छत्तीसगढ़ के अलावा कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, ओडिशा, आंध प्रदेश के लोग होते हैं शामिल
एक-एक जोड़े पर एक दिन में लाखों का दांव भी
मावरम में होता है चार दिवसीय मुर्गा लड़ाई
आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में स्थित है भीमावरम शहर
रफीक खान - कोंटा। बस्तर के आखिरी छोर से सटे आंध्रप्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में स्थित भीमावरम शहर में हर बार की तरह इस साल भी मकर संक्रांति के अवसर पर सबसे बड़ा मुर्गा बाजार लगा चार दिनों तक चलने वाले इस मुर्गा बाजार में छत्तीसगढ़ के अलावा कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, उड़ीसा व आंध्र प्रदेश के लोग शामिल होते रहे हैं और इस बार भी बाजार पहुंच रहे हैं। इस परंपरागत बड़े और भव्य आयोजन के लिए बड़े मैदान में दर्जनों टेंट लगाए गए हैं और लोगों के आने एवं वाहनों के पार्किंग के लिए भी स्थान सुरक्षित रखा गया है। इस बाजार की खासियत यह है कि छह राज्यों से मुर्गा लड़ाई में दांव लगाने लग्जरी महंगी गाड़ियों से भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं। इस साल भी उनकी आमद हो रही है।
लाखों में बिकता है लड़ाकू मुर्गा
पारंपरिक एवं दादा, परदादा के जमाने से इन ग्रामीण क्षेत्रों में आयोजित होने वाली इस मुर्गा लड़ाई की विशेषता यह हैं कि मुर्गा जब जन्म लेता है, तब से उसके खान पान, पालन पोषण को लेकर व्यापारी पूरी मेडिकल सुविधा के साथ ध्यान देते हैं। मुर्गा जब जवान होता है तो उसके खान पान का खर्च प्रति दिन दो सौ रुपए तक रहता है। इस प्रकार एक अच्छे लड़ाकू मुर्गे को तैयार किया जाता है। जिसकी बिक्री 5 से 10 हजार से शुरू होकर लाखों में रहती है और ऐसे लड़ाकू मुर्गों पर दांव पांच लाख से शुरू हो कर दस व बीस लाख तक लगती है।
ऐसे चलता है खेल
लाउडस्पीकरों से प्रति दांव पर लगने वाले लाखों के दांव एवं दो प्रतिभागियों का नाम एनाउंस किया जाता है। एक-एक मुठों के पीछे लाखों रुपयों का दांव लगाया जाता है, पूरे दिन में करोड़ों का दांव यहां पर खेला जाता है। इस मुर्गा लड़ाई को लेकर महीना भर पहले से ही तैयारी की जाती है। मुर्गा लड़ाई को देखने के लिए कई परिवार बच्चों के साथ मकर संक्रांति उत्सव के रूप में देखने यहां पहुंचते हैं। मकर संक्काति पर्व पर आयोजित होने वाले इस खेल में जुटने वाले लोगों के लिए हर इंतेजाम रहता है, ताकि लोगों को परेशानियों का सामना न करना पड़े। साथ ही उनके खाने पीने से लेकर मनोरंजन तक का भी ख्याल रखा जाता है।