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लोकसभा की 11 सीटों में सबसे हाईप्रोफाइल सीटों में से एक बिलासपुर है। पहले यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी, लेकिन परिसीमन के बाद से बिलासपुर सामान्य सीट हो गई है।

विकास चौबे  - बिलासपुर। अपनी रणनीति के तहत भाजपा भी पिछले तीन चुनाव से चेहरा बदल कर चुनाव जीतने में कामयाब होती रही है। ऐसे में इस बार भी भाजपा ने जातिगत समीकरण को ध्यान में रखते हुए नए प्रत्याशी और पूर्व विधायक तोखन साहू को उम्मीदवार बनाया है। इस स्थिति में कांग्रेस के लिए यह सीट किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। कांग्रेस ने यहां से भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव पर भरोसा जताते हुए प्रत्याशी बनाया है। कांग्रेस ने जातिगत समीकरण पर दांव खेलते हुए उन्हें मैदान में उतारा है, लेकिन देवेंद्र यादव के लिए चुनौती आसान नहीं है। इस सीट पर कांग्रेस 1996 से नहीं जीत पाई है। पिछले चुनाव में भी कांग्रेस के अटल श्रीवास्तव को भाजपा के अरुण साव से एक लाख 41 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।

जातिगत समीकरण बना आधार

बिलासपुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने भाजपा की तरह जातिगत समीकरण के आधार पर कैंडिडेट तय करने की रणनीति बनाई। भाजपा ने ओबीसी वर्ग से साहू समाज के नेता का नाम तय किया। ऐसे में कांग्रेस चाहकर भी इस समाज के नेता का चयन नहीं कर पाई। यही वजह है कि इसके विकल्प के तौर पर ओबीसी वर्ग के यादव समाज के नेता की तलाश शुरू हुई, क्योंकि लोकसभा में यादव समाज के दो लाख से अधिक वोटर्स हैं, जो अगर एकजुट हो गए, तो निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं

कुल 20 लाख वोटर्स करेंगे फैसला

बिलासपुर लोकसभा सीट पर करीब 21 लाख वोटर हैं। इसमें क्रमशः सतनामी, आदिवासी, साहू, कुर्मी समाज का वर्चस्व है। जानकारी के लिए बता दें, इस लोस सीट की 8 विधानसभा में से 6 पर भाजपा तो 2 पर कांग्रेस का कब्जा है।

भाजपा का मजबूत गढ़ बन गया है बिलासपुर 

साल 1996 के चुनाव से बिलासपुर लोकसभा भाजपा का गढ़ बन गया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता पुन्नूलाल मोहले की जीत का रिकार्ड को कांग्रेस कभी नहीं तोड़ पाई। उन्होंने गोदिल प्रसाद अनुरागी की बेटी तान्या अनुरागी को 48 हजार 615 वोटों से हराया था। जिसके बाद से वो 1998, 1999 और 2004 में लगातार जीत दर्ज करते रहे। फिर 2009 में परिसीमन के बाद बिलासपुर सामान्य सीट घोषित हुआ। इस बार दिलीप सिंह जूदेव ने कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रेणु जोगी को हराया। फिर 2014 में भाजपा ने लखनलाल साहू को टिकट दिया। वहीं, कांग्रेस ने करूणा शुक्ला को उम्मीदवार बनाया। इस चुनाव में लखनलाल साहू 1 लाख 50 हजार से अधिक वोटों से चुनाव जीत गए। फिर 2019 में भाजपा ने अरूण साव को उम्मीदवार बनाया, जिनसे मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा और अटल श्रीवास्तव चुनाव हार गए।

देवेंद्र यादव के आने से दिलचस्प होगा मुकाबला

देवेंद्र यादव को प्रत्याशी बजाए जाने के बाद इस बार चुनाव दिलचस्प होने के आसार है। क्योंकि ने छात्र राजनीति से कैरियर की शुरूआत की थी। एनएसयूआई अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं। 25 वर्ष की उम्र में देश के सबसे कम उम्र के महापौर बनने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है। 2018 में पहली बार विधायक बनने वाले देवेंद्र यादव की युवाओं के बौच अच्छी पैठ है। उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने के बाद चुनाव में कांग्रेस की गुटबाजी कम नजर आएगी, जिसका फायदा उन्हें और पार्टी को मिल सकता है। इसके साथ ही बिलासपुर में युवाओं को उनकी टीम है और युवक कांग्रेस के स्थानीय नेता व कार्यकर्ताओं से उनकी करीबी भी है। हालांकि देवेंद्र यादव को माजपा बाहरी प्रत्याशी बताकर मुद्दा बना रही है। इसके साथ ही कोल स्कैम घोटाले में इंडी में उन्हें आरोपी बनाया है। इसे भी भाजपा उछालकर चुनावी मुद्दा बजाने की कोशिश में है।

बिलासपुर लोकसभा

कुल वोटर - 20 लाख 94 हजार 570
पुरुष वोटर - 10 लाख 52 हजार 173
महिला वोटर - 10 लाख 42 हजार 298 

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