टेकचंद कारचा-तखतपुर। गुजरात के भरूच इलाके में घूमने गए वनक परिवार के एक युवक को चीकू इतना पसंद आया कि उसने वहां से पौधे लाकर नगर में 25 एकड़ जमीन पर नर्सरी शुरू की। आज उन रोपे गए पौधे पेड़ बन चुके हैं और उनसे मिलने वाले चीकू से नगर के वनक परिवार की अच्छी खासी कमाई भी हो रही है।
आज हो रही अच्छी खासी कमाई
सन 1900 में जब देश को स आजादी दिलाने के लिए लड़ाई चल रही थी तब पूरा देश अव्यवस्था के दौर से गुजर रहा था। देश की माली हालत तंग थी। ऐसे में कई परिवार देश में व्यवसायिक दृष्टिकोण से नए ठिकाने की तलाश कर रहे थे। ऐसे ही गुजरात भरूच निवासी बोहरा समाज के लोग भी भारत के कोने कोने में व्यवसायिक वातावतरण देखकर अपना ठिकाना बनाते जा रहे थे।
25 एकड़ जमीन में लगाई नर्सरी
ऐसे में वनक परिवार के साल्हेभाई वनक जो 1900 में तखतपुर में आकर अपनी आजीविका चला रहे थे इनके दो पुत्र असगर भाई वनक और ताहेर भाई वनक तखतपुर में ही रहकर जीवन यापन कर रहे थे। तभी परिवार के किसी कार्यक्रम में आजादी के बाद लगभग 1950 में अपने परिजनों से मिलने के लिए गुजरात के भरूच गए तब वहां पर चीकू फल खाया ।उन्हें यह बहुत पसंद आया । वहां से वे आम, चीकू, लीची के पौधे लेकर आए और नदी किनारे 25 एकड़ जमीन में उस समय नर्सरी लगाई जब नर्सरी की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। धीरे धीरे चीकू का व्यापार फैलने लगा। इस फल की मिठास ने ताहेर भाई वनक और असगर भाई वनक को एक नई पहचान दिलाई। चीकू की लोकप्रियता के कारण प्रसिद्ध हुए ताहेर भाई वनक सन 1979 में कांग्रेस की टिकट से तखतपुर विधानसभा का चुनाव भी जीते।
तखतपुर की पहचान चीकू के नाम
अब्बास वनक ने बताया कि आज शहर में अश्रफ बगीचा के नाम से प्रसिद्ध चीकुओं को नगर सहित आसपास के शहर काफी पसंद कर रहे हैं। लोग मिठाई के बजाए अपने रिश्तेदारों को चीकू भेजना अधिक पसंद करते हैं। आज तखतपुर की पहचान चीकू के नाम से भी होती है। नगर के वार्ड क्रमांक 13 के 25 एकड़ में फैले अशरफ बगीचा के नाम से प्रसिद्ध इस क्षेत्र में वर्तमान में 126 चीकू के पेड़ हैं। मार्च महीने में इसमें फल लगना शुरू हो जाता है जो जुलाई अंतिम तक चीकू बाजार में दिखता रहता है। इसी समय देश के कोने कोने में चीकू वहां से जाता है। लगभग प्रतिदिन 100 किलो से भी अधिक चीकू तोड़े जाते हैं।