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रायपुर। डीके अस्पताल प्रबंधन को अपना प्लांट होने के बाद भी मरीजों के लिए आक्सीजन सिलेंडर खरीदने पड़े। दो साल में इस चक्कर में करीब 3.84 करोड़ रुपए खर्च हो गए। ऑक्सीजन प्लांट लगाने वाली कंपनी ने मेटेनेंस के नाम पर 17 लाख रुपए लिए, मगर उसे शुरू नहीं कर पाई, जिसकी वजह से सीजीएमएससी द्वारा उसे तीन साल के लिए ब्लैक लिस्टेड कर दिया गया। अलग वर्ष 2018 में मेडिग्लोब मेडिकल सिस्टम प्रायवेट लिमिटेड ने डीके अस्पताल में ऑक्सीजन प्लांट लगाया था। इस प्लांट के मदद से चार साल तक मरीजों की जरूरतों को पूरा किया गया, मगर वर्ष 2022 में इसमें तकनीकी खराबी आ गई। आक्सीजन का उत्पादन बंद होने की वजह से प्रबंधन हर महीने 16 लाख रुपए के खर्च कर मरीजों के आक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था करता रहा। 

इस बीच सीजीएमएससी द्वारा प्लांट को सुधारने के लिए संबंधित कंपनी को जिम्मेदारी दी गई। इसके लिए उसे 17 लाख रुपए भुगतान भी किया गया, मगर कंपनी केवल जांच की औपचारिकता निभाती रही। अस्पताल प्रबंधन द्वारा पिछले साल अक्टूबर माह में इस मामले की शिकायत की गई और बताया गया कि प्लांट शुरू नहीं होने की वजह से अस्पताल प्रबंधन मरीजों की हित में दो साल में करीब 3.84 करोड़ रुपए के सिलेंडर खरीदने पड़ गए। इतनी बड़ी राशि का उपयोग किसी अन्य कार्यों के लिए किया जा सकता था। मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने संबंधित कंपनी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इस आधार पर कंपनी को अगले तीन साल के लिए काली सूची में डाल दिया गया और उन्हें शासकीय स्तर पर उपकरणों की सप्लाई के साथ रखरखाव के कार्यों से अलग किया गया।

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कोरोनाकाल में साबित हुआ मददगार 

डीके अस्पताल का यह प्लांट कोरोनाकाल में अन्य अस्पतालों तथा अन्य स्थानों पर बनाए गए कोविड सेंटर में ऑक्सीजन की जरूरत को पूरा करने में के अलावा अस्पताल परिसर में पीएम केयर फंड से एक दूसरा प्लांट भी स्थापित है, जो विभिन्न तकनीकी जटिलताओं की वजह से अब तक चालू नहीं हो पाया है। इसकी वजह से अस्पताल के मरीज अभी भी सिलेंडर से मिलने वाली आक्सीजन के भरोसे हैं।

जियो लाइट का मसला 

संबंधित आक्सीजन प्लांट में खराबी की मुख्य वजह जियो लाइट नामक उपकरण की खराबी थी। अस्पताल प्रबंधन की ओर से इसके लिए पहले ही 53 लाख रुपए का भुगतान किया गया था। उपकरण लगने के बाद प्लांट चालू नहीं हुआ, तब पत्र व्यवहार करने पर कंपनी ने रखरखाव के लिए 17 लाख रुपए और मांगे थे, जिसे देने के बाद भी प्लांट आक्सीजन उत्पादन करने के लायक नहीं हो पाया।