रायपुर। अयोध्या में रामलाल के विराजमान होने के बाद हर तरफ खुशी का माहौल है,  रंग-बिरंगी रोशनी से जगमग शहर और गांवों में चहुंओर श्रीराम के जयकारों की गूंज हो रही है। इस दौरान अयोध्या में 2 और 3 मार्च को भक्ति उत्सव सोन चिरैया नाम से दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन किया। इस आयोजन में राजधानी रायपुर के आंरग विधानसभा क्षेत्र के ग्राम कुटेसर के उपकार पंथी लोकनृत्य दल ने मनमोहक प्रस्तुति दी गई हैं। इस दल में कुछ 16 सदस्य है। पंथी नृत्य का मुख्य उदेश्य है। गुरु बाबा घासीदास दास जी के संदेशों को  जन-जन तक फैलाना हैं। 

बताया जा रहा है कि, पंथी कला नृत्य, गायन और  वादन का ऐसा त्रिवेणी संगम है जिससे समाज का कोई भी पक्ष अछूता नही रहा है। यह अपने मनोरम भाव प्रवीणता प्रस्तुतिकरण के कारण जनमानस के मनोभवों में अपना उत्कृष्ट छाप छोड़ा है। जिससे मानवीय संस्कृति व जीवनशैली के उत्तम सोपानों के व्यापक स्तरों का अवतरण हुए हैं।पंथी ने लोक चेतना का विकास किया जिसमें नारी सम्मान, बलिप्रथा, धर्म आंध्दता, आडम्बर, नशापान, विश्वबंधुत्व, समानता, रंगभेद, लिंगभेद, बालविवाह, छुआछूत, जातिप्रथा, देशप्रेम, पशु सम्मान व संरक्षण, अहिंसा, चोरी, व्यभीचार, पर्यावरण सुरक्षा, वैग्यानिकता का पोषण, अत्याचार का प्रतिकार, बुजुर्गों का सम्मान, स्वालम्बन, पुत्री संरक्षण, शिक्षा का विकास, कृषिकरण आत्म सम्मान, भाषा, संस्कृति, कला, योग, साहित्य, स्वक्षता अभियान इत्यादि क्षेत्रों में जागृति लाने का अमिट किर्तिमान स्थापित किया है। इस विराट पंथी दर्शन का दर्शन भारत के छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर की जा सकती है।

 

आध्यात्मिकता की गहराई 

बता दें कि,  बाबा गुरु घासीदास जी के पंथ से ही ‘पंथी नृत्य’ का नामकरण हुआ है। पंथी गीत आम छत्तीसगढ़ी बोली में होते हैं, जिनके शब्दों और संदेशों को साधारण से साधारण व्यक्ति भी सरलता से समझ सकता है। पंथी नृत्य जितना मनमोहक और मनोरंजक है, इसमें उतनी ही आध्यात्मिकता की गहराई और भक्ति का ज्वार भी है। छत्तीसगढ़ी बोली को नहीं जानने-समझने वाले देश-विदेश के लोग भी पंथी नृत्य देख खो जाते हैं। वर्तमान समय में भी ये छत्तीसगढ़ के कलाकारों की साधना, परिश्रम और लगन का परिणाम है कि पंथी नृत्य देश-विदेश में प्रतिष्ठित है।