रविकांत सिंह राजपूत- मनेन्द्रगढ़। छत्तीसगढ़ के मनेन्द्रगढ़ जिले के नेत्रहीन विद्यालय के छात्र पैदल ही स्टिक के सहारे रोजाना 3 से 4 किमी का सफर तय कर स्कूल और कॉलेज जाते है। दौरान इन छात्रों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता। ऐसे में इन छात्रों की मांग है कि उन्हें बस की सुविधा मिल जाती तो स्कूल- कॉलेज पहुंचने की डगर आसान हो जाती। शासन की बेरूखी के कारण मजबूरी में जिस स्कूल में नेत्रहीन छात्र पढ़ाई करने जाते है‌ वहां इनके लिए कोई शिक्षक पदस्थ नहीं है।

आंखों से नहीं ‌सिस्टम से बेबस छात्र 

नेत्रहीन विद्यालय के छात्र पैदल ही स्टिक के सहारे रोजाना 3 से 4 किमी का सफर तय कर स्कूल और कॉलेज जाते है। सड़कों पर तेज दौड़ती गाड़ियों के बीच ये छात्र सड़क और फुटपाथ पार कर स्कूल कालेज पहुंचते है। गर्मी में सूरज की तेज  तपीस एवं बरसात में  पानी की बौछार इनके राह को मुश्किल बना देती है। ऐसे में इन छात्रों की मांग है कि उन्हें बस की सुविधा मिल जाती तो स्कूल- कॉलेज पहुंचने की डगर आसान हो जाती। शासन की बेरूखी के कारण मजबूरी में  जिस स्कूल में नेत्रहीन छात्र पढ़ाई करने जाते है‌ वहां इनके लिए कोई शिक्षक ही पदस्थ नहीं है। मजबूरन सामान्य छात्रों के‌ बीच केवल सुनकर पढ़ने को मजबूर है।

नेत्रहीन छात्रों को पढ़ाने के लिए ब्रेललिपि शिक्षक नहीं हैं

स्कूल में नहीं है ब्रेललिपि शिक्षक 

शरीर में विकलांगता एक प्रकार की लाचारी है लेकिन कुछ हुनरमंद लोग अपनी विकलांगता को अपनी ताकत बना लेते हैं। बुलंद इरादे के साथ प्रदेश के इकलौते नेत्रहीन विद्यालय के छात्र मन की आंखों से अपने जीवन‌ में उजाला  कर रहे है। तन की आंखों से तो सब पढ़ते है, लेकिन मन की आंखों से पढ़कर ये बच्चे अपना भविष्य गढ़ रहे है। रोजाना 3 से 4 किलोमीटर का सफर स्टिक के सहारे तय कर स्कूल पहुंचकर यह बच्चे  बिना शिक्षक के सामान्य छात्रों के बीच रह कर पढ़ रहे हैं। बिना किसी के सहारे यहां के 2 दर्जन से ज्यादा छात्र भीड़ - भाड़ वाले सड़कों से होते हुए  स्कूल, कॉलेज पहुंचते है। सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि जहां यह बच्चे पढ़ाई करने जाते हैं, वहां ब्रेललिपि का कोई शिक्षक ही नहीं है।