बेमेतरा। छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में जिला शिक्षा प्रशिक्षण संस्थान द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति के विकास पर चार दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन हुआ। जिसमें बेमेतरा, साजा, बेरला, नवागढ़ विकासखण्ड से कुल 100 शिक्षक और शिक्षिकाओं ने भाग लिया। समापन समारोह के मुख्य अतिथि संस्थान के प्राचार्य जेके घृतलहरे भी उपस्थित थे।
इस समापन समारोह को संबोधन करते हुए प्राचार्य ने कहा कि, हमारी छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति बहुत समृद्ध है। छत्तीसगढ़ की हमारी सुंदर भाषा और सुंदर संस्कृति को अक्षुन्य बनाये रखने पर बल दिया। आज हम लोग और हमारे बच्चे छत्तीसगढ़ की सुंदर संस्कृति, बोली भाषा को भूलते जा रहे हैं। उन्हें हमारी सुंदर और महान संस्कृति को बताने की अत्यंत आवश्यकता है। कक्षा पहली से लेकर कक्षा बारहवीं तक के बच्चों को हमारी सुंदर संस्कृति को स्मरण करने की आवश्यकता है बच्चों की नींव को आज मजबूत करने की आवश्यकता है। संस्कार के अभाव में आज बच्चे दिग्भ्रमित हो रहे हैं रास्ता भटक रहे हैं। जिसके फलस्वरूप बाल्यावस्था में होने वाले अपराधों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
संस्कृति और संस्कार बच्चों को सही मार्ग में लाएंगे
उन्होंने आगे कहा कि, छत्तीसगढ़ की सुंदर संस्कृति और संस्कार ही उन्हें सही मार्ग पर ला सकते हैं। यह कार्य बच्चों के माता-पिता के अलावा सिर्फ शिक्षक ही कर सकते हैं। मुझे जिला नोडल अधिकारी थलज कुमार साहू ने बताया कि, नई शिक्षा नीति (NEP 2020) में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि, कक्षा पहिली से पांचवी तक के बच्चों की पढ़ाई उनके मातृ भाषा में ही होनी है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को छत्तीसगढ़ी भाषा और छत्तीसगढ़ की संस्कृति से परिचय करना बहुत जरूरी हो गया है। छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति हमारी आत्मा है। हमें स्कूली बच्चों को स्थानीय बोलचाल की भाषा व संस्कृति के प्रति जागरूक करना है और उन्हें बताना है।
छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की प्रदर्शनी लगाई गई
प्राचार्य ने आगे कहा कि, प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान छत्तीसगढ़ी व्यंजनों की सुंदर प्रदर्शनी भी लगाई गई। जिसमें लगभग 40 प्रकार के छत्तीसगढ़ी व्यंजन की सुंदर प्रदर्शनी लगाई गई। इन व्यंजनों को प्राचार्य सहित सभी अकादमिक सदस्यों ने टेस्ट करके देखा, और खुशी जाहिर की। डाइट के छात्राध्यापकों ने भी इन स्वादिष्ट व्यंजनों का लुफ्त उठाया। प्राचार्य ने यह भी कहा कि, सप्ताह में एक दिन स्कूली छात्रों के बीच गतिविधि कराई जाय, जिससे बच्चों को खुला मंच मिल सके और स्थानीय बोली भाषा व संस्कृति को समझ सके। छत्तीसगढ़ी भाषा एवं संस्कृति के विकास के ऊपर डाइट व्याख्याता व इतिहासकार डॉ बसुबंधु दीवान ने छत्तीसगढ़ी में बहुत सुंदर अपनी बातें रखी। अपने उद्बोधन में छत्तीसगढ़ की माटी की महक को संरक्षित और संवर्धन करने की दिशा में जोरदार प्रयास करने पर बल दिया। हमें छत्तीसगढ़ी बोलने शर्म नहीं अब हमें गर्व का अनुभव होना चाहिए। छत्तीसगढ़ी हमारी मातृभाषा है, महतारी भाषा है, बच्चे सर्वप्रथम अपनी मां से यही भाषा सीखतें है। छत्तीसगढ़ी भाषा में वह ताकत है जो बच्चों के बीच अपनेपन का एहसास कराता है।
छत्तीसगढ़ी संस्कृति को जीवित रखना है
उन्होंने आगे कहा कि, आज हम सब लोग अपनी छत्तीसगढ़ की सुंदर संस्कृति को भूलते जा रहे हैं अगर इस हमारी संस्कृति को जीवित रखना है, उसे आगे बढ़ाना है, तो इसे हमें बच्चों के बीच ले जाने की अत्यंत आवश्यकता है और यह कार्य हमारे शिक्षक बखूबी कर सकते हैं। आप सब शिक्षक शिक्षिकाओं का दायित्व है कि हम अपने मातृभूमि की भाषा छत्तीसगढ़ की संस्कृति को बहुत आगे तक ले जाएं जिस पर हर छत्तीसगढ़ वासी को गर्व की अनुभूति हो सके और छत्तीसगढ़ी भाषा बोलते समय हमारा सिर गर्व से ऊंचा उठ सके। तथा छत्तीसगढ़ की भाषा और संस्कृति को हम पूरे विश्व में सर्वश्रेष्ठ बना सके। हमारी संस्कृति और हमारा संस्कार ही है जो हमें एक आदर्श व्यक्ति बनाता है। छत्तीसगढ़ की माटी की महक को चारों ओर बिखेरना है। हमारा छत्तीसगढ़ और उनकी पावन भूमि देवी देवता और ऋषि मुनि का धाम है हमारा छत्तीसगढ़ प्रदेश माता कौशिल्या का मायका और भगवान राम का मामा का धाम है हमारी मिट्टी और हमारी भाषा के ऊपर हम सब को गर्व होना चाहिए।