महेंद्र विश्वकर्मा- जगदलपुर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सुकमा जिले के विकास खंड कोंटा का घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र के अंदरूनी गांव आज भी दहशत के पर्याय हैं। भारत सरकार की टीम ने 15-16 नवंबर को चिंतागुफा पहुंचकर 6 विभाग ओपीडी, आईपीडी, लैब, प्रसव कक्ष, एनएचपी, सामान्य की समीक्षा की। पूरी चिंतागुफा टीम की लगन मेहनत और संगठन के कारण कार्यक्रम सुगमता से संपन्न हुआ। टीम की मेहनत रंग लाई और 28 नवंबर को चिंतागुफा ने इतिहास बनाते हुए 89.69 फीसदी के साथ सुकमा जिले में प्रथम स्थान पर राष्ट्रीय गुणवत्ता आश्वासन मानक सर्टिफिकेट प्राप्त किया। कुछ सालों पहले तक एक कमरे में संचालित अस्पताल आज पूरे जिले के लिए उदाहरण बना हुआ था। चिंतागुफा में संस्थागत प्रसव मासिक औसत 20, ओपीडी औसत प्रतिमाह 1000 से ज्यादा एवं भर्ती मरीज औसत 100 से ज्यादा हैं।
वर्ष 2011 में स्कूली बच्चों की बस में हुआ था नक्सली हमला
चिंतागुफा स्वास्थ्य केंद्र के अंतर्गत 5 उप स्वास्थ्य केंद्र हैं, जिसमें 45 घोर नक्सल प्रभावित गांव आते हैं। वर्ष 2009 में जब आरएमए मुकेश बख्शी की पदस्थापना हुई तब यहां स्वास्थ्य सेवा अस्तित्व में आया, उस समय यह क्षेत्र भवन, नेटवर्क, सड़क नहीं था और स्टाफ में सिर्फ एक आरएमए और एक वार्ड ब्वाय के साथ स्कूल के एक कमरे में संचालित हुआ। जिस कमरे में इलाज होता था, उसी कमरे में ही प्रभारी सोते थे। उसी दौरान 11 अप्रैल 2011 में स्कूल के बीमार बच्चों को बेहतर इलाज के लिए नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र दोरनापाल एंबुलेंस से ले जाते समय नक्सली हमला हुआ था। जिसमें एंबुश लगाकर नक्सलियों ने एंबुलेंस में गोलीबारी किया था जिसमें बच्चों के साथ चिंतागुफा संस्था प्रभारी आरएमए मुकेश बख्शी थे।
पांच आवासीय भवन का हुआ निर्माण
एंबुलेंस में 8 गोलियां लगी पर किसी को गोली नहीं लगी। वर्ष 2010-2019 तक चिंतागुफा के एक कमरे में ही आरएमए एक स्टाफ नर्स एक वार्ड आया के साथ अस्पताल चलता रहा और मरीजों को हर सुविधा उपलब्ध कराने की कोशिश करते रहे। वर्ष 2020 में चिंतागुफा अस्पताल भवन और पांच आवासीय भवन का निर्माण हुआ। वर्ष 2023 में कायाकल्प में जिले में सबसे ऊपर रहने के बाद राज्य एवं जिले के अधिकारियों के सहयोग, खंड चिकित्सा अधिकारी कोंटा एवं
डब्ल्यूएचओ के मार्गदर्शन में एनक्वॉस के लिए तैयारियां शुरू हुई। राज्य एवं संभाग में प्रशिक्षण पश्चात स्टाफ को प्रशिक्षण देना और सबको बार- बार प्रोत्साहित करना शुरू में मुश्किल लगा पर जब सबने प्रण कर लिया। एक टीम के रूप में कार्य करना शुरू किया तो दिक्कत कुछ कम लगने लगी। चिंतागुफा ऐसा क्षेत्र है जहां साप्ताहिक हाट बाजार एवं एक किराना दुकान के अलावा कुछ भी नहीं है। हर सामग्री के लिए सबसे नजदीक 35 किमी दोरनापाल एवं सुकमा 80 किमी जाना पड़ता है।
WHO का था मार्गदर्शन
गांव के सरपंच और अन्य लोगों से तालमेल, उच्च अधिकारियों के मार्गदर्शन, खंड चिकित्सा अधिकारी कोंटा का विशेष सहयोग एवं डब्ल्यूएचओ का मार्गदर्शन रहा। आयुष्मान के राशि से अस्पताल का रख रखाव संभव हो पाया। माह जुलाई में तीन दिवसीय राज्य स्तरीय एनक्वॉस आईए प्रशिक्षण में आरएमए मुकेश बख्शी ने प्रशिक्षण लिया एवं परीक्षा पास किया और राष्ट्रीय बन गया।
बारिश में टापू तब्दील हो जाता है चिंतागुफा
बारिश में चिंतागुफा क्षेत्र आवागमन के लिए आसान नहीं रहता और कभी भी टापू में तब्दील हो जाता है। अब विकास खंड के अधिकारी डब्ल्यूएचओ एवं चिंतागुफा टीम में डॉ. अनिल पटेल, महेंद्र काको, सीमा किस्पोट्टा, रीना कुमारी, पार्वती कुहरम, अनिता सोढ़ी, नरेश मंडावी, आशीष मंडल, निशारानी, उमेश मांझी, गीता नाग, सुनीता कट्टम, प्रेम कश्यप, कविता बघेल, नितिन, ध्रुव, अजय नाग सहित खंड चिकित्सा अधिकारी कोंटा डॉ. दीपेश चंद्राकर का सहयोग से एनक्वॉस रहा। हर काम में गुणवत्ता एवं मानक रखने, अस्पताल का परिचय कराना सिखाया।
7 जिलों में बनाए गए 49 एनक्वॉस केन्द्र
स्वास्थ्य विभाग बस्तर संभाग के संयुक्त संचालक डॉ. केके नाग ने बताया कि संभाग के सातों जिलों में 49 स्वास्थ्य केन्द्र (एनक्वॉस) राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक मिला और 86 केन्द्रों को एनक्वॉस बनाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए जिले के सीएमएचओ को निर्देश दिया गया है।