रविकांत सिंह राजपूत-मनेन्द्रगढ़। पिता की चिता में मुखाग्नि सिर्फ बेटा ही दे सकता है। बेटियां चिता को आग नहीं लगा सकतीं। इस रूढ़िवादी सामाजिक सोच से ऊपर उठकर शहर के नदीपार इलाके की मनीष रैकवार परिवार की दो बेटियों ने सोमवार को न सिर्फ पिता के शव को कंधा लगाया, बल्कि श्मशान घाट पर मुखाग्नि देकर अपना फर्ज अदा किया। शमशान घाट पर मनीष रैकवार की दोनों बेटियां भी गई थीं। पिता मनीष रैकवार को मुखाग्नि देकर बेटी ने साबित कर दिया कि, बेटा और बेटी में फर्क नहीं होता।
दसअसल, मनेन्द्रगढ़ शहर के नदीपार स्थित सुरभि पार्क के पास 50 वर्षीय मनीष रैकवार का रविवार दोपहर निधन हो गया था। निधन के दौरान घर पर उनकी पत्नी गायत्री रैकवार और बड़ी बेटी मनस्वी रैकवार थी। छोटी बेटी मान्यता रैकवार एग्रीकल्चर की पढ़ाई बेमेतरा में करती थी। रविवार दोपहर उसे पिता के निधन की सूचना मिली। फिर सोमवार को मनीष रैकवार की छोटी बेटी मान्यता रैकवार घर पहुंची। पिता मनीष रैकवार को कंधा देकर श्मशान घाट तक पहुंची और मुक्तिधाम में मुखाग्नि दी।
मौजूद लोगों की भी आखें हुईं नम
बेटी ने अपने पिता के लिए बेटा और बेटी दोनों का कर्तव्य निभाकर उन्हें मुखाग्नि दी। पिता के निधन से दुखी बेटी मान्यता और मनस्वी बड़े भारी दुखित मन से पिता की अंतिम यात्रा में शामिल हुई शमशान घाट में आंखों से छलक रहे आसुंओं के बीच इस बहादुर बेटी ने अपने पिता को मुखाग्नि दी। बेटी को उसके पिता को मुखाग्नि देते देखकर वहां उपस्थितजनों की भी अति ममतामय करुणामय दृश्य को देखकर आंखें नम हो गई।