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India at Paris Paralympics: पेरिस पैरालंपिक में भारत ने शुरुआती दो दिन के भीतर 4 पदक जीते हैं। इसमें से तीन को बेटियों ने हासिल किए हैं। इसमें अवनि लखेरा, मोना अग्रवाल और प्रीति पाल शामिल हैं। आइए उनकी कहानी जानते हैं।

India at Paris Paralympics: पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारत की बेटियां कामयाबी का परचम बुलंद कर रही। कोई बिना हाथ के निशाना साध रहा तो कोई व्हीलचेयर पर बैठकर सीधे गोल्ड पर निशाना लगा रहा। इन खिलाड़ियों का जज्बा और हौसला इतना बुलंद है कि इनसे हर को प्रेरणा ले सकता है। मुश्किलों से हारने के बजाए इन बेटियों ने लड़ाई लड़ी और आज दुनियाभर में देश का मान बढ़ा रहीं। 

सबसे पहले बात अवनि लखेरा की। अवनि ने टोक्यो पैरालंपिक की कामयाबी को पेरिस में भी दोहराया। उन्होंने पेरिस पैरालंपिक में भारत की झोली में पहला गोल्ड मेडल डाला। ये उनका लगातार दूसरा गोल्ड मेडल है। अवनि की कामयाबी हर इंसान के लिए प्रेरणा से कम नहीं। अवनि भी किसी आम इंसान की तरह ही थी। लेकिन, 11 साल की उम्र में एक सड़क हादसे ने उनकी जिंदगी पूरी तरह बदलकर रख दी।

हंसती-खेलती अवनि की रीढ़ की हड्डी में काफी चोट आई। इसके बाद उन्हें कमर के नीचे लकवा मार गया। इसके बावजूद उन्होंने हौसला नहीं हारा और शूटिंग में हाथ आजमाया और आज पेरिस में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत इतिहास रच दिया। 

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अवनि लखेरा ने जिस इवेंट में पेरिस पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीता उसी में राजस्थान की एक और बेटी मोना अग्रवाल ने ब्रॉन्ज मेडल अपनी झोली में डाला। य़े मोना का पहला पैरालंपिक है। लेकिन, उन्होंने डेब्यू पैरालंपिक में ही पदक जीतकर अपनी काबिलियत का लोहा मनवा दिया। मोना की जिंदगी भी आसान नहीं रही। मोना ने महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल इवेंट (SH1) इवेंट में कांस्य पदक जीता। 

मोना 36 साल की उम्र में पैरालंपिक पहुंचीं
36 साल की उम्र में वो पैरालंपिक में पहुंचीं। वो दो बच्चों की मां हैं। मोना पूरे एक साल की भी नहीं हुई थी, जब वो पोलियो की चपेट में आ गईं। उनके दोनों पैरों में पोलियो हो गया था। लेकिन, ये दुश्वारी भी उनका रास्ता नहीं रोक पाई और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हुए वो यहां तक पहुंच गई।

अवनि और मोना की तरह ही प्रीति पाल ने भी पेरिस पैरालंपिक में देश के लिए मेडल जीता है। उन्होंने इन खेलों के ट्रैक एंड फील्ड इवेंट में भारत को पहला पदक दिलाया। प्रीति उत्तर प्रदेश से आती हैं। जन्म से ही शारीरिक रूप से कमजोर थीं। कमजोर और असामान्य पैर होने की वजह से उन्हें बहुत सी परेशानियों का बचपन से ही सामना करना पड़ा। उन्हें 6 साल की उम्र में कैलिपर तक पहनने पड़े। इसके बावजूद वो हारी नहीं और पैरा एथलीट बनीं और पेरिस पैरालंपिक में कामयाबी की नई कहानी गढ़ी। 

पैरों से तीरंदाजी करती हैं शीतल
शीतल देवी के हाथ नहीं हैं और वो पैरों से आर्चरी करती हैं। उनके जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है। वो बिना हाथों के प्रतिस्पर्धा करने वाली दुनिया की पहली और इकलौती सक्रिय महिला आर्चर हैं। पेरिस पैरालंपिक के क्वालिफिकेशन राउंड में उन्होंने विश्व रिकॉर्ड तोड़ा था। उन्होंने 2024 के एशियन पैरा गेम्स में 2 गोल्ड मेडल जीते थे।

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