राहुल भूतड़ा- बालोद। दीपावली पर्व के दौरान बालोद जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में गौरा- गौरी पूजा का अपना एक अलग ही महत्व है। इसकी पारम्परिक पूजा अर्चना इस पर्व के लिये अहम मानी जाती है। लक्ष्मी पूजा के दो दिन पहले ही गौरा- गौरी को पारम्परिक ढ़ंग से स्थापित का काम विशेष पूजा- अर्चना के साथ प्रारंभ्भ हो जाता है। लक्ष्मी पूजा की देर रात तक गौरा- गौरी स्थल पर इसकी पारम्परिक पूजा अर्चना होती है। 

छत्तीसगढ़ की परम्परा से जुड़े इस गौरा- गौरी की पूजा- अर्चना में ग्रामीण बढ़- चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। गौरा- गौरी के इस जागरण प्रथा को आज भी ग्रामीण कायम रखे हुये हैं। इस पूरी पारम्परिक पूजा- अर्चना को धार्मिक किदवंती से जोडकर देखा जाता है। 

भगवान शिव-पार्वती की गौरा-गौरी के रूप में होती है पूजा 

गौरा- गौरी जिसे भगवान शिव व पार्वती का अस्तित्व माना जाता है, वनांचल व ग्रामीण इलाकों में गोवर्धन पूजा के ठीक दो दिन पहले गांव के एक निर्धारित स्थान पर पारम्परिक पूजा पाठ के साथ जगाने की परंपरा निभाई जाती है। इसके बाद गोवर्धन पूजा के दिन सुबह इसके विसर्जन के दौरान शोभा यात्रा निकाली जाती है। ग्राम  भ्रमण के बाद गौरा-गौरी का विसर्जन होता है। शोभा यात्रा के दौरान ग्रामीणों द्वारा जगह जगह पूजा अर्चना की जाती है। माना जाता है कि, इससे सुख समृद्धि हासिल होती है।