Sanyas Niyam: क्या है सन्यास की परंपरा, कब बनते हैं सन्यासी?, यहां पढ़ें Sanyas लेने का नियम

Sanyas Niyam: प्रयागराज महाकुम्भ के जूना अखाड़े में एक 13 साल की लड़की ने दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला किया। यहां पढ़ें Sanyas लेने का सही नियम क्या है?;

Update: 2025-01-12 10:33 GMT
Sanyas Niyam
सन्यास लेने का नियम।
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Sanyas Niyam: भारत देश में समय-समय पर लोगों ने अपने गृहस्त जीवन से संन्यास लेकर साधु-सन्यासी बनने का फैसला किया है। अभी हाल ही में एक ताजा मामले के अनुसार आगरा में एक पेठा फैक्ट्री में कार्य करने वाले व्यक्ति की 13 वर्षीय बेटी रखी ने प्रयागराज महाकुम्भ में जूना अखाड़े में दीक्षा लेकर साध्वी बनने का फैसला किया।

राखी उत्तर प्रदेश के आगरा जनपद स्थित टरकपूरा गांव की रहने वाली है। संन्यास लेने के बाद राखी के परिवार और गांव में काफी खुशी का माहौल है। राखी को दीक्षा देने वाले जूना अखाड़े के संत कौशल गिरी को अखाड़ा परिषद में 7 साल के लिए निष्कासित कर दिया है। अखाड़े की गाइडलाइन के अनुसार नाबालिग व्यक्ति को संन्यास नहीं दिलाया जा सकता है। इसलिए राखी को महाकुंभ से वापस उनके घर भेज दिया गया। आईए जानते हैं संन्यास लेने के लिए क्या नियम होते हैं।

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सबसे पहले संन्यास लेने के लिए हमें किसी एक ऐसे व्यक्ति की खोज करनी होती है जिससे हम दीक्षा लेकर सन्यास ले सकते हैं। केवल गुरु ही किसी व्यक्ति को सन्यास दीक्षा दे सकते हैं। सन्यास लेना बहुत आसान नहीं होता क्योंकि सन्यासी बनने के बाद व्यक्ति को सभी तरह के भौतिक वित्तीय सांसारिक मोह माया का त्याग करना पड़ता है और अपना जीवन पूर्ण रूप से अपने इष्ट देव की सेवा पूजा में गुजारना पड़ता है।

संन्यास लेने के बाद अपने परिवार और सभी परिजनों रिश्ते नातों का भी त्याग करना पड़ता है। संन्यासियों को एक समय भोजन करना चाहिए एवं ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। सन्यासी अपना भोजन या तो भिक्षा मांग कर खाते हैं अथवा स्वयं बनाकर। संन्यासियों को जमीन पर सोना होता है। किसी भी एक स्थान पर अधिक समय तक नहीं रह सकते हैं। संन्यासी अथवा किसी मठ-आश्रम आदि का सहारा लेना पड़ता है।

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संन्यास लेने वाले व्यक्ति को सबसे पहले स्वयं का पिंडदान करना पड़ता है। इसके बाद वह व्यक्ति सांसारिक मोह माया से पूर्ण रूप से अलग हो जाता है। सन्यासी को अपने सिर पर जटा रखनी पड़ती है एवं जनेऊ भी धारण करना होता है। सन्यासी के हाथों में सदैव दंड होना चाहिए। महिला सन्यासी को अपने केस स्वयं उतार कर ही अपना पिंडदान करना पड़ता है।

ऐसे तो महिलाओं को संन्यास नहीं लेना चाहिए लेकिन इस आधुनिक युग में महिलाओं और पुरुषों में कोई खास अंतर नहीं बचा है। महिलाएं पुरुषों की हर कार्य में बराबर हिस्सेदार होती है। सन्यासी कई प्रकार के होते हैं जैसे कुटिचक सन्यासी, बहुदक सन्यासी, हंस सन्यासी, परमहंस सन्यासी।

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