राहुल भूतड़ा- बालोद। सावन के महीने में नागपंचमी का विशेष महत्व होता है। नागपंचमी के दिन लोग गोबर मिट्टी और अन्य चीजों के नाग बनाकर उसकी पूजा करते हैं। मगर बालोद जिले के ग्राम शिवनी में बसे आदिवासी सपेरों की बस्ती में नाग पंचमी के दिन विशेष पूजा होती है। जहां जिंदा सांपों को पकड़कर उनकी पूजा की जाती है, जिसे देखकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे। मगर ये सपेरे अब अपनी बस्ती से दूर खेतों के बीच झोड़पी बना कर रह रहे हैं। इनकी परम्परा है कि 6 माह के लिए ये लोग घर छोड़ कर बाहर ही जीवन यापन करते हैं। फिर 6 माह बाद अपने घर लौट जाते हैं। 

इस वक्त ये सपेरे तांदुला नहर के पास खुले आसमान में अपना डेरा बसाए हुए हैं और यहीं से जंगल की तरफ जाकर सांपों को पकड़ कर लाते हैं। इसके बाद गांव-गांव जा कर सांपों की पूजा करवा कर जो पैसे बनते हैं उन्हीं पैसों से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। ये सभी सपेरे आदिवासी समाज के लोग हैं। आदिवासी सपेरे सांपों को  पकड़कर उनका जहर निकालते हैं और फिर उन्हें मनोरंजन का साधन बना कर उनसे अपना जीवन यापन करते हैं। मगर नाग पंचमी के दिन ये सपेरे एक विशेष पूजा करते हैं। इस पूजा में सपेरे नाग पंचमी की सुबह से ही जंगलों में निकल जाते हैं और एक विशेष जड़ी-बूटी के साथ नए सांप को पकड़कर उसकी पूजा करते हैं। हर नागपंचमी को एक नए साँप की पूजा की जाती है। उनकी मान्यता है कि, यह इनके बूढ़ादेव हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। 

ये है पूजा की विधि

इस विशेष पूजा विधान में सांपों को शिवलिंग के पास रखा जाता है। वहीं बेल पत्ते से बनी झालर के नीचे यह पूजा की जाती है। इस पूजा में सपेरे और बस्ती के सभी लोग शामिल होते हैं। इनका मानना है कि, सांप को कभी भी मारना नहीं चाहिए। जहां भी साँप होने की सूचना मिलती है यह लोग पहुंच कर उन्हें बड़ी आसानी से पकड़ लेते हैं और फिर उन्हें जंगलों में छोड़ देते हैं।