संदीप करिहार- बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक ऐसा देवी का दरबार है, जिसको राजा के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि, यहां आज भी राजा देवी मां के दर्शन के लिए रोज सुबह घोड़े पर सवार होकर मंदिर की परिक्रमा करने आते है। घोड़े के टाप से अपने श्रद्धालुओं और पुजारी को अहसास कराते हैं....! इस मंदिर के एक ऐसे रहस्य से रूबरू करवाने जा रहें है। जिसे जानकार आप भी हैरत में पड़ जायेंगे। 

लोगों की मुरादों को पूरा करती हैं माता 

कहा जाता है कि, जो भी इस मंदिर की चौखट पर आया वो खाली नहीं गया है। जितनी अनोखी इस मंदिर की मान्यता है, उतनी अनोखी इस मंदिर की कहानी है। कहा जाता है कि, यहां विराजमान मां भगवती देवी के आशीर्वाद से हर संकट दूर हो जाते है और यहां कुंवारी लड़कियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। निसंतानों को संतान की प्राप्ति होती है और माता भक्तों की मुरादों को पूरी करती हैं। मनचाहा वरदान भी दयालु देवी मां अपने भक्तों को देती है और यहां आने से लोगों के सभी कष्ट दूर हो जाते है। यहां आने मात्र से ही मन को शान्ति और सुख, समृधि और मनोकामना का लाभ मिलता है। देवी मां के इस मंदिर को राजा के नाम से भी जाना जाता है तो चलिए आपको हम इस मंदिर के एक ऐसे रहस्य से रूबरू करवाने जा रहें है। जिसे जानकार आप भी हैरत में पड़ जायेंगे और इस दंत कथा की कहानी से वाकिफ भी होंगे। छत्तीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर में मां भगवती देवी की साढ़े पांच सौ साल पुराना ये प्रमुख मंदिर है। यहां रोज सुबह घोड़े के टाप की आवाज से राजा के मंदिर परिक्रमा करने का आभास होता है। ये जानकर जरुर आपको मैहर वाली शारदा माता के अन्यय भक्त वीर योद्धा आल्हा और उदल का ख्याल आ रहा होगा। कुछ ऐसा ही वाकया बिलासपुर के श्री हरदेव लाल मां भगवती देवी से जुड़ा हुआ है। 

पूजा कर रही श्रद्धालु

यह है मंदिर का इतिहास 

इस मंदिर के तीसरे पीढ़ी के मुख्य पुजारी अर्जुन मिश्रा ने हरिभूमि.कॉम संवाददाता संदीप करिहार से बातचीत में दावे के साथ बताया कि, रोजाना घोड़े के टाप की आवाज और मंदिर की परिक्रमा पूरी कर राजा दरबार में हाजरी लगाते है। ये इसी बात का प्रतीक है कि मां भगवती के अनन्य भक्त रहें राजा हरदेव लाल को आज भी देवी मां की कृपा से सबसे पहले दर्शन और पूजा करने का सौभाग्य मिला हुआ है। इसलिए इस मंदिर से भक्तों की मुराद फेरी नहीं जाती है, बल्कि भक्तो की मनोकामना पूरी होती है। यहां प्रात:काल से देर रात तक भक्तों की भीड़ लगी रहती है। माना जाता है कि नवरात्र में यहां की गई पूजा निष्फल नहीं जाती है। उन्होंने आगे कहा कि, आज से साढ़े पांच सौ साल पहले बुन्देलखंड के एक महाराजा हुआ थे! वे अपनी पत्नी और छोटे भाई हरदेव लाल इन दोनों को लेकर अवैध संबंध होने का संदेह किया करते थे। इसी बात को लेकर महाराजा ने अपनी पत्नी को कहा कि मेरे छोटे भाई को तुम जहर दे दो... इसे सुनते ही महारानी ने एतराज जाहिर करते हुए जहर देने से इंकार कर दिया।

राजा के सपने में आई देवी माता 

उन्होंने आगे बताया कि, जब इस बात की भनक महाराजा के छोटे भाई को हुई तो उन्होंने महारानी से कहा कि भाभी आप मुझे जहर दे दीजिये। अन्यथा समाज में गलत सन्देश चला जाएगा। जिस पर महारानी ने अपने देवर को जहर दे दिया और उसके बाद देवर हरदेव लाल जहर का सेवन करते ही अंतर्ध्यान हो गए। इस बात की जानकारी महाराजा को हुई तो उन्हें अहसास हुआ कि उनसे बहोत बड़ी भूल हुई है। आत्मग्लानि में महाराजा अपने बुंदेलखंड का राजपाठ त्याग कर निकल पड़े! इस बीच एक रात महाराजा साढ़े पांच सौ साल पुराने बिलासपुर के शनिचरी स्थित ठहरे हुए थे। तभी उनके स्वप्न में देवी मां आई और उन्हें कहा कि, मैं इसी स्थान पर प्रकट हो रही हूं, तुम मेरे मंदिर की स्थापना करा देना। जिसके बाद मां भगवती और मां शीतला दोनों की भूमि उत्पत्ति हुई और विराजमान हो गए। उनके स्थान पर राजा ने मंदिर बनवाया और मंदिर का नाम अपने छोटे भाई श्री हरदेव लाल मां भगवती मंदिर के नाम से नामकरण कर दिया।

हर रोज घोड़े से दर्शन करने आते हैं भक्त हरदेव लाल

तब से इस मंदिर में हरदेव लाल घोड़े में सवार होकर मंदिर की परिक्रमा करते है और देवी मां के दरबार में हाजरी लगाते है। उनके घोड़े के टाप की आवाज का अहसास होता है। पुजारी अर्जुन मिश्रा बताते है कि, उनके चाचा रामलखन दास जी महंत हुआ करते थे। एक समय उनका तबियत खराब चल रहा था, शायद तांत्रिक विद्या से वार किया गया था। तांत्रिक उन्हें आज तुम्हे नहीं छोडूंगा कहकर जिद पर अड़ा था। इसी बीच महंत रामलखन दास के सिरहाने पर बड़ा सा उल्लू आकर बैठ गया और भगाने से भी नहीं भाग रहा था। तभी अचानक घोड़े के टाप की आवाज जोर-जोर से आने लगी। तब वो तांत्रिक यह कहकर भागने लगा कि आज तुम हरदेव लाल के आने की वजह से बच गए हो। फिर अगली सुबह से उनका स्वस्थ्य ठीक होने लगा और फिर बगैर किसी इलाज के वो पहले की तरह एकदम से ठीक हो गए। तब से राजा हरदेव लाल के होने का अहसास होता है। तभी उनके स्वप्न में देवी मां आई और उन्हें कहा कि, मैं इसी स्थान पर प्रकट हो रही हूं, तुम मेरे मंदिर की स्थापना करा देना। जिसके बाद मां भगवती और मां शीतला दोनों की भूमि उत्पत्ति हुई और विराजमान हो गए।उनके स्थान पर राजा ने मंदिर बनवाया और मंदिर का नाम अपने छोटे भाई श्री हरदेव लाल मां भगवती मंदिर के नाम से नामकरण कर दिया।

स्थानीय लोगों और पुजारी को सुनाई देती है घोड़े की टाप 

जिस तरह एमपी के मैहर मां शारदा के अनन्य भक्त वीरयोद्धा आल्हा और उदल की कहानी से हर कोई वाकिफ है। लेकिन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित शनिचरी पड़ाव में विराजमान माँ भगवती के भक्त की कहानी का लोग अब तक अनजान है। इस मंदिर के मान्यताओं के अनुसार पंडित अर्जुन मिश्रा ने दावा करते हुए बताया कि, मैहर वाली शारदा माता के अनन्य भक्त जिस तरह से मंदिर में सबसे पहले पूजा-अर्चना करते है। देवी मां से आशीर्वाद लेने रोजाना आता है। ठीक इसी तरह राजा हरदेव लाल मां भगवती देवी के मंदिर की परिक्रमा घोड़े में सवार होकर करते है। उनके घोड़े के टाप की आवाज का अहसास होता है! इसके साथ ही देवी माँ के दरबार में हाजरी लगाकर आशीर्वाद प्राप्त करते है। हरदेव लाल मां भगवती के बहोत बड़े उपासक थे। इसलिए मां अपने भक्तों के मुरादों को पूरा करने में ज्यादा देर नहीं लगाती है।

श्रद्धालु सपना बोलीं- 15-17 सालों से परिवार के साथ आतें हैं दर्शन करने 
 
इस चैत्र नवरात्र के अवसर पर मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंची श्रद्धालु सपना कटेलिया ने कहा कि, मां भगवती का बहोत पुराना मंदिर है। यहां 15-17 सालों से परिवार के साथ आ रहें है। यहां आने के बाद मन को सुख, शान्ति और सुकून मिलता है। इस सांचे दरबार में जो भी श्रद्धालु श्रद्धा से पूजा करते है और देवी मां का दर्शन करते है। उनकी इच्छा पूरी होती है। यहां सारे दुख दर्द और कष्ट दूर हो जाते हैं और आज यहां आने से सौभाग्य की प्राप्ति का एहसास करती हूं। नवरात्रि में आज मैं उपवास हूं और आज देवी मां को प्रसन्न करने के लिए पूर्ण श्रृंगार और उनके भोग प्रसाद उन्हें अर्पित करूंगी। 

कुलदेवी और आराध्य देवी के तौर पर करते हैं पूजा- भक्त महेश कुमार

इसी तरह मंदिर का दर्शन करने पहुंचे भक्त महेश कुमार वैद्य ने बताया कि, बिलासपुर का हरदेव लाल मंदिर सबसे पुराना मंदिर है। यहां के लोगों के लिए मां का दरबार आस्था और विश्वास का एकमात्र केंद्र है। बिलासपुर के लोग इस दरबार को कुलदेवी और आराध्य देवी के तौर पर मां भगवती को पूजा करते है। इस मंदिर की विशेषता इतनी है कि हर लोगों की आस्था इस मंदिर से जुड़ी हुई है। मैं अक्सर इस मंदिर में आया करता हूं , विशेष कर मंगलवार और शनिवार के अलावा नवरात्रि में पूरे दिन यही दर्शन करता हूं। यहां आने के बाद देवी मां की छत्रछाया और कृपा की का एहसास होता है।