रायपुर। तेलीबांधा में आंखों के अस्पताल में सस्ती मिलने वाली दवा को महंगी कीमत वाले रैपर में बेचने का कारोबार पिछले आठ महीने से चल रहा था। दिलचस्प बात यह है कि यह आई-ड्राप केवल छत्तीसगढ़ आई हास्पिटल के मरीजों के बीच ही खपाया जाता था। दवा की क्वालिटी पर भी संदेह है, जिसे देखते हुए सैंपल जांच के लिए लैब भेजा गया है और रिपोर्ट मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी। यह पूरा खेल चंगोराभाठा के ड्रिस्टीब्यूटर के जरिए चल रहा था। यहां यह बताना लाजिम है कि कई बड़े अस्पतालों की मेडिकल दुकानों की दवा बाहर के स्टोर्स से काफी महंगी बेची जा रही है। उसका एमआरपी में ही खेल हो रहा है। जो दवा बाहर 20 की मिल रही, वहां अंदर 50 से 80 रुपए तक बेचा जा रहा।
जानकारी के अनुसार, छत्तीसगढ़ आई हास्पिटल में दबिश देकर खाद्य एवं औषधि विभाग की टीम ने आई-ड्राप का गोलमाल पकड़ा था। अस्पताल के साथ मेडिकल स्टोर्स, डिस्ट्रीब्यूटर और नकली लेबल बनाने वाले प्रिंटर्स के ठिकानों पर भी छापे मारकर बड़ी मात्रा में आई-ड्राप से संबंधित मटेरियल पकड़े गए थे। इस मामले में जांच टीम को पता चला कि सस्ते में मिलने वाली दवा कोमहंगे में मरीजों के बीच खपाने का कारोबार पिछले आठ माह से किया जा रहा था। हिमाचल की कंपनी से महज दस रुपए में दवा मंगाकर उसे अस्पताल में सौ रुपए की दर से सप्लाई की जाती थी, जिसे मरीजों को 150 रुपए में बेचा जाता था। अस्पताल में आने वाले हर मरीज को यह दवा आंखों की सुरक्षा के लिए दी जाती थी, मगर यह बहुत अधिक असर कारक नहीं था। दवा की क्वालिटी का पता लगाने के लिए सैंपल लेकर जांच के लिए कालीबाड़ी लैब भेजा गया है, जिसकी रिपोर्ट एक-दो दिन में मिल जाएगी।
पंडरी के प्रेस में प्रिंट
एमएफसी आई-ड्राप का नकली रैपर पंडरी के प्रिंटिंग प्रेस में छपवाया जाता था। हिमाचल प्रदेश के एवी मॉक्स डी नामक सस्ती दवा मंगाकर उसे अपने द्वारा बनाए जाने वाले रैपर में पैक किया जाता था। मामले में मेडिकल स्टोर्स, सप्लायर एजेंसी के साथ प्रिंटिंग प्रेस के संचालक के खिलाफ भी प्रकरण तैयार किया जा रहा है।
जब्त माल कोर्ट के सुपुर्द
खाद्य एवं औषधि प्रशासन के सहायक नियंत्रक बसंत कौशिक ने बताया कि,जब्त माल कोर्ट के सुपुर्द आई-ड्राप के सैंपल जांच के लिए लिया गया है। इसके साथ ही प्रिटिंग मटेरियल को जब्त कर कोर्ट के सुपुर्द कर दिया गया है। सैंपल की रिपोर्ट मिलने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।