रायपुर। उगते सूर्य को अर्घ्य देकर लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन हो गया। रायपुर के घाटों में तड़के व्रतियां पहुंची। व्रतियों ने छठी मैय्या को गन्ने, फल और उत्तर भारत में प्रचलित खास व्यंजन ठेकुआ भी अर्पित किया। पूजा की विधियों को पूरा कर पारण के साथ ही 36 घंटे का निर्जला व्रत का समापन हुआ। आयोजन में शामिल होने बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक घाट में नजर आए। सुबह से घाटों पर भक्तों का तांता लगा हुआ है, छठी मैया के गीत गूंज रहे हैं और लोग एक-दूसरे को प्रसाद का वितरण कर रहे हैं।
छठ पर्व का पूरे भारत में विशेष महत्व है। यह पर्व चार दिनों का होता है जिसमें पहले दिन खरना, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन सूर्य संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पहले दिन व्रती नदी में स्नान करके भात, कद्दू की सब्जी और सरसों का साग खाते हैं। दूसरे दिन खरना होता है, जहां शाम को गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाया जाता है और पूरा परिवार प्रसाद ग्रहण करता है। तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ के चौथे यानी अंतिम दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व का समापन होता है।
संतान की कामना और लंबी उम्र के लिए व्रत
छठ पूजा खासतौर पर संतान की कामना और लंबी उम्र के लिए की जाती है। छठी मैया सूर्यदेव की बहन हैं और इस पर्व पर इन दोनों की ही पूजा अर्चना की जाती है। चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में सात्विक भोजन किया जाता है। पहले दिन खरना, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन सूर्य संध्या अर्घ्य और चौथे दिन उगले सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
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छठ महापर्व की कथा
छठ पर्व के बारे में एक कथा है। कथा के अनुसार, महाभारत काल में द्रौपदी परिवार की सुख-शांति और रक्षा के लिए छठ मैय्या का व्रत किया था। जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है। यह भी कहा जाता है की त्रेता युग में माता सीता ने भी यह व्रत किया था।