रायपुर। प्रदेश के दूरवर्ती इलाकों में स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं, मगर राजधानी से सटे गांव की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दतरेंगा के 27 साल पुराने भवन में मरीजों का इलाज किया जा रहा है। आयुष्मान आरोग्य मंदिर में होने वाली ओपीडी से लेकर ऑपरेशन थियेटर की दीवारें सीलन से भरी हैं, छत का प्लास्टर पुराना होने की वजह से अपने आप गिर रहा है।
राज्य में सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए अच्छा भवन सहित विभिन्न योजनाएं बनाई जा रही हैं, मगर कई स्वास्थ्य केंद्र अभी भी विभागीय उपेक्षा के शिकार हैं, रोकार जिसमें से एक दतरेंगा का आयुष्मान आरोग्य मंदिर है। इस भवन का लोकार्पण जून 1997 में किया गया था और तभी से इस भवन में मरीजों का इलाज किया जा रहा है। 27 साल पुराना होने की वजह से भवन कमजोर हो चुका और वहां का चिकित्सकीय स्टाफ समय-समय पर जरूरी मरम्मत करवाकर मरीजों का इलाज कर रहा है। इस उप स्वास्थ्य केंद्र के ओपीडी से लेकर प्रसव के लिए बनाए गाए ऑपरेशन थियेटर सीलन से भरा हुआ है और छत टपक रही है, प्लास्टर उखड़कर गिर रहे हैं, मगर इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। अस्पताल के लिए नए भवन के लिए राशि मंजूर होने की चर्चा है, मगर काम अब तक शुरू नहीं हो पाया है।
गोबर की बदबू से हलाकान
इस आयुष्मान आरोग्य मंदिर के सामने बड़ा मैदान है, जो कीचड़ से अटा पड़ा है। बाहर गांव के मवेशी विचरण करते हैं और उनके गोबर से स्वास्थ्य केंद्र में आने वाले मरीज और वहां का चिकित्सकीय स्टाफ हलाकान है। हेल्थ सेंटर से संबंधित स्टाफ का कहना है कि उन्होंने इसकी जानकारी जनप्रतिनिधियों की दी है, मगर अब तक इसका समाधान नहीं निकल पाया है।
महीने में 6 सौ की ओपीडी
आयुष्मान आरोग्य मंदिर में आने वाले मरीजों की बीपी-शुगर की जांच के साथ सर्दी, खांसी, बुखार सहित अन्य समस्या का इलाज किया जाता है। यहां बच्चों और गर्भवती महिलाओं का नियमित टीकाकरण भी किया जाता है। आसपास के गांव का एकमात्र हेल्थ सेंटर होने की वजह से यहां हर महीने की ओपीडी छह सौ की होती है। इसके अलावा हर महीने यहां तीन से चार सामान्य प्रसव भी कराए जाते हैं।