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छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले में ग्राम अमेठी बूंद-बूंद पानी के लिए तड़प रहा है। इस गांव में चारों तरफ बस रेत ही रेत नजर आता है और पानी के लिए जूझते लोग।

कुश अग्रवाल - बलौदा बाजार। एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी "हर घर जल" और "जल जीवन मिशन" जैसी योजनाओं के ज़रिए हर घर तक नल से पानी पहुंचाने का दावा कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार जिले के पलारी विकासखंड का अमेठी गांव के निवासी पानी की भीषण समस्या से जूझ रहा है।

महानदी के किनारे बसे इस गांव के 120 घरों में आबादी लगभग 1200 है। लेकिन यहां न तो पीने का साफ पानी है और न ही निस्तार का। ये सिर्फ इस गांव की ही कहानी नहीं है, बल्कि नदी किनारे बसे दर्जनों गांव का भी यही हाल है। तस्वीर में आप देख सकते है इस भीषण गर्मी की मार और गिरते भूजल स्तर ने हालात को और खराब कर दिया है। महानदी भी पूरी तरह सूख चुकी है। चारों तरफ बस रेत ही रेत नजर आता है और पानी के लिए जूझते लोग। 

गड्ढा खोदकर ट्यूबवेल से खींचते हैं पानी

इसी गांव में साल 2012 में महानदी पर जल संसाधन विभाग के द्वारा एक एनीकट यानी पानी रोकने वाला बांध बनाया गया था, ताकि गर्मियों में नदी के दोनों किनारों के गांवों को पानी मिल सके। लेकिन आज इस एनीकट  में लगे  लोहे के गेट जर्जर हो चुके हैं, इनमें जंग लगने की वजह से जगह-जगह छेद हो गए हैं, जिससे पानी रुकता ही नहीं। पूरे 800 मीटर के एनीकेट में एक दर्जन लोहे के गेट बने हुए है। ये सभी क्षतिग्रस्त हो गए हैं। पानी के लिए ग्रामीण अब सुख चुकी नदी के बीच जेसीबी से 10 से 15 फिट गड्ढे खुदवाकर उसमें ट्यूबवेल से पानी खींचते हैं। यह दूरी भी नदी से गांव तक पानी लाने में करीब आधा किलो मीटर दूर तक खींच कर पहुंचना पड़ता है। तभी इस पानी से पीने, नहाने और दूसरे जरूरी काम किए जा रहे हैं। लेकिन यह गड्ढा रात में सूख जाता है, और अगले दिन फिर नया गड्ढा खोदना पड़ता है। 

पेयजल के लिए महानदी पर निर्भर 

ग्रामीणों के मुताबिक, जेसीबी का किराया 1000 रु प्रति घंटा है और एक गड्ढा बनाने में 4-5 घंटे लगते हैं। यह न सिर्फ शारीरिक बल्कि आर्थिक रूप से भी गांववालों पर भारी पड़ रहा है। कुछ लोगों का आरोप है कि एनीकट को जानबूझकर रेत माफियाओं ने नुकसान पहुंचाया है, ताकि उन्हें रेत निकालने में कोई रुकावट न हो। रेत से भरे पचासों टन वजनी भारी हाइवा इस एनीकट के उपर से गुजरते हैं। जिससे उसमें दरारें आ चुकी हैं। खनिज विभाग भी केवल दिखावे की कार्रवाई करता है। वही सरपंच का कहना है की लोग पेयजल के लिए महानदी पर निर्भर हैं। जब तक यह स्थाई निराकरण नहीं होता लोगों के पास पेयजल लाने के लिए नदी पर जाने के सिवाय दूसरा चारा नहीं होगा । 

धार्मिक संस्कारों के लिए भी समस्या

अधिकतर नदी किनारे के गांव वासी एवं नदी के आसपास 20 से 25 किलोमीटर दूर के लोग भी हिंदू धर्म के संस्कारों के अनुसार मृतक दिवंगत की अस्थियों एवं भस्म का विसर्जन महानदी में करने का नियम है, लेकिन जब वह यहां पहुंचते हैं तो यहां पानी की एक बूंद भी नहीं मिलने से उन्हें भी निराशा होती है सुखी नदी में ही उन्हें अस्थि प्रवाहित करना पड़ता है। और वे बिना स्नान किया ही वापस चले जाते हैं। सरकार भले ही करोड़ों रुपये खर्च कर योजनाएं बनाए। लेकिन जब तक जमीनी स्तर पर ईमानदारी से क्रियान्वयन नहीं होगा। तब तक आम जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। 

योजनाओं के लाभ से परेह है अमेठी ग्राम 

अमेठी गांव की यह तस्वीर दिखाती है कि, एक ओर सरकार विकास की बात करती है। वहीं गांव के हालात उन तमाम दावों की पोल खोल रहे है। ग्रामीण संघर्ष कर अपनी प्यास बुझा रहे हैं। सरकार की उन तमाम योजनाओं का क्या फायदा जब उनका लाभ ऐसे गम्भीर मामलों में भी काम न आ सके। अब जरुरत है, प्रशासन को मौके पर जाकर हकीकत देखने और तुरंत कार्रवाई करने की। ताकि जल जीवन मिशन का असली लाभ अमेठी जैसे गांवों तक पहुंचे।

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