आनंद राणा. नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव में बिहार में 12 सीटें जीतने के बाद से उत्साहित जदयू की निगाह अब अगले साल होने वाले राज्य के विधानसभा चुनाव पर टिकी है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में जदयू के लिए नतीजे कोई खास उत्साहजनक नहीं रहे थे। एनडीए में शामिल रही नीतीश की पार्टी 115 सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र 43 सीटें ही जीत पाई थी। भाजपा ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा और 74 सीटों पर सफलता हासिल की थी। विकासशील इंसान पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा और 4 जीती।
राजद और कांग्रेस का समीकरण
हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा 7 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी और 4 पर विजय प्राप्त की। एनडीए की इन चार पार्टियों के मुकाबले महागठबंधन में शामिल राजद 144 सीटों पर लड़ी और 75 पर जीत दर्ज की। कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव मैदान में उतरी और महज 19 ही जीत पायी। भाकपा माले लिबरेशन को 19 सीटें मिली और 12 पर सफल रही। भाकपा 6 पर लड़ी और 2 पर कामयाब रही। भाकपा मार्क्सवादी ने 4 सीटों पर चुनाव फाइट किया और 2 अपने खाते में ले पायी।
फिर से 115 सीटों पर लड़ना चाह रही जदयू
जाहिर है अबकी बार भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में अपने स्कोर के बलबूते जदयू से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा करेगी। ऐसे में नीतीश कुमार की जदयू के सामने भाजपा के बराबर सीटें पाने की चुनौती गठबंधन के भीतर रहेगी। जदयू सूत्रों का कहना है कि हमने लोकसभा चुनाव में 12 सीटें जीतकर अपनी ताकत साबित की है, हम पिछले विधानसभा चुनाव की तर्ज पर कम से कम 115 सीटों पर चुनाव लड़ने का हक रखते हैं। दूसरी तरफ भाजपा हाईकमान इस कोशिश में रहेगा कि 115 में से मात्र 43 सीटें जीत पाने के स्ट्राइक रेट को जदयू के सामने रखकर 2025 के विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर बात हो।
120 सीटों पर लड़ना चाह रही बीजेपी
भाजपा की कोशिश रहेगी की नीतीश कुमार की पार्टी जदयू को अगले साल होने वाले चुनाव में 90 सीटों के आसपास देकर मनाया जाए। भाजपा खुद कम से कम 120 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है और बाकी बची 33 सीटों पर एलजेपी, हम और अन्य सहयोगियों लड़ाना चाहती है। नीतीश कुमार को लगता है कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद अब केंद्र में एनडीए की सरकार में जदयू अहम हिस्सा है और अब भाजपा नेतृत्व उसकी किसी मांग को हलके में नहीं ले सकता है।
बीच मझधार फंस चुकी है बीजेपी
इसी समीकरण के चलते नीतीश चाहते हैं कि जदयू को पिछले विधानसभा चुनाव जितनी सीटें गठबंधन के तहत दी जाएं। जबकि भाजपा हाईकमान की बहुत पुरानी इच्छा है कि बिहार में एक दिन उसका मुख्यमंत्री बने। यह तभी संभव है जब पार्टी के पास सीटों की ताकत हो। हालांकि बिहार के राजनैतिक समीकरण ऐसे हैं कि थर्ड फैक्टर यानी राजद खेल में बड़े खिलाड़ी के तौर पर शामिल है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को पता है कि नीतीश कुमार पर ज्यादा दबाव डाला तो वे पाला बदलने में देर नहीं करेंगे।
पाला बदलने में वक्त नहीं लगाते नीतीश
ऐसा नीतीश का रिकार्ड भी रहा है। दरअसल नीतीश किस्मत के धनी हैं और लंबे वक्त से उनके दोनों हाथों में लड्डू रहे हैं। भाजपा से बात बिगड़ती है तो वे लालू यादव की पार्टी राजद से जुगलबंदी कर लेते हैं और राजद से अनबन होती है तो भाजपा से आ मिलते हैं। भाजपा की दिक्कत ये है कि लालू यादव से हाथ नहीं मिला सकती और पूर्ण बहुमत विधानसभा चुनाव में मिल नहीं पाता है। देखना यह है कि अगले साल सीट बंटवारे में भाजपा और जदयू में से कौन इक्कीस साबित होता है।