जगदलपुर। बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी के सिंहड्योढ़ी स्थित मंदिर में मध्यरात्रि को 12 से 1 बजे के बीच किन्नरों ने देवी दंतेश्वरी को चुनरी चढ़ाकर पूजा अर्चना की। नवरात्रि पर मंदिर के कपाट खुलने के बाद भक्त देवी की पूजा अर्चना करते हैं, लेकिन बस्तर की संस्कृति और परंपरा अपने आप में अनूठी है। यहां रात 12 बजे किन्नरों ने नवरात्रि में देवी की पहली पूजा की। उनके द्वारा लाए गए चुनरी को देवी को चढ़ाई गई। यह परंपरा आज की नहीं, बल्कि रियासतकाल से चली आ रही परंपरा है। 

बुधवार की रात लगभग 9 बजे बड़ी संख्या में किन्नर सजधज कर घोड़ी वाली शाही पालकी वाहन में बैठकर देवी दंतेश्वरी मंदिर की ओर रवाना हुए। घोड़ी के सामने नाचते गाती किन्नरों को देखकर लोग रुक जाते थे। साड़ी में सजधज कर किन्नर नाचती हुई देवी की भक्ति में लीन दिखे। किन्नरों के साथ बड़ी संख्या में बच्चे और उनके मोहल्ले के आसपास के लोग भी थे जो देवी की आराधना में भक्ति गीत गाती हुई चल रही थी। डीजे की धुन में उन्हें मस्ती में नाचते हुए देख अन्य लोग भी थिरकते दिखे। रात 10 बजे संजय मार्केट से उनका काफिला मंदिर की ओर बढ़ रहा था। 

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नवरात्रि में देवी की पहली पूजा हमारे लोग करते आ रहे हैं 

किन्नर रिया सिंह ने बताया कि उनके पूर्वजों को बस्तर महाराजा ने शारदीय नवरात्रि में रात को देवी दंतेश्वरी को चुनरी चढ़ाने और पूजा अर्चना करने की अनुमति दी थी।

श्रृंगार यात्रा में ओडिशा से भी आते हैं किन्नर

मां दंतेश्वरी मंदिर के पुजारी कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि, बुधवार की रात लगभग 12 बजे देवी मां के दर्शन सबसे पहले किन्नरों ने की। इसके साथ ही किन्नर समाज ने सबसे पहले मां को श्रृंगार सामान अर्पित किया। हर साल किन्नरों के श्रृंगार यात्रा में जगदलपुर के अलावा पड़ोसी राज्य ओडिशा से भी बड़ी संख्या में किन्नर यात्रा में शामिल होने के लिए बस्तर पहुंचते हैं। उन्होंने बताया इस रिवाज के पीछे मुख्य उद्देश्य यह भी है कि व्यापारियों व बस्तरवासियों पर किसी तरह की कोई समस्या ना आए और किसी की गोद खाली ना रहे। इसलिए वे हर साल देवी मां दंतेश्वरी से प्रार्थना करने पहुंचते हैं।