रफीक खान-कोटा। नक्सलियों के खिलाफ चल रहे अभियान में बस्तर के सैकड़ों जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी है। ये वो जवान थे जिन्होंने अपनी जिंदगी ठीक से जी ही नहीं। जिन्होंने अपने सपने पूरे नहीं किए, जो देश की खातिर शहीद हो गए। उनकी याद में गांव- गांव में स्मारक बनाए गए। प्रतिमाएं लगाई गई । ताकि वे हमें प्रेरणा देते रहें। देशप्रेम की भावना जगाते रहें। लेकिन हो क्या रहा है, उनकी कद्र नहीं हो रही। प्रतिमाएं टूट रही हैं। बदरंग हो रही हैं। किसी के हाथ टूटे हैं तो किसी के  पैर। यह सब देखना दुखद है। वह भी तब जब देश कुछ दिन बाद ही स्वतंत्रता दिवस मनाने वाला है। यह हालात देखकर शहीद के परिजनों और ग्रामवासियों में निराशा और नाराजगी देखी जा रही है।

साल में केवल दो बार राष्ट्रीय पर्व में शहीद स्मारकों पर पुष्प चढ़ाकर श्रद्धांजलि दे दी जाती है। आजादी का पर्व 15 अगस्त को 4 दिन बचे हैं लेकिन अभी तक राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित ग्राम एर्राबोर जहां शहीद कई जवानों के स्मारक बनाए गए हैं वहां साफ-सफाई और रंगरोगन तक नहीं किया गया है। यहां रक्षा बंधन के दिन बहने आकर अपने शहीद भाईयों को याद कर राखी बांधती हैं। लेकिन शहीद स्मारकों को जस के तस हाल में छोड़ दिया गया है। कोण्टा नगर के बण्डा बेस कैंप में बने शहीद जवानों के स्मारक टूटे फूटे अपने हाल में हैं। वहीं ग्राम पंचायत एर्राबोर में  उरपालमेटला मुठभेड़ में शहीद हुए जवानों के स्मारकों का भी यही हाल है। इन दो राष्ट्रीय राजमार्ग के शहीद स्मारकों के अलावा अन्य कई गांव  तथा अंदरूनी इलाकों में भी उन गांव के शहीदों की याद में परिजनों और ग्रामवासियों ने प्रतिमा स्थापित किए हैं लेकिन उनकी भी हालत रख-रखाव के अभाव में खस्ता होने लगी है।

शहीद परिवार ने ही बनाया स्मारक

माओवादियों से लड़ते हुए अपने क्षेत्र को नक्सल दंश से बाहर निकाले के लिए शहीद हुए इन जवानों के परिजनों द्वारा ही जैसे तैसे इन स्मारकों का निर्माण अपने पैसों से करवाया गया है। लेकिन इन वर्दीधारी शहीद स्मारक के रंग रोगन तक की व्यवस्था किसी ने दो दशक के बाद से अब तक नही किया है। शुरुवात में जैसी स्थिति में प्रतिमा स्थापित की गई थी उसके बाद से रंगरोगन नहीं किया गया है।

उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता

सुकमा एसपी किरण चव्हाण ने बताया कि, मेरे आने के बाद से किसी तरह का जीर्णोद्धार का प्रस्ताव शासन को नहीं भेजा गया है। वहीं इसके लिए किसी तरह का मद होने के विषय में पता करना पडेगा। शहीद जवानों ने हिंसा और अन्याय के खिलाफ प्राणों की आहुति दी है- उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।