रायपुर। रायपुर से करीब 432 किलोमीटर दूर है जगरगुंडा, जिला दंतेवाड़ा। जगरगुंडा से भी करीब 25 किलोमीटर दूर है गांव पूवर्ती। कच्चे और उबडखाबड रास्तों से गुजरते हुए हरिभूमि-आईएनएच की टीम गांव पहुंची। पूवर्ती बीते चार दशक से आतंक का पर्याय बने नक्सली माड़वी हिड़मा का गांव है। एक समय पहले तक यहां नक्सलियों का राज था। हिड़मा का आतंक ऐसा था कि फोर्स उस इलाके में घुसने से कतराती थी। लेकिन अब फिजा बदल गई है। पूवर्ती के आसपास आधा दर्जन कैंप में फोर्स ने हिड़मा की दहशत को खत्म कर दिया है। हाल यह है कि पूवर्ती चार हिस्सों में बंटा है। कुल 900 लोगों के नाम राशन कार्ड में दर्ज हैं। लेकिन गांव में सौ लोग भी मुश्किल से दिखते हैं। बाकी कहां गए...? लोग अलग- अलग जवाब देते हैं।
पूवर्ती में यहां न तो पेयजल के लिए हैंड पंप जैसी सुविधा है न ही पक्की सड़क। हालांकि अब इस गांव में बिजली आ गई है और एक राशन दुकान खुल गई है। हरिभूमि-आईएनएच की टीम जब गांव पहुंची तो रहवासी दहशत भरी नजर से देखने लगे। फिर जब हमने उन्हें विश्वास में लिया तो कुछ युवा हमसे बात करने के लिए तैयार हुए। गांव लोग बताते हैं कि बीते एक साल में सबकुछ बदल गया है। अब सरकारी योजनाएं पहुंच रही हैं। राशन मिलने लगा है। स्कूल भी खुल गया है। दवाएं भी मिलने लगी हैं। यह सब पहले कभी नहीं था, फोर्स के आने के बाद सुविधाएं आईं।
इसे भी पढ़ें...पिता और भाई की हत्या : नक्सल पीड़ित परिवार के युवाओं ने पहनी पुलिस की वर्दी
एक कहानी है हिड़मा
देवा का कहना हैं कि गांव के ज्यादातर लोगों के लिए हिड़मा केवल एक कहानी है जिसके बारे में हमने बस सुना है। वो 12 साल की उम्र में नक्सलियों के दलम में शामिल हुआ उसके बाद उसने मुड़कर गांव की तरफ नहीं देखा। हालांकि कुछ बुजुर्गों का कहना है कि कभी कभार वह अपनी मां से मिलने गांव आता था। वह इस इलाके के लिए एक पहेली बना रहा। हिड़मा लाल आतंक के रास्ते पर आगे बढ़ता गया और गांव उसके नाम की दहशत की वजह से पिछड़ता गया कोई भी शासकीय योजना गांव में लागू ही नहीं हो पाई।
गायब हो गए हिड़मा के रिश्तेदार
हिड़मा की बूढ़ी मां कच्ची झोपडी में बैठी अपनी पथराई आंखों से बेटे का रास्ता निहारती रहती थी। कुछ महीनों पहले फोर्स की मूवमेंट यहां शुरू हुई और कैंप बनने लग गए। बड़े अफसर आते और हिड़मा के बारे में पूछताछ करने लगे। फिर एक के एक आधा दर्जन कैंप गांव के आसपास खुल गए। इस बीच हिड़मा की मां और उसके कुछ रिश्तेदार गांव से गायब हो गए। गांव में सुविधाएं शुरू होने लगीं। पहले राशन दुकान खुला जिसमें हर महीने 100 क्विंटल चांवल आता है। सीआरपीएफ ने कैंपों में स्कूल खोल दिए। गांव के कैंप में ही जरूरी दवाओं वाला अस्पताल खोला गया। गांव के युवा बात करने पर कहते हैं कि उन्हें हिडमा बनकर क्या फायदा जब अपने गांव घर का ही विकास न कर पाए. देवा, इरमा, हिड़मू जैसे कई युवा बातचीत में कहते है उन्हें रोजगार और व्यापार के लिए मदद चाहिए न कि हाथों में समाज की विपरीत दिशा में चलने वालों के दिए हथियार।
फोर्स की लगातार मूवमेंट के बीच दो दर्जन लोग गायब
ग्रामीणों का ये भी कहना है कि, फोर्स के लोग यहां लगातार आते हैं। पूछताछ करते हैं। फोर्स की आमद बढ़ी तो कुछ युवा गायब हो गए। वे कहां गए कोई नहीं जानता। कुछ बुजुर्ग ग्रामीणों का दावा है कि कुछ लोगों ने सरेंडर भी किया है लेकिन ग्रामीणों का कहना है फोर्स की लगातार मूवमेंट के बीच गांव के दो दर्जन लोग गायब हैं... कोई कहता है फोर्स पकड़ के ले गई तो कोई कहता है वे भय के चलते गांव छोड़कर चले गए। लेकिन जब हमारी टीम पहुंची तो आबादी के नाम पर महज कुछ लोग ही मिले जबकि राशन के हितग्राहियों में 900 लोगों के नाम दर्ज है।