छत्तीसगढ़ की माटी खुद में प्रदेश की सांस्कतिक, धार्मिक, सामाजिक, प्राकृतिक संपदाओं को समेटे हुए है। यहां की लोक-कला, जंगल, यहां की नदियां, यहां के लोग, यहां की ऐतिहासिक विरासत बेजोड़ है। बेमिसाल बस्तर से शानदार सरगुजा तक छत्तीसगढ़ में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। छत्तीसगढ़ खुद में हर वो चीज समेटे हुए है जो एक पर्यटक के तौर पर आप देखना चाहते हैं। हमारी पेशकश के जरिए हम आपको छत्तीसगढ़ की ऐसे ही जगहों की सैर कराएंगे। आज हम आपको दे रहे हैं ‘छत्तीसगढ़ का खजुराहो’ भोरमदेव मंदिर की जानकारी

भगवान शिव का अलौकिक धाम भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के कवर्धा में स्थित है। मैकल पर्वतसमूह के बीच हरी भरी घाटी में बना यह मंदिर खजुराहो और कोणार्क के मंदिर के समान है, इसलिए इसे 'छत्तीसगढ का खजुराहो' भी कहा जाता है। 11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव ने यह मंदिर बनवाया था।  इस क्षेत्र के गोंड आदिवासी और गोंड राजाओं के देवता भोरमदेव थे, जो भगवान शिव के उपासक थे। भोरमदेव, शिवजी का ही एक नाम है, इसलिए इस मंदिर का नाम भोरमदेव पड़ा।
 
हजार साल पुराना है मंदिर 

भोरमदेव मंदिर

कबीरधाम जिले के चौरागांव में स्थित भोरमदेव मंदिर का इतिहास 10वीं से 12वीं शताब्दी के बीच कलचुरी काल का माना जाता है।  मंदिर का निर्माण 1089 ई. में फणी नागवंशी शासक गोपाल देव ने करवाया था। नागर शैली में बने इस मंदिर की बाहरी दीवारों पर शानदार नक्काशी के साथ ही मैथुन मूर्तियां उकेरी गई हैं। इन्हीं के चलते भोरमदेव मंदिर की तुलना मध्यप्रदेश के खजुराहो के मंदिर और स्थापत्य कला के चलते ओडिशा के सूर्य मंदिर से की जाती है।

नागर शैली में बना है मंदिर

भोरमदेव मंदिर छत्तीसगढ़ के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। भोरमदेव मंदिर बेजोड़ शिल्पकारी का नमूना है। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है। मंदिर में तीन ओर से प्रवेश किया जा सकता है। पूर्व में मुख्य द्वार के अलावा दक्षिण और उत्तर दिशाओं के लिए दो और दरवाजे हैं। पूरा मंदिर करीब 5 फीट ऊंचे चबूतरे पर बनाया गया है। मंदिर के मंडप की लंबाई 60 फुट है और चौडाई 40 फुट है। मंडप के बीच में 4 खंभे हैं और किनारों की ओर 12 खम्भे हैं। मंदिर के भीतर भगवान शिव और गणेश के अलावा भगवान विष्णु के दस अवतारों की मूर्तियों के दर्शन होते हैं। मंदिर का गर्भगृह, मंदिर का प्राथमिक परिक्षेत्र है जहां कई मूर्तियों के बीच में काले पत्थर से बने शिवलिंग स्थापित हैं, जिनके रूप में पीठासीन देवता शिव की पूजा की जाती है। गर्भगृह में एक पंचमुखी नाग की मूर्ति है, साथ ही नृत्य करते हुए अष्टभूजी गणेशजी की मूर्ति भी स्थापित है, मान्यता है कि गणेश जी की यह प्रतिमा पूरी दुनिया में सिर्फ भोरमदेव मंदिर में ही है। अष्टभुजी गणेश जी की मूर्ति को तांत्रिक गणेशजी भी कहते हैं।

मण्डवा महल 

मण्डवा महल 

भोरमदेव मंदिर से करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर मण्डवा महल मौजूद है।  मण्डवा महल भगवान शिव का ही मंदिर है। इस महल की संरचना विवाह मंडप के समान है।  इसलिए इसे मण्डवा या मड़वा कहा जाता है, स्थानीय भाषा में मड़वा का मतलब विवाह पंडाल होता है। यह मंदिर 15 वीं शताब्दी में फनी नागवंशी राजा रामचंद्र देव की पत्नी अंबिका देवी द्वारा बनवाया गया था। इस मंदिर की मूर्तियां भी बेहद सुंदर हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर “कामसूत्र” के विभिन्न रूपों में 54 कामुक मूर्तियां हैं। माना जाता है कि नागवंशी राजा खजुराहो में उनके समकालीनों के रूप में “तंत्र” के सिद्ध साधक थे।

तालाब में बोटिंग की सुविधा

भोरमदेव मंदिर के नजदीक ही एक खूबसूरत तालाब भी है। इस तालाब को मंदिर का समकालीन और पुरातन माना जाता है| किंवदंती है कि तालाब के अंदर एक विशाल मंदिर भी है, लेकिन इसके प्रमाण कभी मिल नहीं पाए।  राज्य सरकार ने पर्यटकों के लिए यहां बोटिंग की व्यवस्था की है। 

मैकल की रानी- चिल्फी

भोरमदेव से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चिल्फी मैकल पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है। यह कवर्धा जिले का एक प्रमुख हिल स्टेशन है। चिल्फी से मात्र 3 किमी की दूरी पर स्थित है पर्यटन स्थल सरोधा दादर। सरोधा दादर समुद्र तल से 900 मीटर की ऊंचाई पर है जो मैकल पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची चोटी है। 

सरोधा दादर- बैगा इको टूरिस्ट रिसॉर्ट 

बैगा इको टूरिस्ट रिसॉर्ट 

कबीरधाम जिला मुख्यालय से करीब 32 किमी की दूरी पर चिल्फी घाटी की पहाड़ी में बैगा ग्राम सरोधा दादर स्थित है। यहां पर्यटन की दृष्टि से उपयुक्त ग्रामीण परिवेश और इको पर्यटन की दृष्टि से प्राकृतिक स्थल पर्यटकों के लिए उपलब्ध है। स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति से पर्यटकों को परिचित कराने के उद्देश्य से  ‘ट्रायबल टूरिज्म सर्किट’ के तहत सरोधा दादर ग्राम में छत्तीसगढ़ टूरिज्म बोर्ड के द्वारा लगभग 11 एकड़ की भूमि पर ग्रामीण परिवेश में पर्यटकों के रुकने के लिए सुविधाएं बनाई गई हैं।  यहां स्थानीय ग्रामीण शैली में 10 आर्टिजन हट्स, एक हस्तशिल्प विक्रय सेंटर, स्थानीय जनजातियों के दैनिक जीवन में उपयोग में आने वाली वस्तुएं, औजार आदि के प्रदर्शन के लिए एक इंटरप्रिटेशन सेंटर और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए मुक्ताकाश मंच का निर्माण किया गया है। 

ऐसे पहुंचें भोरमदेव

हवाई मार्ग से भोरमदेव आने के लिए निकटतम हवाई अड्डा रायपुर में है,  जो भोरमदेव से  करीब 134 किलोमीटर दूर स्थित है। ट्रैन से हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर रायपुर रेलवे स्टेशन नजदीकी रेल्वे जंक्शन है। सड़क मार्ग से आने वालों के लिए रायपुर से करीब 120 किलोमीटर और कवर्धा से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित भोरमदेव के लिए दैनिक बस सेवा और निजी टैक्सियां उपलब्ध है।