूज्य देवनिकरान्संप्रार्थ्य विष्ण्वादिकान्
बध्नीयात्द्विजहस्ततः प्रमुदितो नत्वा प्रकोष्ठे स्वके ॥ (नारदपुराण १.१२४.२८-३०)
द्विजों को उपाकर्म के दिन रक्षाविधान करना चाहिये। लाल कपड़े के एक भाग में सरसों तथा अक्षत रखकर उसे लाल रंग के सूत्र से बाँध दे, उसे जल से प्रोक्षित कर कांस्यपात्र में रखे। उस पात्र में गन्धादि उपचारों द्वारा श्रीविष्णु आदि देवताओं का प्रार्थनापूर्वक पूजन करें। तत्पश्चात् ब्राह्मण को नमस्कार कर ब्राह्मणद्वारा ही प्रसन्नतापूर्वक अपनी कलाई में उस रक्षासूत्र को धारण करवाएँ ।

अभिज्ञानशाकुन्तलम् में भी वर्णन है कि भगवानकश्यप ने जातकर्मसंस्कार के समय भरत को अपराजिता औषधि से युक्त रक्षासूत्र कलाई पर पहनाया था- “अहो । रक्षाकरण्डकमस्य मणिबन्धे न दृश्यते ।एषाऽपराजिता नामौषधिरस्य जातकर्मसमये भगवता मारीचेन दत्ता ।”  (अभिज्ञानशाकुन्तलम्,सप्तमांक)

अतः (१) ब्राह्मण से पारम्परिक रक्षासूत्र अवश्य धारण करना चाहिए यही रक्षाबन्धन का शास्त्रीय विधान है, तत्पश्चात पति-पत्नी, भाई-बहन, पिता-पुत्र कोई भी रक्षासूत्र बांध सकता है। (२) ऐसा नहीं है कि वर्ष के अन्य दिनों में यह कार्य नहीं हो सकता, प्रत्येक अनुष्ठान से पूर्व रक्षाबन्धन कर्म होता ही है किन्तु श्रावणपूर्णिमा को इस कर्म का विशेष महत्व है। 

- पंडित राम बहोरी शुक्ला (प्रधान पुजारी श्री सिद्ध हनुमान मन्दिर बावड़िया धाम, भोपाल)