जागिए सरकार...इससे पहले कि, कोई और 'मुकेश' हो जाए...

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पत्रकार मुकेश चंद्राकर की अंतिम यात्रा
बस्तर में भ्रष्टाचार के मामले तो कई सामने आए हैं, संभवत: आगे भी खुलासे होते रहेंगे। यहां मेरी कोशिश इस बात को लेकर है कि, मेरा कोई और साथी भ्रष्टाचार की इस बलि वेदी में होम ना हो जाए।

चन्द्रकान्त शुक्ला

छत्तीसगढ़ में साल 2018 से लेकर 23 तक बस्तर भ्रष्टाचार का अड्डा बना रहा। भ्रष्ट अफसरों- ठेकेदारों और नेताओं की तिकड़ी ने यहां कागजों पर ही काम दिखाकर सैकड़ों करोड़ रुपये डकार लिए। इस तरह की खबरें आए दिन प्रकाशित होती रही हैं। सरकार बदलने के बाद इनमें से कुछ की जांच शुरू हो गई है। ऐसे ही एक भ्रष्टाचार को उजागर करने की कीमत पत्रकार मुकेश चंद्राकर को अपनी जान से चुकानी पड़ी है।

मुकेश चंद्राकर की हत्या की वजह बनी सड़क में भ्रष्टाचार का ऐसा नंगा नाच किया गया था कि, उसकी जांच में बाधा डालने के लिए ठेकेदार और उसके पार्टनर्स कुछ भी करने को तैयार थे। दरअसल बीजापुर जिले के गंगालूर से नेलशनार गांव तक सड़क निर्माण के लिए एक टेंडर जारी हुआ। लोक निर्माण विभाग ने किस्तों में इस एक सड़क के लिए एक ही ठेकेदार के साथ कुल 16 अनुबंध किए। इन 16 अनुबंधों की कुल लागत 56 करोड़ थी। लेकिन बाद में अफसरों और संभवत: नेताओं के संरक्षण में ठेकेदार ने उसकी लागत 112 करोड़ रुपये तक बढ़वा ली।

अब चूंकि राज्य में सरकार कांग्रेस की, ठेकेदार भी कांग्रेस का, तो ऐसा तो संभव नहीं लगता कि स्थानीय नेताओं की जानकारी में आए बिना इतना बड़ा झोल-झाल हो गया होगा। किसी सड़क की लागत 56 करोड़ से 112 करोड़ तक बढ़ा दी जाए, यह सर पर किसी 'बड़े हाथ' के बिना तो संभव नहीं हुआ होगा। उस पर भी तुर्रा यह कि, सड़क पहली ही बारिश में लगभग गायब हो गई। इसका मतलब यह हुआ कि, इस मामले में कम से कम 100 करोड़ रुपयों का बंदरबांट हुआ।

यह पूरा मामला है साल 2024 के शुरुआती दिनो का। क्योंकि सड़क भी मई- जून 2024 में बनकर तैयार दिखा दी गई। विभाग से 112 करोड़ का भुगतान भी हो गया। इसी भ्रष्टाचार को उजागर किया पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने। इसी बीच दिसंबर में प्रदेश में सत्ता बदल गई। नई सरकार तक बात पहुंची तो जांच बिठा दी गई। यही खुलासा और जांच पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या की वजह बनी।

बस्तर में नक्सल भय के नाम पर वैसे ही ठेके की दरें काफी ज्यादा होती हैं। वहीं सुना तो यह भी जाता है कि, अब भी कहीं-कहीं एक हिस्सा नक्सलियों तक पहुंच रहा है। वहीं यह भी कई मामलों में देखा गया है कि, काम कहां तक पहुंचा है, किस क्वालिटी से काम हो रहा है, यह बस्तर में ठेकेदार को भुगतान के लिए कोई मान्य शर्तें नहीं रह जातीं। इस रवैये को भी बदलना होगा।

जिस तरह से पांच साल तक बस्तर में भ्रष्टाचार को खुला खेल चला है, उसकी आंच किसी और पत्रकार तक पहुंचे इससे पहले ही सरकार को सतर्क हो जाना चाहिए। यह केवल दो-चार दिन रो-पीटकर चुप बैठ जाने वाला नहीं बल्कि आखें खोलने वाला मामला बन जाना चाहिए। जांच और कार्यवाही की चाल 'कछुआ' साबित हुई तो ऐसे और वाकए सामने आ सकते हैं।

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