Paris Olympic 2024: ओलिंपिक के 34वें एडिशन की शुरुआत हो चुकी है। भारत को शूटिंग की विमेंस कैटेगरी में आज मेडल मिलने की उम्मीद है। मनु भाकर इसे हासिल करा सकती है। भारत को पिछले ओलिंपिक गेम्स में महिलाओं ने बड़ा गौरवान्वित किया। 

भारत के पिछले 15 में से 7 मेडल विमेंस कैटेगरी में आए। लेकिन इसकी शुरुआत की किसने? आखिर कौन थी वो महिला ओलिंपियन जिसने भारत को विमेंस कैटेगरी में पहला मेडल दिलाया था। जानते हैं इस स्टोरी में...

आंध्र प्रदेश में जन्मीं 
आंध्र प्रदेश के एक छोटे से गाँव वोसवानिपेटा में जन्मी कर्णम मल्लेश्वरी ने भारतीय खेल जगत में एक ऐसी कहानी लिखी, जिसने देश को गौरवान्वित किया। एक साधारण परिवार से आने वाली मल्लेश्वरी ने अपनी लगन, दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से वेटलिफ्टिंग की दुनिया में अपना नाम रोशन किया।

मल्लेश्वरी का बचपन किसी आम लड़की से अलग नहीं था। लेकिन खेल के प्रति उनका जुनून उन्हें बाकियों से अलग बनाता था। 12 साल की उम्र में उन्होंने वेटलिफ्टिंग की शुरुआत की और कुछ ही समय में उन्होंने इस खेल में महारत हासिल कर ली। 

1993 में जीता वर्ल्ड चैंपियनशिप मेडल 
साल 1993 में विश्व चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा दिया। इसके बाद तो उन्होंने लगातार सफलता के झंडे गाड़े। 1994 और 1995 में विश्व चैंपियन बनकर उन्होंने भारत का नाम विश्व पटल पर चमकाया।

हालांकि, ओलंपिक पदक उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी। 1994 और 1998 के एशियाई खेलों में उन्हें रजत पदक से ही संतोष करना पड़ा। लेकिन हार नहीं मानी। 

सिडनी ओलिंपिक में मिली कामयाबी 
उन्होंने अपनी कमियों पर काम किया और आखिरकार साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में इतिहास रच दिया। उन्होंने वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीतकर भारत के लिए पहला ओलंपिक पदक जीतने वाली महिला बन गईं। इसी के साथ उन्होंने देश में महिलाओं के लिए खेल के क्षेत्र में एक नई राह भी दिखाई।

एथेंस ओलिंपिक में मिली निराशा
सिडनी ओलंपिक के बाद भी मल्लेश्वरी ने खेलना जारी रखा, लेकिन दुर्भाग्य से 2004 के ओलंपिक में वह पदक नहीं जीत पाईं। इसके बाद उन्होंने संन्यास ले लिया। हालांकि, खेल के प्रति उनका समर्पण आज भी युवाओं को प्रेरित करता है। उन्हें भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न और पद्म श्री जैसे सम्मानों से भी नवाजा गया है।

कर्णम मल्लेश्वरी सिर्फ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। उन्होंने साबित किया कि दृढ़ इच्छाशक्ति और कड़ी मेहनत से कोई भी मुकाम हासिल किया जा सकता है। वह भारत की शक्ति की प्रतीक हैं और उनकी कहानी हमेशा देशवासियों को प्रेरित करती रहेगी।