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Shardiya Navratri 2024: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती पाठ के कीलक स्त्रोत का पाठ करने से माता रानी की विशेष कृपा होती हैं। तो आइए कीलक स्त्रोत के बारे में जानते हैं।

Keelak Stotram: पंचांग के शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 3 अक्टूबर से हो रही है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता रानी दुर्गा के नव स्वरूपों की आराधना की जाती है। साथ ही, माता रानी की कृपा पाने के लिए नौ दिनों तक व्रत भी रखते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, नवरात्रि में मां दुर्गा के सप्तशती पाठ करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि सप्तशती पाठ में कीलक, कवच और अर्गला स्त्रोत का पाठ करने का बहुत ही ज्यादा महत्व है। यदि आप इस पाठ को करते हैं तो आप पर माता रानी की कृपा हमेशा बनी रहती हैं। तो आज इस खबर में जानेंगे कीलक, कवच और अर्गला स्त्रोत पाठ के बारे में।

कीलक स्त्रोत का पाठ करने के लाभ

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, सप्तशती पाठ करने से व्यक्ति को सत्, चित्त और जीवन में आनंद की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस पाठ को पढ़ने से सभी प्रकार के कार्य सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही, इस पाट के जरिए सिद्धि की भी प्राप्ति की जाती है। सप्तशती पाठ के कीलक स्त्रोत का पाठ करने से माता दुर्गा की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

ज्योतिषियों के अनुसार, इस पाठ को करने से जीवन में ऐश्वर्य, संपत्ति, सौभाग्य, आरोग्य, शत्रुनाश और परम मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि कीलक स्त्रोत का पाठ करने से नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही किसी भी प्रकार तंत्र मंत्र का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है। ज्योतिषियों के अनुसार, वशीकरण, सम्मोहन या मारण जैसे तंत्र-मंत्र का प्रभाव खत्म करने के लिए कीलक स्त्रोत का पाठ अवश्य करना चाहिए।

कीलक स्त्रोत का पाठ

ॐ नमश्चण्डिकायै ॥
 मार्कण्डेय उवाच

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे ।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे ॥ 1 ॥

सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम् ।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः ॥ 2 ॥

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि ।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति ॥ 3 ॥

न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते ।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम् ॥ 4 ॥

समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः ।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम् ॥ 5 ॥

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः ।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम् ॥ 6 ॥

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः ।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः ॥ 7 ॥

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति ।
इत्थंरूपेण कीलेन महादेवेन कीलितम् ॥ 8 ॥

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम् ।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः ॥ 9 ॥

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते ।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात् ॥ 10 ॥

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति ।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः ॥ 11 ॥

सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने ।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम् ॥ 12 ॥

शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः ।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत् ॥ 13 ॥

ऐश्वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः ।
शत्रुहानिः परो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः ॥ ॐ ॥ 14 ॥

      ॥ कीलक स्तोत्र सम्पूर्ण ॥

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डिस्क्लेमर: यह जानकारी सामान्य मान्यताओं पर आधारित है। Hari Bhoomi इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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