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Aarti Ke Niyam : हिन्दू धर्म में प्रतिदिन सुबह शाम अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा करने का विधान हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार जिस घर में प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है. उस घर में हमेशा सुख और समृद्धि बनी रहती है.

 (रुचि राजपूत)

Kis Tarah Karen Aarti : सनातन धर्म में देवी-देवताओं की पूजा पाठ करने का विशेष महत्व बताया गया है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार यह अपने आराध्य देवी-देवता के प्रति अपनी आस्था और समर्पण को प्रकट करने का सबसे बेहतर तरीका है। मान्यताओं के अनुसार जिस घर में प्रतिदिन सुबह शाम देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, उस घर में सदैव सुख और समृद्धि का वास होता है, लेकिन पूजा पाठ के दौरान कुछ नियमों को ध्यान में रखने के लिए भी कहा जाता है। यदि इन नियमों को ध्यान में रखकर पूजा पाठ की जाए, तो व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होता है, तो चलिए जानते हैं हरदा के रहने वाले पंडित एवं ज्योतिषी धर्मेंद्र दुबे से पूजा पाठ के दौरान किन नियमों को ध्यान में रखना चाहिए।

इस दिशा में होना चाहिए मंदिर
हिन्दू धर्म में वास्तु शास्त्र को विशेष महत्व दिया जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में मंदिर या पूजा का स्थान ईशान कोण यानि उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए। इसके अलावा पूजा पाठ के दौरान आपका मुख उत्तर पूर्व दिशा में हो तो यह बेहद शुभ माना जाता है।

कब कब करनी चाहिए पूजा
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार पूजा-पाठ सूर्योदय होते ही करनी चाहिए और शाम को सूर्यास्त होने से पहले ही पूजा कर लेना उचित होता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार समय के साथ दैवीय शक्तियों में भी बदलाव आता है। इसके अलावा हिन्दू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि यदि पूजा-पाठ ब्रम्हमुहूर्त में की जाए तो यह विशेष फलदायी होती है।

दीपक जलाने का महत्व
हिन्दू धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा पाठ के पहले दीपक जलाने का विशेष महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं में दीपक जलाना शुभता का प्रतीक माना गया है। पूजा पाठ के दौरान दीपक जलाने से घर की नकारात्मकता नष्ट होती है और घर का वातावरण शुद्ध होता है।

आरती करने का क्या है सही तरीक़ा
धर्म शास्त्रों में पूजन, हवन और आरती करने की सही विधि का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार आरती करते समय आप जिस स्थान पर खड़े हैं, वहीं खड़े रहना चाहिए, और देवी-देवताओं के सामने थोड़ा सा झुक कर आरती करनी चाहिए। आरती करते समय आरती की थाल को 4 बार भगवान के चरणों में, दो बार नाभि में, एक बार मुख और सात बार सभी अंगों पर घुमाना चाहिए।

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