रायपुर। करीब पांच साल पहले क्रिकेट खेलते वक्त खिसकी कंधे की हड्डी के इलाज के लिए कई निजी अस्पतालों के चक्कर लगाने के बाद युवक को आंबेडकर अस्पताल के हड्डी रोग विभाग में राहत मिली। शुरुआती दिनों में चोट को नजर अंदाज करने की वजह से वह हाथ उठाने में पूरी तरह असमर्थ हो गया था। चोट की वजह से कंधे को जोड़ने वाला कप टूट चुका था और जख्म पुराना होने की वजह से हड्डी गल चुकी थी। जानकारी के अनुसार राजधानी में रहने वाला 30 साल का मरीज कुछ समय पहले कंधे के दर्द से पीड़ित होकर इलाज के लिए आंबेडकर अस्पताल पहुंचा था। समस्या इतनी अधिक थी कि वह अपने हाथ से एक गिलास पानी तक नहीं उठा पा रहा था। शिकायत के आधार पर डाक्टरों ने जांच की, तो पता चला कि क्रोनिक रिकरेंट शोल्डर डिस्लोकशन नामक बीमारी से जूझ रहा है।
पूछताछ के दौरान पता चला कि युवक करीब पांच साल पहले क्रिकेट खेलते वक्त चोटिल हुआ था मगर उस दौरान समस्या अधिक नहीं होने की वजह से परिवार वालों ने भी उस तरफ ध्यान नहीं दिया था। दर्द असहनीय होने पर परिवार वाले युवक को लेकर इलाज के लिए कई अस्पतालों तक गए, मगर राहत नहीं मिली। आंबेडकर अस्पताल के हड्डी रोग विभाग के डाक्टरों की जांच में यह पता चला कि हाथ को कंधे से जोड़ने वाला कप टूट चुका है। और हड्डी भी गल गई है। सर्जरी को अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेंद्र अहिरे, डॉ. सौरभ जिंदल तथा डॉ. अतीक कुंडु ने पूरा किया।
महानगरों में खर्च होती बड़ी राशि
चिकित्सकों के मुताबिक इस बीमारी का इलाज दिल्ली, मुंबई के अस्पतालों में संभव था, जहां करीब दो लाख रुपाए खर्च करने पड़ते। आआंबेडकर अस्पताल में उसका उपचार आयुष्मान योजना के तहत निशुल्क किया गया। मरीज के माता-पिता जब निजी अस्पतालों के चक्कर लगाकर निराश हो गए थे, तो उन्हें किसी रिश्तेदार ने अआंबेडकर अस्पताल जाने की सलाह दी थी जहां उन्हें राहत मिली।
खिलाड़ियों को ज्यादा जोखिम
चिकित्सकों के अनुसार कंधा खिसकने का जोखिम ज्यादातर खिलाड़ियों को होता है। खेल के दौरान गिरने अथवा किसी ठोस वस्तु से टकराने के दौरान यह समस्या होती है। इसी तरह वाहन दुर्घटना अथवा गिरने-पड़ने के दौरान भी इस तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। यदि कंधे की हड्डी खिसकने का तुरंत इलाज नहीं किया जाता है, तो यह मांसपेशियों में कमजोरी, दर्द और मांसपेशियों में ऐंठन पैदा कर सकता है।