परंपरा और आस्था का पर्व
छठ पूजा उत्तर और पूर्वोत्तर भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो सूर्य देवता की उपासना और छठी मइया को समर्पित होता है। यह पर्व खासतौर पर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है, पर आज ये पूरे भारत वर्ष के साथ ही विश्व के लगभग सभी देशों में भी श्रद्धा और भक्ति से मनाया जाने लगा है।
छठ पूजा का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। यह सूर्य देव की पूजा से संबंधित है, जो जीवन और प्रकृति का आधार माने जाते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्रौपदी और पांडवों ने भी कष्टों से मुक्ति के लिए छठ व्रत किया था। इसके अलावा, यह पर्व सूर्य देव की बहन छठी मइया को समर्पित माना जाता है।
छठ पूजा की तैयारियां नहाय-खाय से शुरू होती हैं, जो व्रत के पहले दिन की रस्म है। इस दिन व्रती महिलाएं गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान करके शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण करती हैं। अन्य व्यंजनों के साथ कद्दू की सब्ज़ी, अरवा चावल और चने की दाल का अनिवार्य भोजन होता है. दूसरे दिन ‘खरना’ की रस्म होती है, जिसमें महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं,और सूर्यास्त के बाद प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर, रोटी और अन्य वस्तुएं ग्रहण करती हैं। भूमि पर शयन, पूर्ण शुद्धि और मन में श्रद्धा लिए व्रती असीम उल्लास से भरी होती हैं..
तीसरे दिन व्रतधारी महिलाएं और उनके परिवार गंगा या अन्य जलाशयों के तट पर पहुंचकर डूबते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस दिन व्रती विशेष प्रसाद तैयार करती हैं, जिसमें ठेकुआ, नारियल, गन्ना और अन्य मौसमी फल शामिल होते हैं। सूप और बांस की टोकरियों में सजा कर इन सामग्रियों को सूर्य और छठी मां के निमित्त अर्पित किया जाता है.जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देना सामाजिक एकता और समर्पण का प्रतीक होता है।
छठ पूजा के अंतिम दिन व्रतधारी उगते सूर्य को अर्घ्य देते हैं। सुबह के समय जल में खड़े होकर यह अर्घ्य अर्पित किया जाता है। इस दिन व्रतधारी अपना कठिन उपवास समाप्त करते हैं, जिसे ‘परना’ कहा जाता है।
छठ पूजा में महिलाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। वे परिवार की सुख-शांति और समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं। यह पर्व सामाजिक समरसता का प्रतीक है, जहां हर जाति, वर्ग और धर्म के लोग मिलकर इस उत्सव में भाग लेते हैं। गंगा के घाट पर इकट्ठा होने से सामाजिक एकता और सहयोग की भावना को भी बल मिलता है।
छठ पूजा के दौरान जल, सूर्य और प्रकृति की उपासना की जाती है। यह पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देता है। व्रतधारी महिलाएं बिना प्लास्टिक का उपयोग किए प्रसाद तैयार करती हैं और नदी, तालाब को साफ-सुथरा रखने का प्रयास करती हैं!
आधुनिक समय में छठ पूजा का महत्व और बढ़ गया है। लोग अपने व्यस्त जीवन में थोड़ा समय निकालकर अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ने का प्रयास करते हैं। कई प्रवासी भारतीय भी छठ पूजा को विदेशों में धूमधाम से मनाते हैं, जिससे भारतीय संस्कृति का प्रचार-प्रसार होता है।
छठ पूजा के दौरान कई मान्यताएं और परंपराएं निभाई जाती हैं। व्रतधारी शुद्धता, पवित्रता और संयम का पालन करते हैं। पूजा का मुख्य उद्देश्य सूर्य देवता को धन्यवाद देना और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना करना होता है।
छठ पूजा एक ऐसा पर्व है, जो भारतीय समाज में एकता, आस्था और प्रकृति के प्रति प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व न केवल सूर्य देवता की उपासना है, बल्कि पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का भी माध्यम है। छठ पूजा हमें जीवन की सादगी, त्याग और प्रेम का महत्व सिखाती है।
छठ पूजा न केवल एक धार्मिक पर्व है, बल्कि यह सामाजिक एकता और पर्यावरण संरक्षण का पर्व भी है। यह पर्व हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है और हमें अपने परिवार और समाज के प्रति जिम्मेदार बनाता है। आइए, इस छठ पूजा पर हम सभी अपने भीतर प्रेम, समर्पण और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का भाव जगाएं और इसे धूमधाम से मनाएं।
आकांक्षा प्रफुल्ल पांडेय
बिलासपुर