रायपुर। तिरुपति मंदिर में बांटे जा रहे प्रसाद में मिलावटी घी का मामला सामने आने के बाद देशभर के मंदिरों में विशेष सावधानी बरती जा रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ के देवी मंदिरों में दशकों पहले ही इससे संबंधित व्यवस्था निर्मित की जा चुकी है। मिलावटी घी की आशंका को देखते हुए यहां घी के ज्योति कलश पहले ही प्रतिबंधित किए जा चुके हैं। इन मंदिरों में सिर्फ तेल की ही ज्योति कलश प्रज्ज्वलित की जा रही है। 

कई मंदिर ऐसे भी हैं, जो शुद्धता का ध्यान रखते हुए केवल सरकारी कंपनी देवभोग से ही खरीदे गए घी से ज्योति जला रहे हैं। इनमें ना केवल छग के प्राचीन और सिद्ध मंदिर शामिल हैं, बल्कि राजधानी के भी छोटे-बड़े मंदिरों में दशकों से घी के ज्योति कलश बैन कर दिए गए हैं। इसके अलावा मंदिरों में वितरित किए जाने वाले प्रसाद में भी घी का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। इसके स्थान पर ऐसे प्रसाद को शामिल किया गया है, जिसके निर्माण में घी की आवश्यकता नहीं होती हो। पंचमेवा, मिश्री, नारियल, फल जैसे प्रसाद भक्तों को दिए जा रहे हैं, ताकि शुद्धता पूरी तरह से बनी रहे।

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दंतेश्वरी मंदिर, रायपुर 

नहीं बांटते घी से बने प्रसाद, ज्योति भी नहीं: महामाया मंदिर के अलावा अन्य देवी मंदिरों में भी मात्र तेल के ज्योति कलश ही प्रज्ज्वलित किए जा रहे हैं। दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी यशवंत सिंह ने बताया कि बीते पांच वर्षों से शुद्धता को ध्यान में रखते हुए मात्र तेल की ज्योति कलश प्रज्ज्वलित की जा रही है। प्रसाद के रूप में सिर्फ पंचमेवा और मिश्री अथवा फल देते हैं। निजी कंपनियों द्वारा घी में की जा रही मिलावट को देखते हुए शासन ने कहा है कि सरकारी कंपनी देवभोग द्वारा निर्मित घी का प्रयोग किया जाए ताकि मिलावट से बचा जा सके और लोगों की आस्था से खिलवाड़ ना हो

यहां घी की प्रथा ही नहीं

डोंगरगढ़ स्थित बम्लेश्वरी माता मंदिर में शुद्धता का ध्यान रखते हुए घी के ज्योति कलश जलाने की परंपरा कभी रही ही नहीं। मंदिर प्रबंधन के अनुसार, घी में सदैव ही मिलावट की आशंका होती है। इसे आसानी से पहचान पाना भी मुश्किल होता है। इसलिए मंदिर में शुरुआत से ही केवल तेल के ही ज्योति कलश जलाए जाते रहे हैं। यहां प्रसाद भी नारियल, चना, फल अथवा ऐसे मिष्ठान का दिया जाता है, जिसमें घी का इस्तेमाल ना होता हो।

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2004 में किया गया बंद

राजधानी रायपुर के सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित देवी मंदिर महामाया मंदिर में 2004 से घी के ज्योति कलश जलाना बंद कर दिया गया है। मंदिर ट्रस्ट के सचिव व्यास नारायण तिवारी ने बताया कि मिलावटी घी के कारण जहां आस्था से खिलवाड़ होता है, वहीं इसे जलाने से अत्यधिक कार्बन का उत्सर्जन होता है। मंदिर में प्रतिवर्ष 11 हजार ज्योति कलश जलाए जाते हैं। पहले घी और तेल दोनों ही इसमें शामिल होते थे, लेकिन बीते दो दशक से सिर्फ तेल की ही ज्योति कलश जलाई जा रही है।

केवल देवभोग घी का प्रयोग

दंतेवाड़ा। दंतेश्वरी मंदिर में शुद्धता मापदंड निर्धारित किए गए हैं। इसके चलते यहां मात्र सरकारी कंपनी देवभोग द्वारा निर्मित घी का प्रयोग किया जाता है। कोराना काल में देवभोग घी की सप्लाई नहीं होने के कारण दो साल तक यहां घी की ज्योति कलश नहीं जलाई जा सकी। केवल तेल के ही ज्योति कलश जलाए गए। लेकिन हालात सामान्य होने के बाद पुनः देवभोग घी का प्रयोग करते हुए ज्योति जलाई जा रही है।

निजी कंपनी को जगह नहीं

जगदलपुर। बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी मंदिर में इस साल नवरात्र पर नोवा घी की जगह देवभोग का घी उपयोग में लाया जाएगा। तिरुपति में बनाए जाने वाले लड्डू के घी में चर्बी और मछली का तेल पाया गया है। इसलिए छत्तीसगढ़ के मंदिरों में नवरात्र पर जलने वाले ज्योत में शुद्ध घी का उपयोग किए जाने के लिए शासन ने निर्देश जारी किए हैं। इस संबंध में तहसीलदार तथा टेम्पल कमेटी के सचिव रूपेश मरकाम ने हरिभूमि से चर्चा में कहा कि सोशल मीडिया गुरप में यह चल रहा है कि देवभोग का घी नवरात्र पर मंदिरों के ज्योत में उपयोग किया जाएगा। अभी तक इस संबंध में किसी तरह का आदेश नहीं मिला है। जैसा आदेश शासन से मिलेगा उसका परिपालन करते हुए उसी घी का उपयोग किया जाएगा। घी में शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी तक नवरात्र पर नोवा घी का उपयोग किया जाता रहा है।