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लोकसभा चुनाव में भाजपा ने छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटें जीती हैं। अनुमान लगाया जा रहा था कि, मोदी मंत्रिमंडल में इस बार प्रदेश को कोई बड़ा मंत्रीपद मिल सकता है।

चन्द्रकान्त शुक्ला 

वे अजातशत्रु कहलाते हैं। वे कभी चुनाव नहीं हारे। विधानसभा के लिए वे लगातार आठ बार चुने गए। आठवीं बार जब वे चुने जाते हैं तो प्रदेश में सबसे बड़ी जीत उनके नाम दर्ज होती है। लोकसभा चुनाव में भी वे प्रदेश में सबसे ज्यादा मतों से जीत दर्ज करते हैं। स्कूल-कालेज के वक्त से ही पार्टी से जुड़े हैं। पार्टी जब कभी जो भी काम सौंपती है, वे पूरा करके ही लौटते हैं। हम यहां किसकी बात कर रहे हैं, सियासत में जरा सी भी रुचि रखने वाले समझ ही गए होंगे। जी हां...आपने सही समझा...हम यहां बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के नवनिर्वाचित सांसद बृजमोहन अग्रवाल की। 

किस कसौटी पर नहीं उतरे खरे

लगभग चालीस साल से वे राजधानी रायपुर के निर्वाचित जनप्रतिनिधि हैं। फिर उनके साथ ऐसा कौन सा किस्मत कनेक्शन है...जिसके चलते वे हर बार बड़े पद के करीब पहुंचकर चूक जाते हैं। प्रदेश में तो वे पांच बार मंत्री बन गए। लेकिन अब आगे सिर्फ सांसद बनकर रह जाएंगे। तो फिर लगभग पौने छह लाख मतों के रिकार्ड अंतर से जीत दर्ज करने वाले बृजमोहन अग्रवाल केंद्र में मंत्री बनने से कैसे चूक गए। वह कौन सी कसौटी थी...जिस पर बृजमोहन खरे नहीं उतरे। 

राज्य की राजनीति से दूर रखने की कोशिश

जिस दिन रायपुर लोकसभा क्षेत्र से बतौर प्रत्याशी बृजमोहन अग्रवाल का नाम घोषित हुआ, दो तरह की बातें सामने आने लगीं। उनके समर्थक कहने लगे कि, भैया इस बार केंद्र में बड़े मंत्री बनेंगे। वहीं पार्टी से जो खबरें छनकर आ रही थीं, उनमें कहा जा रहा था...निपटा दिए गए...। अब भला बृजमोहन अग्रवाल ने ऐसा क्या कर दिया कि, पार्टी उनको निपटाने की सोचेगी। सांसद बनाकर भला किसी नेता को निपटाना कैसे कहा जा सकता है। हां यह जरूर कहा जा सकता है कि, उन्हें राज्य की राजनीति से दूर रखने की कोशिश हो रही है।

अब रह गए केवल सांसद

लेकिन पार्टी बृजमोहन अग्रवाल को राज्य की राजनीति से दूर रखने की कोशिश क्यों करेगी? क्या पिछली कांग्रेस सरकार के मुखिया से दोस्ती की चर्चाओं में कोई दम था। क्या उस दौरान दोस्ती निभाने की शिकायतों को पार्टी के बड़े नेताओं ने गंभीरता से लिया है। क्या प्रदेश में भाजपा की नई सरकार बनते ही उनके बारे में खुद को सबसे ऊपर समझने जैसी चर्चाओं में दम था? इस बार छत्तीसगढ़ कैबिनेट में ज्यादातर नए चेहरों को मौका मिला है। कई दिग्गजों को केवल विधायक बने रहने दिया गया। लेकिन वह केवल बृजमोहन अग्रवाल ही थे, जिन्हें ना केवल मंत्री बनाया गया बल्कि सबसे महत्वपूर्ण विभाग भी दिया गया। तो क्या किस्मत या कसौटी नहीं बल्कि उनके अपने कर्मों के चलते ही अब वे केवल सांसद रह गए हैं?

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