बिलासपुर। हाईकोर्ट से ऑप्टोमेट्री एवं एमएलटी के विद्यार्थियों को बड़ी राहत मिली है, जिससे अब वे शासकीय नौकरी भी पा सकेंगे। इसके साथ ही पैरामेडिकल में श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण विद्यार्थियों का अब छत्तीसगढ़ पैरामेडिकल काउंसिल में पंजीयन हो सकेगा। चिकित्सा के क्षेत्र में पैरामेडिकल विज्ञान के दक्ष विशेषज्ञों की आवश्यकता है। राज्य में विभिन्न शासकीय एवं गैर शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय तथा चिकित्सालयों की सफलता निदान प्रक्रिया पर निर्भर करता है। पैरामेडिकल स्टाफ की दक्षता से चिकित्सक रोगी की बीमारी पर सही उपचार को अंतिम रूप देते हैं। श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी में ऑप्टोमेट्री आंख की जांच के लिए स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर के पाठ्यक्रम एवं बीएससी एमएलटी के पाठ्यक्रम संचालित हैं।
यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण विद्यार्थियों का पैरामेडिकल काउंसिल में पंजीयन नहीं किया जा रहा था। इस कारण विद्यार्थी छत्तीसगढ़ शासन के शासकीय नौकरी से वंचित हो रहे थे। इससे उत्तीर्ण विद्यार्थियों द्वारा हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई थी, हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की सुनवाई उपरांत निर्णय दिया है। कोर्ट के उक्त निर्णय से श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी से उत्तीर्ण 500 से अधिक पैरामेडिकल विद्यार्थियों के पैरामेडिकल काउंसिल में पंजीयन का मार्ग खुल गया है, उन्हें विधिवत रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक प्रमाण पत्र भी प्राप्त हो जाएगा, जिससे वे विभिन्न छत्तीसगढ़ शासन एवं केन्द्र शासन के शासकीय व अशासकीय चिकित्सा क्षेत्रों में रोजगार पा सकेंगे। इस निर्णय के उपरांत यूनिवर्सिटी द्वारा संचालित पैरामेडिकल स्नातक एवं स्नातकोत्तर प्रशिक्षण के लिए प्रवेश लिए विद्यार्थियों में उत्साह दिखा है।
कोर्ट ने यह दिया निर्णय
कोर्ट ने कहा है कि तथ्यों और उपरोक्त प्रस्तुतियों को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि यूनिवर्सिटी को डिग्री प्रदान करने का अधिकार है और प्रतिवादी नंबर दो छत्तीसगढ़ पैरामेडिकल काउंसिल नाम की प्रविष्टियों पर विचार करने और पंजीकृत करने का अधिकार है। पैरामेडिकल के चिकित्सक, यूनिवर्सिटी ने याचिकाकर्ताओं को यूजीसी की धारा के अनुसार डिग्री प्रदान की है। अधिनियम 1956 और पैरामेडिकल काउंसिल ने याचिकाकर्ताओं के नाम पंजीकृत नहीं किए हैं। प्रतिवादी नंबर दो को इस निर्देश के साथ याचिका का निपटारा किया जाता है कि वह इस संबंध में प्रविष्टियां करके याचिकाकर्ताओं को परिषद के रजिस्टर में उनका नाम दर्ज करके पंजीकरण प्रदान करें। रजिस्टर में याचिकाकर्ताओं का नाम उचित समय तक रखा और बनाए रखा जाए। प्रतिवादी नंबर दो को प्रैक्टिस का अपेक्षित प्रमाण पत्र जारी करने का भी निर्देश दिया जाता है। यदि यह पाया जाता है कि याचिकाकर्ताओं ने गलत तरीके से डिग्री प्राप्त की है तो प्रतिवादी नंबर दो अधिनियम 2001 की धारा 40 के तहत याचिकाकर्ताटों की प्रविष्टियों पर रोक लगाने के लिए स्वतंत्र होगा।