धान का कटोरा, भगवान राम का ननिहाल, माता कौशल्या का धाम और ना जाने किन-किन अलंकरणों से छत्तीसगढ़ को पहचाना जाता है। देवी के शक्तिस्थल, राजिम का त्रिवेणी संगम, भोरमदेव का शिवधाम, चित्रकोट का जलप्रपात, मैनपाट की प्राकृतिक छटा, सिरपुर में सभ्यता के अवशेष, छत्तीसगढ़ खुद में हर वो चीज समेटे हुए है जो एक पर्यटक के तौर पर आप देखना चाहते हैं। हमारी पेशकश के जरिए हम आपको छत्तीसगढ़ के ऐसे ही जगहों से आपको रू-ब-रू कराएंगे। आज हम आपको दे रहे हैं छत्तीसगढ़ की सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान डोंगरगढ़ की मां बम्लेश्वरी धाम की जानकारी। 

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः 

पहाड़ों की चोंटी पर माता बम्लेश्वरी का मंदिर

मां बम्लेश्वरी का अलौकिक धाम, छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ में पहाड़ी पर विराजित हैं मां बम्लेश्वरी। मां के दरबार में दूर-दूर से श्रद्धालु अपनी मुराद लेकर आते हैं। 11 सौ सीढ़ियां चढ़ने के बाद होते हैं मां के दर्शन। रोप-वे से दिखते हैं अनुपम प्राकृतिक नजारे। करीब 2200 साल प्राचीन कलचुरी काल में बने इस मंदिर में नवरात्र के दौरान लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। कामाख्या की नगरी के नाम से भी प्रसिद्ध है मां बम्लेश्वरी का धाम। कहते हैं मां के दरबार में वही पहुंचता है जिसे मां का बुलावा आता है। डोंगरगढ़ स्थित मां बम्लेश्वरी धाम में माता का मंदिर करीब 1600 फीट की ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। 

2200 साल पुराना है इतिहास

मां बम्लेश्वरी मंदिर के इतिहास को लेकर कोई स्पष्ट तथ्य तो मौजूद नहीं है, लेकिन मंदिर के इतिहास को लेकर जो पुस्तकें और दस्तावेज सामने आए हैं, उसके मुताबिक डोंगरगढ़ का इतिहास मध्यप्रदेश के उज्जैन से जुड़ा हुआ है। मां बम्लेश्वरी को मध्यप्रदेश के उज्जैयनी के प्रतापी राजा विक्रमादित्य की कुल देवी भी कहा जाता है। करीब 2200 साल पहले डोंगरगढ जिसका प्राचीन नाम कामाख्या नगरी था, यहां राजा वीरसेन का शासन था, राजा निःसंतान थे। संतान की कामना के लिए राजा ने महिष्मती पुरी स्थित शिवजी और भगवती दुर्गा की उपासना की, जिसके फलस्वरूप रानी को एक वर्ष पश्चात पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई… पुत्र का नाम मदनसेन रखा। शिव और देवी दुर्गा के प्रताप से प्रभावित होकर राजा वीरसेन ने कामाख्या नगरी मे माँ बम्लेश्वरी का मंदिर बनवाया। वहीं छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ के इतिहास में कामकंदला और माधवानल की प्रेम कहानी बेहद लोकप्रिय है। इससे जुड़े हालात ऐसे बने कि उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने कामाख्या नगरी पर आक्रमण कर दिया। राजा विक्रमादित्य की युद्ध में जीत हुई और राजा विक्रमादित्य ने मां बम्लेश्वरी देवी की आराधना की, देवी प्रकट हुईं और विक्रमादित्य ने माधवानल, कामकन्दला के जीवन के साथ ये वरदान भी मांगा कि मां बगुलामुखी अपने जागृत रूप में पहाड़ी में प्रतिष्ठित हो। तब से मां बगुलामुखी बमलाई देवी साक्षात महाकाली के रूप मे डोंगरगढ मे प्रतिष्ठित है। इतिहासकार इस क्षेत्र को कल्चुरी कालीन बताते हैं लेकिन यहां मौजूद मूर्तियों के गहने, उनके वस्त्र, आभूषण, बड़े होठों और मस्तक के लम्बे बालों के आधार पर इस क्षेत्र की मूर्ति कला पर गोंड संस्कृति का भी प्रभाव दिखता है।

मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध

एतिहासिक और धार्मिक नगरी डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं।. एक मंदिर 16 सौ फीट ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जो बड़ी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है। वहीं नीचे स्थित मंदिर छोटी बम्लेश्वरी के नाम से विख्यात है। ऊपर पहाड़ी पर मुख्य मंदिर स्थित है, जहां पहुंचने के लिए करीब 11सौ सीढ़ियां बनी है, वहीं भक्तों की सुविधा के लिए रोप-वे भी है। यात्रियों की सुविधा के लिए रोपवे का निर्माण किया गया है।. रोपवे सोमवार से शनिवार तक सुबह आठ से दोपहर दो और फिर अपरान्ह तीन से शाम पौने सात तक चालू रहता है। रविवार को सुबह सात बजे से रात सात बजे तक चालू रहता है।. नवरात्रि के मौके पर चौबीसों घंटे रोपवे की सुविधा रहती है रोप-वे में सफर करना बेहद रोमांच कारी है। साथ ही जैसे जैसे आप रोप-वे से ऊपर बढ़ते हैं शानदार प्राकृतिक नजारे आपको देखने को मिलते हैं। ऊंची पहाड़ी पर छाई हरियाली, बड़ी बड़ी चट्टानें, और पहाड़ी की चोटी पर बना भव्य मंदिर किसी को भी रोमांचित कर सकता है। रोप-वे से ऊपर पहुंचने के बाद फिर कुछ सीढ़ियां हैं, जहां से मुख्य मंदिर तक पहुंचा जाता है। 

प्रज्ञागिरी-दर्शनीय बौद्ध तीर्थ 

बौद्ध तीर्थ

डोंगरगढ़ शक्तिपीठ के साथ ही प्राकृतिक रूप से कई पर्यटन स्थलों को समेटे हुए है। इन्हीं में से एक है प्रज्ञागिरी पर्वत। इस पर्वत पर भगवान गौतम बुद्ध की 30 फीट ऊंची प्रतिमा स्थापित है। महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के मध्य एक दर्शनीय बौद्ध तीर्थ के रूप में स्थापित प्रज्ञागिरि दोनों राज्यों के मध्य बौद्ध धर्म की समरसता का प्रतीक है।  सघन वनों से आच्छादित छोटी-छोटी डोंगरी से घिरे हुए गढ़-डोंगरगढ़ की पर्वतीय श्रृंखला में कई डोंगर यानि पहाड़ियां हैं। इन्हीं में माँ बम्लेश्वरी की पहाड़ी के उत्तर-पूर्व दिशा में नंगारा डोंगरी है। इस पर्वत पर भगवान गौतम बुद्ध की ध्यानस्थ मुद्रा में प्रतिमा स्थापित की गई है, इस पर्वत का नाम प्रज्ञागिरि रखा गया था। 

1964 में हुई ट्रस्ट की स्थापना

डोंगरगढ़ की पहाड़ी बड़ी बड़ी चट्टानों से बनी है। लिहाजा जब आप मंदिर की तरफ बढ़ते हैं तो बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच से बनी सीढ़ियों से होकर गुजरना पड़ता है, इस दौरान कई जगह गुफा जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में सुबह और शाम के साथ ही दोपहर में होने वाली आरती का भी महत्व कम नहीं है। घंटियों के नाद के बीच आरती की लौ के साथ श्रद्धालुओं की भीड़, माता के जयकारे लगाते नजर आते हैं।  वैसे तो साल भर यहां भक्तों का रेला लगा रहता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां अलग ही दृश्य देखने को मिलता है। साल के दो नवरात्रों चैत्र और शारदीय नवरात्रों में यहां की छटा देखते ही बनती है। 1964 में खैरागढ़ रियासत के भूतपूर्व नरेश राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर मंदिर का संचालन ट्रस्ट को सौंप दिया था। तब से ट्रस्ट ही यहां की व्यवस्थाओं की देखरेख करता है। डोंगरगढ़ में मां बम्लेश्वरी के दो मंदिरों के अलावा बजरंगबली मंदिर, नाग वासुकी मंदिर, शीतला मंदिर, दादी मां मंदिर भी हैं। प्रकृति की गोद में बसे डोंगरगढ़ में देवी के इन शक्तिधामों के आसपास अन्य पर्यटक स्थल भी मौजूद हैं। जिनमें मंदिर के नीचे प्राकृतिक रूप से बना ये छीरपानी जलाशय भी है, जहां यात्रियों के लिए बोटिंग की व्यवस्था भी की गई है। 

नवरात्र में ज्योतिकलश की स्थापना 

नवरात्रों में अखंड ज्योत और कलश की स्थापना करने का अपना ही एक विशेष महत्व है। ज्योतिकलश नवरात्रि के नौ दिनों दिन-रात जलने वाला दीपक होता है। ऐसा माना जाता है कि अखंड ज्योति जलाने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मां बमलेश्वरी मंदिर में भी नवरात्रि के मौके पर ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित की जाती है। मां बमलेश्वरी के इस मंदिर में स्थानीय ही नहीं बल्कि देश-विदेश में बसे हजारों भक्त अपने या परिजनों के नाम से ज्योतिकलश स्थापित करवाते हैं। नवरात्रि के दिनों में ज्योतिकलश कक्ष की छटा देखते ही बनती है जब एक-एक कमरे में सौ दीपक जलते नजर आते हैं। 

ऐसे पहुंचे डोंगरगढ़

सड़क मार्ग से: डोंगरगढ़ राजनांदगांव जिला मुख्यालय से 67 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वहां जाने के लिए सबसे अच्छा साधन है ट्रेन, बस, या खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था।  ट्रेन से: अगर आप ट्रेन से यात्रा करना चाहते है तो निकटतम रेल्वे स्टेशन है डोंगरगढ़। फ्लाइट से: निकटतम हवाई अड्डा है रायपुर । जो घरेलु उड़ानों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है।