इमरान खान- नारायणपुर। नक्सल प्रभावित नारायणपुर के बेनूर थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले भाटपाल गांव में एक बार फिर कब्र के लिए दो गज जमीन को लेकर विवाद हो रहा है। इससे पहले इसी गांव में हुए विवाद के बाद चर्च में तोड़फोड़ कांड हुआ था, जिसमें नारायणपुर के एसपी और थानेदार पर उपद्रवियों ने हमला कर लहूलुहान कर दिया था। जिले में फिर से धर्मांतरण को लेकर दो पक्षों में बवाल की स्थिति बन रही है। पिछले दो दिन से जिला और पुलिस प्रशासन के अधिकारी दोनों पक्ष के लोगों को समझाने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन बात बनती नहीं दिख रही है।

बेनूर परगना के गोंडवाना समाज के लोगों ने कलेक्टर को ज्ञापन देकर धर्मांतरित परिवार के शव को कब्र से निकालकर गांव से दूर ईसाई कब्रिस्तान में दफन करने की मांग की है। इससे पहले बेनूर थाना प्रभारी को भी समाज ने एक शिकायती पत्र दिया था। जब बेनूर परगना के आदिवासी समुदाय के लोग ज्ञापन देने पहुंचे थे तो उस दौरान पुलिस ने कलेक्टर परिसर में सुरक्षा के तगड़े इंतजाम किए गए थे। बलौदाबाजार की घटना के बाद पुलिस सुरक्षा को लेकर हाई अलर्ट पर है। कलेक्टर परिसर में तीन लेयर में सुरक्षा की व्यवस्था की गई थी। 

एसडीएम को ज्ञापन सौंपते हुए आदिवासी

गैर आदिवासी परिवार के सदस्य की मौत के बाद शव दफनाने को लेकर विवाद 

इस बीच सोमवार की शाम जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने पत्रवार्ता किया। पत्रवार्ता में मूल आदिवासी धर्म को छोड़कर ईसाई धर्म से जुड़े परिवार के सदस्य की मौत होने के बाद शव को गांव में दफन करने पर कड़ी आपत्ति जताई। जनजाति सुरक्षा मंच ने बस्तर में शव दफनाने के बढ़ते मामले को लेकर चिंता जाहिर की और जन समस्या निवारण शिविर की तर्ज पर गांव-गांव में धर्मांतरित परिवार की पहचान के लिए सरकार से चौपाल लगाने की मांग की है। 

आदिवासियों की परंपरा के खिलाफ काम करने का आरोप 

जनजाति सुरक्षा मंच ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि, 14 जुलाई रविवार को लहरू राम पिता सकरू राम ग्राम भाटपाल थाना बेनूर की मौत हो गई। इसके बाद उसके बेटे जिन्होंने कुछ साल पहले ही अपनी मूल परंपरा को छोडकर मिशनरी परंपरा अपना लिया था। वे अपने पिता की संदिग्ध मौत बताकर गांव के देव स्थल के पास बिना ग्रामीणों को सूचित किए गांव की परंपरा के खिलाफ जाकर मिशनरी पद्धति से आनन-फानन में शव दफन कर दिया। 

आदिवासियों ने की कार्रवाई की मांग 

आदिवासी समाज के लोगों की मांग है कि, हमारी आस्था और परंपरा के खिलाफ काम करने वालों पर कार्रवाई की जाए। यह पता लगा जाए कि, वह व्यक्ति किस चर्च और पादरी से संबंधित है। उस व्यक्ति की मौत कैसे हुई इसकी जांच के लिए दफन किए गए शव को निकालकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाए। 

गैर आदिवासियों की पहचान करने की रखी मांग 

इसके अलावा जनजाति सुरक्षा मंच ने मूल धर्म छोड़कर आदिवासी समाज से अलग होने वाले लोगों की पहचान के लिए जिला प्रशासन से गांव-गांव जाकर शिविर लगाने की मांग की है। मंच का कहना है कि, धर्मांतरित लोगों की पहचान कर डी लिस्टिंग की जाए। उनके डिटेल्स सार्वजनिक किए जाएं कि, वे किस चर्च से जुड़े हैं, उनके पादरी कौन हैं आदि-इत्यादि। 

स्थानीय जनप्रतिनिधि धर्मांतरण के बढ़ते मामले को लेकर उठा रहे आवाज 

पत्रवार्ता के दौरान जब हरिभूमि डॉट कॉम ने सवाल किया कि, देश में डबल इंजन की सरकार का चुनावी मुद्दा धर्मांतरण को लेकर काफी मुकर रहा है। सूबे की सत्ता में काबिज होने के बाद बस्तर के जनप्रतिनिधि भाजपा से जुड़े हैं। क्या ये धर्मांतरण को लेकर कोई ठोस पहल कर रहे हैं। इसके जवाब में जनजाति सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय पदाधिकारी ने कहा कि, स्थानीय जनप्रतिनिधि अपने-अपने स्तर पर धर्मांतरण के बढ़ते मामले को लेकर बस्तर से दिल्ली तक आवाज उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि, शासन-प्रशासन के समक्ष जनजाति सुरक्षा मंच ने इस मुद्दे को रखा है।