रायपुर। हरिभूमि की खबर के बाद कलेक्टोरेट के कर्मचारियों की लेटलतीफी से ड्यूटी पहुंचने में की जा रही मनमानी में सुधार आया है। खबर के पहले 10 प्रतिशत ही कर्मचारी सुबह 10 बजे पहुंच रहे थे, लेकिन खबर प्रकाशित होने के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है, हालांकि अभी भी 60 प्रतिशत कर्मचारी ऐसे हैं, जो विलंब से पहुंच रहे हैं। प्रशासन अब कर्मचारियों की लेटलतीफी को लापरवाही मानते हुए उनके खिलाफ एक्शन लेने की तैयारी में है। कलेक्टर डॉ. गौरव सिंह ने हरिभूमि से बातचीत में दो टूक कहा कि विलंब से पहुंचने वाले कर्मचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करेंगे ।
हरिभूमि की टीम ने आचार संहिता हटने के दूसरे दिन 7 जून को कलेक्टोरेट के विभिन्न विभागों में पदस्थ कर्मचारी सुबह 10 बजे समय पर पहुंचते हैं या नहीं इसकी पड़ताल की थी। सुबह 10 से 10 बजकर इस पड़ताल में 20 मिनट पर सिर्फ 10 प्रतिशत ही कर्मचारी दफ्तरों में पाए गए थे, जबकि 90 प्रतिशत कर्मचारी ड्यूटी पर ही नहीं पहुंचे थे। इसके कारण सभी दफ्तरों में सन्नाटा पसरा मिला था। माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव का खुमार कर्मचारियों के दिलों से उतरा नहीं था, जिसके कारण आचार संहिता खत्म होने के बाद भी कर्मचारी विलंब से ही दफ्तर पहुंच रहे है, लेकिन आचार संहिता खत्म होने के 4 दिन बाद भी कर्मचारियों में करीब 60 प्रतिशत कर्मचारी अभी भी विलंब से ही दफ्तर पहुंच रहे हैं। टीम ने सोमवार को भी कलेक्टोरेट के विभिन्न विभागों में जाकर दोबारा पड़ताल की, जिसमें करीब 40 प्रतिशत कर्मचारी 10 बजकर 10 मिनट में अपने दफ्तरों में उपस्थित मिले, जबकि शेष कर्मचारी साढ़े दस से 11 बजे तक दफ्तर पहुंचते रहे।
रजिस्टर में अपने से करते हैं आने-जाने की एंट्री
अधिकारियों व कर्मचारियों के ड्यूटी विलंब से पहुंचने का बड़ा कारण कलेक्टोरेट में बायोमेट्रिक केप्चरिंग स्कैनर सिस्टम का नहीं लगना है। इस सिस्टम के नहीं लगने के कारण हर विभागों के कर्मचारी अपने-अपने दफ्तर में रखे रजिस्टर में अपने आने-जाने की स्वयं से एंट्री कर रहे हैं। इसके कारण 10 का सिस्टम भी सुधर नहीं पा रहा है। बताया जा रहा है कि पूर्व में कलेक्टोरेट के अधीक्षक के रूम में बायोमेट्रिक सिस्टम लगा था। कर्मचारी कुछ दिन तक इस सिस्टम में उंगली स्कैन कर ऑनलाइन आने-जाने की एंट्री करते थे, लेकिन यह सिस्टम कुछ दिनों में ही बंद हो गया। उंगलियों के निशान नहीं लेने के कारण कर्मचारी दोबारा रजिस्टर में एंट्री करने लगे।
आदिवासी विकास के दफ्तर में 10.21 मिनट पर पसरा रहा सन्नाटा
टीम की दोबारा पड़ताल में राजस्व विभाग, रेंट कंट्रोलर दफ्तर, कृषि विभाग, जिला निर्वाचन कार्यालय, समग्र शिक्षा में 50 प्रतिशत से अधिक स्टॉफ उपस्थित मिले, जबकि इससे पहले यहां भी 10 से 20 प्रतिशत ही कर्मचारी उपस्थित थे। इन दफ्तरों के कर्मचारी तो समय पर पहुंचने लगे, लेकिन आदिवासी विकास सहायक आयुक्त कार्यालय में 10.21 बजे चपरासी को छोड़कर एक भी कर्मचारी नहीं मिला। इसी प्रकार खाद्य, आबकारी, खनिज, अंत्यावसायी सहकारी विकास, वित्त विभाग के दफ्तर में गिने चुने कर्मचारी ही मिले।
राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के दफ्तर में लटका मिला ताला
राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के दफ्तर में दोबारा पड़ताल में भी सुबह साढ़े दस बजे दरवाजे पर ताला लटका मिला। सूत्रों के अनुसार यह दफ्तर हर दिन करीब 11 बजे खुलता है। कई बार तो दफ्तर खुले होने के बाद भी यहां कर्मचारी उपस्थित नहीं रहते।
15 मिनट में रजिस्टर अधीक्षक तक पहुंचाने का नियम भी बंद
ड्यूटी पहुंचने का समय हो या छूटने का समय खत्म होने के 15 मिनट के अंदर सभी कर्मचारियों को रजिस्टर में हस्ताक्षर करना होता था। तय समय के बाद रजिस्टर अधीक्षक कार्यालय में पहुंचा दिया जाता था, जिसके बाद विलंब से आने वाले कर्मचारी अधीक्षक के कार्यालय में जाकर हस्ताक्षर करते थे। इसके बाद अधीक्षक विलंब से आने वाले कर्मचारी के रजिस्टर में हाफ टाइम लगाते थे, ताकि वेतन कटने पर कर्मचारी सही समय पर ड्यूटी आए। अब इस नियम को भी फालो नहीं किया जा रहा है।
कर्मचारियों की लेटलतीफी से आम लोग परेशान
लोकसभा चुनाव के कारण पिछले दो माह से दफ्तरों का काम काज भी थम सा गया था। संभावना जतायी जा रही थी कि आचार संहिता हटने के बाद दफ्तरों में तेजी से कामकाज होगा, लेकिन कर्मचारी ही दफ्तरों में विलंब से पहुंच रहे हैं, जिसके कारण न ही समय पर पेंडिंग मामलों का निराकरण नहीं हो पा रहा है और न ही नये मामलों में कार्रवाई की जा रही है।