सुरेश रावल - जगदलपुर। बस्तर ब्लाक के भानपुरी क्षेत्र के समीप एक गांव हैं छोटे आमाबाल,जहां 8 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आ रहे हैं। इस गांव का ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि जब से दशहरा पर्व बस्तर में मनाया जाता है, तब से पर्व की प्रमुख रस्म जोगी बिठाई में इसी गांव के एक ही परिवार को मौका मिलता है। जोगी परिवार के डमरू नाग कहते हैं 1414 से लगभग 600 साल हो गए हैं, हमारा ही परिवार हर साल दशहरा पर्व के जोगी बिठाई रस्म में शामिल होता है। उस समय के बस्तर महाराजा ने हमारे गांव के हमारे ही परिवार को इस दायित्व को निभाने की जिम्मेदारी सौंपी है।

हमारा परिवार मां दंतेश्वरी मावली माता की सेवा करते आ रहा है। राज परिवार ने हमें जोगी का पद दिया, लेकिन कालांतर में इस पद को सरकारी लोगों ने जाति मान लिया। तब से हल्बा जाति का आदिवासी परिवार आज भी पिछड़ा वर्ग बनकर किसी तरह का आदिवासियों को मिलने वाला लाभ नहीं ले पा रहा है। सालों से न्याय के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन आज तक हमारी समस्या का समाधान नहीं हुआ है। सैंकड़ों सालों की सेवा के बाद भी हमारी हालत गरीबी में जीवन गुजारने की रह गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आ रहे हैं हमारा परिवार उनसे मिलना चाहता है। हमारी समस्या सीधे प्रधानमंत्री सुनेंगे तो कुछ न कुछ रास्ता जरूर निकलेगा।

काम की तलाश में जोगी गया बैंगलुरू

सभा स्थल से लगभग आधे किमी दूर जोगी का घर है, हरिभूमि ने जोगी परिवार से मुलाकात की। घर में गत वर्ष जोगी बने दौलत नाग के बारे में पुछने पर उनकी मां सुलो नाग और दादी सुदनी जो इमली फोड़ रही थी, ने कहा कि पत्नी और बच्चे के साथ दौलत काम में बैंगलुरू (कर्नाटक) गया है। उनके पति भगत जोगी भी दूसरे गांव मांदलापाल गए थे। थोडी देर में जोगी भगत के बड़े भाई डमरू नाग पहुंचे। उन्होंने बताया कि करीब 30 साल से मैं अपने दोनों भाई भगत और रघु जो दशहरा में जोगी बनते हैं उनके साथ जगदलपुर जाता हूं और पूरे 9 दिन सिरहासार में जोगी बिठाई से लेकर जोगी उठाई तक होने वाले सभी पूजा पाठ और रस्मों को निभाता हूं। पुजारी का काम सालों से करते आ रहा हूं।

वनभूमि पट्टे के लिए एसडीएम के पास आवेदन

पुजारी डमरू नाग ने बताया कि, हमारे दो भाई का परिवार एक- एक साल के अंतराल में जोगी बनकर बैठते हैं। एक-एक एकड़ जमीन दोनों भाई को मिला है, लेकिन पट्टा केवल एक एकड़ का दिया गया है। दूसरे एकड़ के पट्टे के लिए एसडीएम कार्यालय बस्तर में आवेदन दिया गया है लेकिन अभी तक कोई भी सुनवाई या समाधान नहीं हुआ है।

दादा-परदादा के समय से जाति में लिखा है जोगी

डमरू नाग ने 1919, 1931-32 और 1938-39 कई दस्तावेज दिखाए, जिसमें 100 साल पहले से राजा से मिली जोगी की पदवी को जाति बना दिया गया है। यही कारण है कि हल्बा जाति का आदिवासी होने के बाद भी पिछड़ा वर्ग बना दिया गया है। ऐसी स्थिति में परिवार की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है न ही जोगी बनने का कोई मानदेय शासन से मिलता है केवल 9 दिन तक निराहार रहकर तपस्या करने के दौरान दान दक्षिणा के अलावा टेम्पल कमेटी से 15 हजार रुपये रुसुम के रूप में मिला है। पहले एक हजार से बढ़ते हुए इस साल 15 हजार किया गया है। उन्होंने अन्य सेवादारों की तरह शासन से मासिक मानदेय की उम्मीद जताई है।