जीवानंद हलधर- जगदलपुर। अब तक आपने बड़े- बड़े अस्पतालों में डिग्रीधारी सर्जन के द्वारा मरीजों का ऑपरेशन करते हुए देखा होगा। लेकिन बस्तर जैसे आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में बिना पढ़ा- लिखा लड़का अपने अनुभव और समझ के दम पर और कम पैसे पर डॉक्टर मुर्गों का इलाज करता है। लड़ाई के बाद ऑपरेशन कर उन्हें नई जिंदगी देने की काम कर रहा है। 

जब भी बस्तर की बात होती है तो ऐसे में यहां की संस्कृति और पुराने रीति रिवाजों के बारे हमेशा चर्चा होती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर के आदिवासी क्षेत्रों में ग्रामीणों के मनोरंजन के साधनों में शुमार है मुर्गा लड़ाई। बस्तर अंचल में मुर्गा लड़ाई का खेल सबसे ज्यादा प्रचलित है। यह यहां के आदिवासियों का पारंपरिक, सांस्कृतिक और मनोरंजन का खेल है जिसमें दांव लगाए जाते है। 

दो मुर्गों के बीच में होती है लड़ाई 

मुर्गा लड़ाई बस्तर संभाग के गांवों में खेली जाती हैं। यहां सप्ताह में हर दिन कहीं ना कहीं मुर्गा बाजार होता है। इस लड़ाई में शामिल होने के लिए आस- पास के गांव वालों के अलावा दूर-दूर से भी लोग आते हैं। इस लड़ाई में दो मुर्गों को आपस मे लड़ाया जाता है। लड़ाई के लिए पहले से ही मुर्गों को तैयार कर एक दूसरे से लड़ाया जाता है। इसमें जीतने वाला मुर्गे का मालिक हारने वाला मुर्गे को अपने साथ ले जाता है। मुर्गा लड़ाई में ग्रामीणों द्वारा मोटा दांव खेला जाता है

गांव में करता है मुर्गे का इलाज 

जीतने वाले को इस लड़ाकू मुर्गे से इतना लगाव हो जाता है कि, लड़ाई के दौरान कोई मुर्गे गंभीर रूप से घायल हो जाने से उसे दूर अस्पताल जाने की जरूरत नही पड़ती है। बल्कि, वहीं मुर्गा बाजार में ही मुर्गा क्लिनिक में गांव के ही युवा दवाई इंजेक्शन लगाकर उसे दुबारा लड़ाई के लिए तैयार कर देते हैं। उपचार करने वाला यह लड़का सिर्फ 20 से 25 रुपये लेता है। जिससे कुछ दिनों बाद मुर्गा भी स्वस्थ हो जाता है। जो कि, अब रोजगार का एक साधन बन गया है।