रायपुर। छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के लिए प्रसिद्ध राजधानी रायपुर के गढ़कलेवा के मेन्यू से छत्तीसगढ़ का ठेठ देहाती पारंपरिक व्यंजन बोरे बासी गायब हो गया है, जिसके कारण लोगों को बोरे बासी का स्वाद भी चखने के लिए नहीं मिल पा रहा है। पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस 1 मई 2023 को मजदूरों के सम्मान में बोरे बासी को तिहार के रूप में पूरे प्रदेश में मनाया गया था।
इस तिहार को राज्य में अलग-अलग अंदाज में मनाया गया था, जिसमें मंत्री, सांसद, विधायक से लेकर मुख्य सचिव, कलेक्टर-एसपी सहित सारे विभागों के अफसरों से लेकर कर्मचारियों ने इस दिन बोरे- बासी खाया था। खाना खाने के साथ इनका फोटो भी अलग खूब सोशल मीडिया में वायरल किया गया था, जिसके कारण इस छत्तीसगढ़ी व्यंजन को राष्ट्रीय स्तर तक पहचान मिली थी। सरकार बदलने के बाद बोरे-बासी की पूछ-परख बंद हो गई है, जिसके कारण छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के मेन्यू से ही यह गायब हो गया है।
बोरे-बासी खाने के फायदे
छत्तीसगढ़िया व्यंजन बोरे-बासी खाने से कई फायदे होते हैं। इसे खाने से खूब प्यास लगती है और ज्यादा पानी पीने से डि-हाइड्रेशन जैसी समस्या नहीं होती। बताया जाता है कि इसे खाने के बाद यह शरीर के ताप को नियंत्रित करता है। जिसकी वजह से पड़ने वाली गर्मी और लू का प्रभाव नहीं पड़ता। इसे खाने से नींद भी अच्छी आती है।
गढ़कलेवा की सूरत भी बिगड़ी
राजधानी रायपुर के कलेक्टोरेट चौक के पास संस्कृति विभाग परिसर में स्थित गढ़कलेवा नाम से एक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का रेस्टारेंट बनाया गया है, जिसमें सिर्फ छत्तीसगढ़ी व्यंजन ही लोगों को परोसे जाते हैं। गढ़कलेवा में लोगों के बैठने के लिए टेबल-कुर्सी से लेकर कॉटेज सभी बस्तर के पारंपारिक कलाकृति स्टाइल में बनाया गया है, ताकि यहां पहुंचने वाले लोग छत्तीसगढ़ की संस्कृति व कलाकृति से परिचित होने के साथ-साथ छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का लुत्फ उठा सकें, लेकिन पिछले सालभर से गढ़कलेवा का रखरखाव नहीं होने से इसकी सूरत बिगड़ने लगी है। यहां बस्तर की कलाकृतियों से बने कॉटेज व अन्य कलाकृतियां जंग खाने के साथ टूट-फूट गई हैं। यही नहीं, लकड़ी व बांस से बनाए गए टेबल-कुर्सी सहित अन्य कलाकृतियां भी बेरंग हो चुकी हैं।
कलेक्टोरेट परिसर में संचालित गढ़कलेवा से भी बोरे बासी गायब
कलेक्टोरेट स्थित जिला पंचायत बिल्डिंग परिसर में संचालित गढ़कलेवा के व्यंजनों के मेन्यू से बोरे- बासी का नाम हटा दिया गया है। इसके कारण यहां भी बोरे-बासी अब मिलना बंद हो गया है। इस गढ़कलेवा की संचालक विनीता पाठक ने बताया कि पिछली सरकार के कार्यकाल में 1 मई को बोरे- बासी लोगों को परोसा गया था। इसके बाद कुछ दिनों तक बोरे-बासी की मांग रही, लेकिन बाद में इसकी मांग कम हो गई, जिसके कारण बोरे-बासी रखना बंद कर दिया है। इस गर्मी के सीजन में भी मांग अभी नहीं है। 1 मई को श्रमिक दिवस पर बोरे-बासी व्यंजन बनाया जाएगा। राज्य में बोरे-बासी तिहार मनाये जाने के बाद गढ़कलेवा के साथ कई छोटे-बड़े होटल व रेस्टोरेंट में भी बोरे-बासी मिलने लगा था, लेकिन अब उन होटल- रेस्टोरेंट के मेन्यू से भी यह गायब हो चुका है।