धान से धन्य छत्तीसगढ़ : दलहन की दाल नहीं गली, तिलहन का निकला तेल
राज्य में पिछले 8 साल की ही बात करें तो धान का उत्पादन करीब 70 फीसदी बढ़ा है, लेकिन इसी अवधि में दलहन और तिलहन के उत्पादन में बड़ी कमी आई है। ;

रायपुर। छत्तीसगढ़ की खेती-किसानी में पिछले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव सामने आया है। राज्य में पिछले 8 साल की ही बात करें तो धान का उत्पादन करीब 70 फीसदी बढ़ा है, लेकिन इसी अवधि में दलहन और तिलहन के उत्पादन में बड़ी कमी आई है। हालांकि इस बीच राज्य सरकार ने किसानों को धान की जगह अन्य फसलों जैसे दलहन-तिलहन उगाने के लिए भी प्रोत्साहित किया,लेकिन इसका प्रभाव कम ही नजर आ रहा है। छत्तीसगढ़ में वर्ष 2015 से लेकर 2023-24 तक की स्थिति में प्रमुख फसलों के उत्पादन के आंकड़ों से खेती-किसानी में आए बदलाव और खासकर दलहन-तिलहन के उत्पादन में कमी की कहानी साफ हो जाती है।
राज्य में मोटे तौर पर देखा जाए तो यहां किसान खरीफ के सीजन में धान की खेती को सबसे ज्यादा उपयुक्त मानते हैं। वजह ये है कि यहां मानसून सीजन में होने वाली अच्छी बारिश धान के लिए बेहद अनुकूल है, लेकिन इससे भी बड़ी बात ये है कि किसानों को धान की जितनी कीमत (3100 रुपए प्रति क्विंटल) छत्तीसगढ़ में मिलती है, उतनी शायद देश में कहीं नहीं मिलती है। यही कारण है कि 2024-25 में सरकार ने किसानों से 149 लाख मीट्रिक टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदने के साथ ही 3100 रुपए समर्थन मूल्य के अंतर की राशि भी दी है। राज्य में वर्ष 2015-16 में धान का उत्पादन 7731.5 हजार मीट्रिक टन था, जो इसके बाद प्रायः हर साल बढ़ा है। 2023-24 में यह आंकड़ा 11040.20 हजार मीट्रिक टन जा पहुंचा है।
सिंचाई सुविधाओं की कमी
राज्य में करीब 35% कृषि भूमि पर ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है। दलहन और तिलहन की फसलें पानी की कमी के प्रति संवेदनशील होती हैं, जिसके कारण उपज में कमी आई है।
नए कीट और रोग
अरहर और सोयाबीन जैसी फसलों में नए कीटों और रोगों का प्रकोप बढ़ा है। उदाहरण के लिए, फली छेदक कीट ने अरहर की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है।
लगातार घट रहा उत्पादन
छत्तीसगढ़ में एक तरफ जहां धान की खेती में इजाफा हो रहा है, वहीं दूसरी ओर दलहन और तिलहन का उत्पादन लगातार कम होता दिख रहा है। दलहन में चना, तुअर, उड़द, मूंग-मोठ, कुल्थी और लाखड़ी (तिवरा) आता है। इसी प्रकार तिलहन में मूंगफली, रामतिल, तिल, सोयाबीन, अलसी और राई सरसों का उत्पादन होता । इन सभी फसलों के उत्पादन के आंकड़ों का ग्राफ गिर रहा है। हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर दलहन और तिलहन उत्पादन में 43% और 44% की वृद्धि दर्ज की गई है, लेकिन छत्तीसगढ़ में कई वर्षों में उत्पादन में कमी आई है। यह स्थिति चिंताजनक है, क्योंकि दलहन और तिलहन न केवल प्रोटीन और तेल का प्रमुख स्रोत हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
दलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता का संकल्प
खरीफ 2024-25 के तहत केंद्र सरकार ने मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के अंतर्गत 9 राज्यों आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में 13.22 लाख मीट्रिक टन तुअर की खरीद को मंजूरी प्रदान की है। नाफेड और एनसीसीएफ के माध्यम से किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर तुअर की खरीद की जा रही है। देश में मार्च, 2025 तक 1,71,569 किसानों से कुल 2.46 लाख मीट्रिक टन तुअर की खरीद की जा चकी है। यह कदम दलहन उत्पादन को बढावा देने और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य सुनिश्चित करने की दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
उत्पादन में आई इतनी कमी
छत्तीसगढ़ में अगर दलहन की उपज का हिसाब देखें तो चने का उत्पादन 2015-16 में 218.8 हजार मीट्रिक टन था, जो 2013-24 में घटकर 209.17 हजार मीट्रिक टन रह गया। तुअर दाल जो 8 साल पहले 30.6 हजार मीट्रिक टन हो रही थी, वह 20.63 पर आ गई है। इसी तरह उड़द 2015-16 में 28.91 के स्तर पर थी, वह 25.17 पर आई है। मूंग मोठ का और बुरा हाल है। यह 8 साल पहले 6.56 के स्तर पर थी, जो अब यानी 2023-24 आने तक 1.29 हजार मीट्रिक टन पर आ गई है। कुल्थी 15.09 से घटकर 6.56, लाख तिवरा 192.1 पर था, जो 8 साल बाद 93.4 पर आ पहुंचा है।इसी प्रकार तिलहन की बात करें तो 2015-16 के मुकाबले 2023-24 तक इसके उत्पादन में भी कमी दिखती है। मूंगफली जो 2015-16 में 37.25 हजार मीट्रिक टन उत्पादन दे रही थी, वह 2023-24 में कम होकर 31.65 पर आ पंहुची। रामतिल 10.24 से घटकर 3.85, तिल 6.82 से 5.2, सोयाबीन 40.12 से घटकर 25.56, अलसी 9.45 से घटकर 3.68 और राई सरसों जो 2015-16 में 25.96 हजार मीट्रिक टन पैदा हुई थी वह 2023-24 में कम होकर 14.41 पर आ गई।