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Yogesh Kathuniya: भारत के योगेश कथूनिया ने पेरिस पैरालंपिक के men's discus throw F56 event में रजत पदक जीता है। इससे पहले, उन्होंने टोक्यो में भी सिल्वर मेडल जीता था।

Yogesh Kathuniya Silver medal in men's discus throw F56 event: भारत के योगेश कथुनिया ने सोमवार,को पेरिस पैरालिंपिक 2024 में मेंस डिस्कस थ्रो F56 स्पर्धा में रजत पदक जीता। उन्होंने इससे पहले, टोक्यो पैरालंपिक में भी सिल्वर मेडल जीता था।योगेश ने स्टेड डी फ्रांस स्टेडियम में 42.22 मीटर के सीजन-बेस्ट थ्रो के साथ अपनी सफलता को दोहराया। अपने 6 प्रयासों में, योगेश ने पहले प्रयास में ही अपना बेस्ट प्रदर्शन किया।

अपने करियर में कई पदक जीतने वाले भारतीय पैरा-एथलीट योगेश का लक्ष्य स्वर्ण पदक था। लेकिन ब्राजील के क्लॉडनी बतिस्ता ने 46.86 मीटर के थ्रो के साथ पैरालिंपिक रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीता। योगेश ने अपने सीजन-सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ अच्छी शुरुआत की थी, लेकिन अपने शेष 5 प्रयासों में, वह अपने पिछले प्रयास से बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाए। 

यह पेरिस पैरालिंपिक में भारत का 8वां पदक था - पैरा-एथलेटिक्स में उनका चौथा। इससे पहले रविवार, 1 सितंबर को भारत ने एथलेटिक्स में एक कांस्य और एक रजत पदक जीता था। रविवार को निषाद कुमार ने ऊंची कूद में रजत पदक जीता, जबकि प्रीति पाल ने 200 मीटर में कांस्य पदक जीतकर एथलेटिक्स में अपना दूसरा पदक हासिल किया।

कौन हैं योगेश कथूनिया?
3 मार्च, 1997 को भारत के बहादुरगढ़ में जन्मे योगेश कथूनिया ने डिस्कस थ्रो में सफलता की ऊंचाई हासिल करने के लिए कई चुनौतियों को पार किया। दृढ़ संकल्प,और परिवार के अटूट समर्थन की शक्ति की वजह से योगेश इस मुकाम तक पहुंचे हैं।

9 साल की छोटी उम्र में योगेश गुलियन-बैरी सिंड्रोम , एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के शिकार हो गए थे। इसकी वजह से उन्हें दो साल तक व्हीलचेयर पर रहना पड़ा था। इस बीमारी की वजह से उनकी नसें कमजोर हो गईं थीं। इसी वजह से वो चल तक नहीं पाते थे। लेकिन, उनकी मां मीना देवी ने अपने बेटे को छोड़ने से इनकार कर दिया। 

उन्होंने योगेश को अपने पैरों पर दोबारा खड़ा करने के लिए फिजियोथेरेपी सीखी और अपने अथक प्रयासों से, वह तीन साल के भीतर फिर से चलने में सक्षम हो गए। योगेश का पैरा स्पोर्ट्स से परिचय 2016 में हुआ जब वह दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में पढ़ रहे थे। छात्र संघ के महासचिव सचिन यादव ने उन्हें पैरा एथलीट्स के वीडियो दिखाकर खेलों को अपनाने के लिए प्रेरित किया। इस अनुभव ने योगेश के अंदर जुनून जगाया और जल्द ही उसे डिस्कस थ्रोइंग का शौक हो गया। उन्होंने पैरा एथलेटिक्स स्पर्धाओं में भाग लेना शुरू कर दिया और जल्द ही उन्हें सफलता मिलनी शुरू हो गई।

2018 में, योगेश ने बर्लिन में विश्व पैरा एथलेटिक्स यूरोपीय चैंपियनशिप में 45.18 मीटर डिस्कस फेंककर F36 श्रेणी में विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस उपलब्धि ने पैरा एथलेटिक्स में उनके उल्लेखनीय करियर की शुरुआत की। उन्होंने टोक्यो में 2020 पैरालिंपिक में पुरुषों की डिस्कस थ्रो F56 स्पर्धा में रजत पदक जीता, एक ऐसी उपलब्धि जिसने उन्हें 2021 में अर्जुन पुरस्कार दिलाया था। 

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