रायपुर। गर्मी के दिनों में जंगल में आग लगना स्वाभाविक घटना है, लेकिन आग लगने की घटनाएं एक ही दिन में सौ से ज्यादा हों तो यह चिंता का विषय है। वन अमले के पास आग से निपटने फायर ब्लोवर के साथ फायर वाचर का अभाव है, इस वजह से जंगल तेजी से धधक रहे हैं। वन विभाग के वेबसाइट के मुताबिक सोमवार तक की स्थिति में 32 अलग-अलग वनक्षेत्रों में 1700 से ज्यादा स्थानों पर आग लगी हुई है। जनवरी से लेकर अब तक जंगल में एक हजार 908 आगजनी की घटनाएं घटित हो चुकी हैं।

पीसीसीएफ वी. श्रीनिवास राव के मुताबिक, जंगल में लगी आग को कंट्रोल करने वन अफसरों के अलावा निचले स्तर के वनकर्मी अलर्ट मोड पर हैं। सेटेलाइट से जंगल में कहीं भी आग लगने की जानकारी मिलती है, वन अफसरों के अलावा वनकर्मी फायर वाचर की मदद से आग पर काबू पाने तत्काल मौके पर रवाना किए जाते हैं। अफसर के अनुसार इस बार आगजनी की घटनाएं पिछले वर्ष की तुलना में आधी संख्या में हैं। अफसर के अनुसार जंगल में लगी आग पर काबू पाने ग्रामीणों को जागरूक करने के साथ उन्हें जंगल में आग लगने की स्थिति में तत्काल जानकारी वन विभाग को देने प्रेरित किया जा रहा है।

 

बदले की भावना से लगाते हैं आग 

वन विभाग जंगल को आग से बचाने हर वर्ष इससे सटे गांवों के लोगों को जनवरी से मई तक फायर वाचर के रूप में भर्ती करने का काम करता है। जानकारों के मुताबिक जो पूर्व में फायर वाचर रह चुका होता है, उनकी किसी कारण दूसरे साल फायर वाचर के रूप में भर्ती नहीं हो पाती, ऐसे में पूर्व के फायर वाचर भी बदले की भावना से जंगल में आग लगाने का काम करते हैं।

हर बीट में फायर ब्लोवर फिर आग पर कंट्रोल क्यों नहीं

जंगल में लगी आग पर काबू पाने सभी वनमंडलों के बीट में वन मुख्यालय द्वारा फायर ब्लोवर दिया गया है। वर्तमान में वन विभाग के पास तीन हजार के करीब फायर ब्लोवर है। बावजूद इसके जंगल में आए दिन आगजनी की घटनाएं चिंता का विषय हैं। जंगल में आगजनी की घटना रोकने वनकर्मियों का शिफ्ट तय कर दिन तथा रात के समय नियमित जंगल में गश्त करने के निर्देश वन मुख्यालय द्वारा दिए गए हैं।

सबसे ज्यादा आगजनी बस्तर में

जंगल में जिन 32 वनक्षेत्रों में आगजनी हुई है, उनमें टॉप टेन में बस्तर शामिल है। इसमें बीजापुर में सर्वाधिक 273 क्षेत्रों में आगजनी की घटनाएं हुई हैं। दूसरे नंबर पर उदंती-सीतानदी टाइगर रिजर्व है, यहां 218 स्थानों पर ज्वाला उठी है।

महुआ-तेंदूपत्ता बने जंगल के दुश्मन

जंगल में आगजनी की बड़ी वजह महुआ और तेंदूपता हैं। वनक्षेत्र से सटे ग्रामीण जंगल में महुआ बीनने जाते हैं, पेड़ से गिरे महुआ फूल के पत्तों से ढके होने की वजह से ग्रामीण सूखे पत्तों में आग लगा देते हैं। इसी तरह से तेंदूपत्ता बीनने वाले लोग जंगल में जलती बीड़ी फेंक देते हैं, जिसके चलते सूखे पत्ते तेजी से जलते हुए जंगल में फैल जाते हैं। 

शिकारी भी करते हैं आगजनी

वन अफसरों को आशंका है कि जंगल में वन्यजीवों के शिकार करने वाले लोग भी जंगल में आग लगाने का काम करते हैं। जिस क्षेत्र में बहुतायत में वन्यजीवों के होने की जानकारी मिलती है, उस क्षेत्र में शिकारी आग लगा देते हैं। आग लगने की वजह से वन्यजीव सुरक्षित जगह की तलाश में जंगल से भागते हैं, इसका फायदा उठाकर शिकारी वन्यजीवों का शिकार करते हैं।